शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

कैंसर है मोदीमोह !




अब बेचारे बेरोज़गार गाली खाएँ।मोदीजी को बेकारी नजर नहीं आ रही , बेकारी का हल्ला करने वालों को वे बेकारों का दलाल कह रहे हैं।वे रोजगार देने वाली कोई नई स्कीम लागू नहीं कर पाए उलटे जितनी स्कीम उन्होंने लागू की हैं , नए कानून बनाए हैं ,उनसे बेकारी बढी है।इसी को कहते हैं चौपट राशि प्रधानमंत्री!
        मसलन् , पीएम ने हाल ही में एनपीए यानी बैंकों का बडी कंपनियों से क़र्ज़ा वसूल करने के लिए कानून लागू किया जिसके तहत क़र्ज़ा भुगतान न करने वाली कंपनियों से वसूली होनी थी लेकिन इस कानून के लागू होते ही इंफ़्रास्ट्रक्चर की कंपनियां आवेदन लेकर चली आईं कि वे बैंकों का क़र्ज़ा चुकाने की स्थिति में नहीं हैं।परिणाम सामने हैं आम्रपाली और जेपी इंफ़्रास्ट्रक्चर को पैसा दे चुके हजारों लोगों का अपना घर बनाने का सपना चूर चूर हो गया वे करोडों के बैंक कर्ज में डूब गए,वे कह रहे हैं हम बैंकों की किश्त देने की स्थिति में नहीं हैं।इससे बैंकों का एनपीए कम होने की बजाय और बढ़ेगा ।वहीं दूसरी ओर कंपनियों का क़र्ज़ा ठिकाने लगा दिया जाएगा उनको दिवालिया घोषित कर दिया जाएगा दूसरी ओर मध्यवर्ग को न तो घर मिलेगा और न बैंकों से राहत मिलेगी । एक अन्य परिणाम यह भी निकलेगा कि भवन निर्माण में सन्नाटा गहराता चला जाएगा।हम अपील करेंगे कि मोदीमोह से निकलो यह कैंसर की तरह है।
   मोदीमोह में जो वर्ग फँसा वह मौत के मुँह में गया ।मोदी मोह में व्यापारी और दुकानदार सबसे पहले फँसे वे आज सबके सब मोदीमोह की पीडा से करो रहे हैं, इनमें सबसे पहले सोने के व्यापारी मोदी कैंसर के शिकार हुए , बाद में नोटबंदी और जीएसटी ने समूचे व्यापार को मोदी कैंसर की चपेट में ले लिया, दूसरे चरण में मोदी कैंसर ने जिओ कनेक्शन के जरिए समूचे दूरसंचार उद्योग को तबाही के कगार पर पहुँचा दिया है,पतंजलि के बहाने समूचे घरेलू वस्तु बाजार कंपनियों को मोदी कैंसर के हवाले कर दिया है। पतंजलि खुलेआम मिलावटी सामान बेच रहा है ।
     युवाओं में मोदीमोह ने अविवेक और असभ्यता को वैध बनाया है।घरेलू महिलाओं में राष्ट्रवादी हिंसा और घृणा के प्रति प्रेम पैदा किया है।राष्ट्रीय फिनोमिना के रुप में मोदीमोह ने छद्म यथार्थ में जीने के संस्कार पैदा किए हैं।वहीं दूसरी ओर जनता की सुनने और समझने की क्षमता का  अपहरण कर लिया है।

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