बुधवार, 23 नवंबर 2016

नोटबंदी और मीडिया के अक्षम्य अपराध-


          नोटबंदी के आतंकियों और माओवादियों पर असर की झूठी खबरों से मीडिया भरा पड़ा है,जबकि आँखों के सामने भारत के प्रत्येक नागरिक के यहां तबाही मची हुई है,कम से कम पचास लाख घरों में शादियां हो रही हैं और वहां सभी एकस्वर से मोदी सरकार की निंदा कर रहे हैं लेकिन मीडिया में यह सब गायब है , नोटबंदी का आतंकियों पर क्या असर हुआ है,यह बताने में मीडिया मगन है,जबकि मीडिया को किसी आतंकी से कोई पुष्ट और प्रामाणिक जानकारी नहीं मिली है।इनमें सारे फोटो पुराने हैं,सिर्फ ऑफिस में बैठकर गप्पें तैयार की जा रही हैं।नोटबंदी ने समूचे बैंकिंग सिस्टम को पंक्चर कर दिया है।आयकर विभाग परेशान है कि कैसे काम करे,मुश्किल से दस लोगों को आयकर विभाग ने नोटिस भेजा और उससे यह आभास पैदा किया गया कि पता नहीं कितना बड़ा तीर मार लिया गया,जबकि आयकर विभाग को मालूम है कि वह हाथ पर हाथ धरे बैठा है।

मोदी जी सरेआम मायावती और दूसरे नेताओं पर हमले कर रहे हैं और सफेद झूठ बोल रहे हैं।नोटबंदी से इन नेताओं पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।कम से कम अब तक 14 दिनों में मोदीजी ने किसी नेता के यहां छापा मारकर एक लाख के अमान्य नोट तक नहीं पकड़े हैं,उलटे आयकर विभाग ने 91लाख के नोट महाराष्ट्र के भाजपा विधायक और मंत्री की कार से पकड़े हैं।नोटबंदी लागू होने के कुछ समय पूर्व भाजपा के खाते में कोलकाता में 3करोड़ रूपये के नोट जमा कराए गए हैं।इसके बाद भी यह हल्ला कि विपक्ष के पास कालाधन है और उसको नोटबंदी से नष्ट कर दिया गया है।यह पहला मौका है जब मीडिया पीएम और वित्तमंत्री के बयानों की तथ्यपरक जांच नहीं कर रहा। उसका कमर कसकर अफवाह अभियान में जुट जाना इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी है।

भारत के इतिहास में सहकारी बैंकों को कभी सामान्य बैंकिंग प्रणाली से काटकर नहीं रखा गया,लेकिन नोटबंदी के बाद सहकारी बैंकिग व्यवस्था ठप्प पड़ी है। वहां कोई लेन-देन नहीं हो रहा,कोई काम नहीं हो रहा।यहां तक कि तुलनात्मक तौर पर पोस्ट ऑफिस से भी इन बैंकों का बुरा हाल है।

इस समस्त प्रक्रिया में पेट्रोल पंप वाले से लेकर बिग बाजार के मालिक तक पर हमारी सरकार को विश्वास है ,उनको किसी न किसी रूप में दो हजार रूपये नागरिकों को निकालने की वहां से सुविधा दे दी गयी है,लेकिन सहकारी बैंकों को तो बिग बाजार और पेट्रोल पंप मालिक कंपनियों जैसे लेन-देन की भी सुविधा नहीं दी गयी है।

सवाल यह है कि ये कंपनियां क्या अपने पॉकेट से नागरिकों को दो हजार रूपये बांटेगी ?कहीं नई मुद्रा को सलेक्टिव ढ़ंग से कारपोरेट घरानों को देने की मुहिम तो नहीं चल रही ?मसलन् बिग बाजार ने दो हजार की मुद्रा डेबिड कार्ड के आधार पर नागरिक को दी तो आखिरकार वह मुद्रा बिग बाजार कहां से जुगाड़ करेगा ,जिस समय बैंकों के पास मुद्रा न हो वैसे में बिग बाजार जैसे निजी नैटवर्क को दो हजार रूपये डेबिड कार्ड के जरिए देने का फैसला नए किस्म की मोदी -कारपोरेट मिलीभगत का नमूना है।यह नोटबंदी की आड़ में चल रहा मोदी करप्शन है।

इसी तरह यह प्रचार भी तथ्यहीन है कि कैशलैस सोसायटी करप्शन मुक्त होती है।सारी दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जो कैशलैस हो,यहां तक कि जिन देशों में कैशलैस सिस्टम बहुत पुख्ता है वहां पर भी करचोरी बड़ी मात्रा में होती है।कैशलेस सिस्टम अंततःकैश पर ही चलता है।सिर्फ अंतर यह है कि चलमुद्रा का एक बड़ा अंश चलन से बाहर रहता है, वह बैंकों के पास रहता है।

पहले से ही एक लाख करोड़ रूपये की प्लास्टिक मनी चलन में है।यह प्लास्टिक मनी मोदीजी के पीएम बनने के पहले से ही चलन में है।प्लास्टिक मनी बाजार की पूरक मुद्रा है, विनिमय की मुद्रा है,यह वस्तुतः मुद्रा नहीं, मुद्रा का वायदा है,गारंटी है।असल मुद्रा तो इसके कारण चलन के बाहर है।

सारी दुनिया में 1.2 बिलियन लोग हैं जिनकी जिंदगी प्रतिदिन एक डॉलर से भी कम पैसे से चलती है,भारत में आबादी का बहुत बड़ा अंश है जिसकी रोज की आय तीस रूपये से भी कम है।ऐसे में कैशलैस विनिमय की बात करना अवैज्ञानिक है,साथ ही गरीबों के साथ भद्दा मजाक है।

इस दौर में आम जनता की राय को बनाने और नियंत्रित करने में मीडिया सबसे बड़ी भूमिका अदा कर रहा है अतः मीडिया की भूमिका पर व्यापक बहस होनी चाहिए।सवाल यह है मीडिया यह मानकर क्यों चल रहा है कि नोटबंदी अच्छी बात है,सही फैसला है ?बिना इस नीति की तहकीकात किए,उसके बुनियादी आधार के बारे में सवाल खड़े किए बिना मीडिया ने जिस तरह का माहौल बनाया है उससे पहली बात यह निकलती है कि मीडिया वालों में साक्षरता का अभाव है,मीडिया साक्षरता के अभाव के कारण नोटबंदी के प्रति इस तरह का अनालोचनात्मक रवैय्या पैदा होता है।आम जनता देखती है कि मीडिया समर्थन कर रहा है फलतः जनता मानकर चल रही है कि मोदीजी की नोट बंदी सही है।मीडिया बार बार असुविधाओं को चित्रित कर रहा है उसमें भी वह बड़ी कृपणता के साथ पेश आ रहा है। विगत 14 दिनों में मीडिया का समूचा कवरेज नोटबंदी के प्रति अनालोचनात्मकता से लबालब भरा रहा है।

मीडिया का काम है कि वह जनता की आवाज बने,लेकिन हमारे यहां मीडिया खुल्लमखुल्ला सरकार और कारपोरेट घरानों की आवाज के रूप में काम कर रहा है,ऐसे में मीडिया साक्षरता का काम और भी महत्वपूर्ण हो उठा है।

नोटबंदी के सवाल पर मीडिया ने दो बड़े अपराध किए हैं उसने आर्थिक सूचनाओं को छिपाया है और अ-प्रासंगिक सूचनाओं का प्रसार किया है। दूसरा अपराध यह किया है कि मीडिया अपनी भूमिका भूलकर सरकार के भोंपू की भूमिका अदा कर रहा है।हम सब जानते हैं आम जनता मीडिया द्वारा प्रसारित सूचनाओं पर पूरी तरह निर्भर है ऐसे में आम जनता से सही सूचनाएं छिपाना और सरकार की ही सिर्फ सूचनाओं को प्रसारित करना अपराध की कोटि में आता है।



















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