सोमवार, 8 अगस्त 2016

शिक्षा और अंधविश्वास

       हमारे नेता आए दिन कहते हैं देश का विकास करना है तो देश को शिक्षित करना होगा।हमारा मन इस बात को ग्रहण करने में हिचकता है। शिक्षितों में बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की है जो अंधविश्वास में आकंठ डूबे हुए हैं,स्वतंत्र बुद्धि और विज्ञान से जिनको नफरत है।शिक्षा से यदि इस तरह के मनुष्यों का निर्माण होता है तो भगवान बचाए ऐसी शिक्षा और शिक्षितों से।देश के विकास का यह सबसे घटिया समाधान है इसे हम मानने को तैयार नहीं हैं। यह विकास के नाम पर अंधकार जगत में ले जाने की कोशिश है।

हमारे समाज के अधिसंख्य लोगों ने प्रचलित विश्वासों और चिरागत प्रथाओं के सामने पूरी तरह आत्म- समर्पण कर दिया है।इन दिनों शिक्षित और अशिक्षित के बीच में प्रचलित अंधविश्वास में कितना अंतर रह गया है,इस पर रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा, " हममें और अशिक्षित लोगों में केवल इतना ही प्रभेद रह जाता है कि वे अपने अन्धविश्वास के कारण बेखटके सोए रहते हैं,और हम आत्म-विस्मृत होकर अफ़ीम की नींद में पड़े रहते हैं,हम कुतर्क द्वारा अपनी लज्जा बचाना चाहते हैं,जो काम जड़ता या कायरता के कारण करते हैं उसके लिए सुनिपुण या अनिपुण व्याख्या तैयार करते हैं और यह दिखाते हैं कि वह काम वास्तव में गर्व का विषय है।लेकिन वकालत के जोर से दुर्गति को छिपाया नहीं जा सकता।"

रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा जिस देश के लोग शीतला-माता को चेचक का कारण समझकर निष्क्रिय बैठे रहते हैं,उस देश में शीतला देवी का आसन भी जम जाता है और चेचक जाने का नाम नहीं लेती।वहाँ शीतला माता मानसिक परवशता का प्रतीक है,बुद्धि के स्वातन्त्र्य-नाश का कुत्सित लक्षण है।



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