रविवार, 24 जुलाई 2016

नामवरजी के आने-जाने की विचारधारा और भोले भक्त

        नामवरजी का आना-जाना कोई सीधा -सरल मामला नहीं है।वह कोई विचारधाराहीन काम नहीं है।वे असाधारण लेखक हैं।वे कहीं जब बुलाए जाते हैं तो इसलिए नहीं बुलाए जाते कि बहुत सरल सीधे, विचारधाराहीन इंसान हैं ! भक्तों का तर्क है वे सबके हैं और सब उनके हैं ! यदि मामला इतना सा ही होता तो नामवरजी को न तो कोई बुलाता और न कोई उनका 90वां जन्मदिन ही मनाता।वे बड़े कद के लेखक-शिक्षक-बुद्धिजीवी हैं। उनकी समाज में व्यापक भूमिका है। वे साधारण लेखक रहे होते तब भी संभवतः हमें कोई आपत्ति न होती। जाने-अनजाने नामवरजी के बारे में जितने तर्क उनकी हिमायत में दिए जा रहे हैं वे अंततःनामवरजी को विचारधाराहीन,दृष्टिहीन मनुष्य के रूप में पेश कर रहे हैं।लेकिन नामवरजी विचारधाराहीन मनुष्य नहीं हैं।वे बेहतरीन इंसान हैं।मैं निजी तौर पर उनका प्रशंसक -आलोचक हूँ,उनके गलती करने पर हर समय टोका है,लेकिन संवाद नहीं छोड़ा।बहिष्कार नहीं किया।

नामवरजी का मोदीप्रेम हाल की घटना नहीं है यह मोदीजी के लोकसभा चुनाव के समय ही सामने आ गया था,उस समय भी हमने फेसबुक पर उनके टीवी पर दिए गए बयान की आलोचना की थी। सवाल यह है क्या मौजूदा मोदीशासन सामान्य रूटिन लोकतांत्रिक सरकार का शासन है ॽक्या मोदी निजी तौर पर सामान्य बुर्जुआनेता हैं ॽ क्या अटल-आडवाणी की तरह के संघी नेता हैं ॽ यदि हमारे मित्र ऐसा सोच रहे हैं तो बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं।

देश में पहलीबार ऐसा हुआ है कि एक ऐसा व्यक्ति शासन पर आ बैठा है जिसने अपने राजनीतिक कर्म से लोकतंत्र को बहुत गहरे जाकर क्षत-विक्षत किया है।गुजरात के दंगे साधारण घटना नहीं है। संविधान पर नियमित सोची समझी साजिश के तहत पहले उन्होंने गुजरात में निरंतर हमले किए,यहां तक कि न्यायपालिका को पंगु बना दिया,यही वजह थी कि सुप्रीमकोर्ट को उन दंगों के मुकदमों की सुनवाई की व्यवस्था गुजरात के बाहर करनी पड़ी।यह भारत के इतिहास की असाधारण घटना है।125से ज्यादा लोग दंगों के लिए सजा पा चुके हैं,यहां तक कि मोदीमंत्रीमंडल की एक सदस्या भी सजा भोग रही है।यह सब देखने जानने के बावजूद यदि नामवरजी जैसा सुलझा हुआ व्यक्ति मोदी की गोदी में जा रहा है तो सवाल तो खड़े होंगे !

कुछ लोग कह रहे हैं इंदिरा गांधी कला संग्रहालय राष्ट्रीय संस्थान है,वह संघ का नहीं है,अतः वहां जाने में कोई हर्ज नहीं। इस तरह के तर्क नामवरजी जैसे व्यक्ति को टुईंया लेखक बना देते हैं, उनके जाने-आने को अर्थहीन सामान्य घटनामात्र बना देते हैं।हम जानते हैं नामवरजी बहुत उदार हैं,भले हैं,जो बुलाता है उसके यहां चले जाते हैं।लेकिन क्या मोदी सरकार आने के बाद बुद्धिजीवियों के लिए स्थितियां सामान्य रह गयी हैं ॽ



आज बुद्धिजीवियों के बीच में अघोषित मोदीआतंक फैला हुआ है।केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में स्थिति सबसे बदतर है।स्वयं जेएनयू में भी हालात असामान्य हैं।जेएनयू के आरएसएस से जुड़े शिक्षकों ने जांच रिपोर्ट के नाम पर छात्रसंघ के ऊपर सीधे हमला बोला है,अनेक छात्रनेताओं के खिलाफ कार्रवाई हुई है,नामवरजी चुप रहे।पहलीबार ऐसा हुआ है कि आरएसएस के शिक्षकों ने जेएनयू की छात्राओं को कलं कित, अपमानित करने वाली रिपोर्ट जारी करके सभी छात्राओं के चरित्र पर सवाल खड़े किए हैं,उनको अपमानित किया है।जेएनयू में संघी वीसी ने सभी फैसलेकुन कमेटियों को पंगु कर दिया है।इस तरह की घटनाएं तो आपातकाल में भी नहीं हुई थीं।जेएनयू की एकेडमिक कौंसिल का एजेण्डा वीसी नहीं मानव संसाधनमंत्री तय कर रहा है। यही हाल दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का है वहां पर मानव संसाधन मंत्री से स्वीकृति लिए बिना एकेडमिक कौंसिल का एजेण्डा वीसी तय नहीं कर सकता।कम से कम आपातकाल में भी यह स्थिति नहीं थी कि एकेडमिक कौंसिल का एजेंडा मंत्री तय करे! नामवरजी भोले नहीं हैं और अज्ञानी नहीं हैं जो यह न जानते हों! विगत सभी सरकारों के साथ मोदी सरकार के अंतर को सिर्फ इसी एकमात्र उदाहरण से समझा जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...