बुधवार, 20 जुलाई 2016

फेसबुक सूक्तियाँ




नियमित अच्छी चीजों को पढ़ने की आदत होनी चाहिए।नियमित रीडिंग बेहतर इंसान बनाती है।

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मनुष्य के अंदर का खालीपन सिर्फ दो चीजों से भरा जा सकता है ,वह है प्रेम और त्याग ।

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जो धर्म भय पैदा करे वह धर्म नहीं है,धर्म वह है जो अभय दे।

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रामचरित मानस में रचित राम को एक ही चीज पसंद है प्रेम।प्रामाणिक प्रेम प्रसन्नता का जनक है।

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सत्य के लिए आक्रामकता नहीं त्याग और विनम्रता चाहिए।

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सत्य को धैर्य के बिना नहीं पा सकते।वह स्वाभाविक चीज है।

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सद्गुरू सबसे समर्थ वैद्य है।

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श्रद्धा का स्थान फेसबुक नहीं मनुष्य का हृदय है।

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मानव समाज में विचारों का दान श्रेष्ठ दान है।

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अभिभावक के बिना लड़का-लड़की की पहचान होती है,जब पहचान होती है तो फिर हर जगह अभिभावक का नाम क्यों लिखते हो,सीधे नाम लिखो पता लिखो,बंदे के बारे में विवरण लिखो,अभिभावक पिता होगा या माँ,इन दोनों के दबाव से व्यक्ति की पहचान को निकालना चाहिए।व्यक्ति को व्यक्ति की तरह देखो,वंशधर की तरह नहीं।

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ग़ज़ब का फिल्मीगेम है ये फ़िल्म में हीरो -हीरोइन दोनों होते हैं लेकिन खबर बनती है सलमान की फ़िल्म हिट! अमीर की फ़िल्म हिट! कभी अनुष्का का भी नाम ले लिया करो मीडियावालो।हीरोइन के बिना फ़िल्म नहीं बनती फिर प्रचार में हीरो का ही जयगान क्यों ?

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मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने व्यंग्य करते हुए कहा "आखिर शादी के लिए जितनी पूछ आईएएस, इंजीनियर, डॉक्टर आदि अन्य

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पेशों के युवकों की है उतनी पूछ वकीलों की क्यों नहीं है? ऐसा इसलिए है क्योंकि आईएएस, इंजीनियर और चिकित्सक बनना उतना आसान नहीं है लेकिन जो देखो वही वकील बन जाता है। शायद यही कारण है कि शादी के लिए वकीलों की पूछ नहीं होती है।’

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ठठेरेबाजी और नॉनसेंस भाषा को एमटीवी आदि टीवी चैनल ने रियलिटी शो का अनिवार्य अंग बनाकर रद्दी को मुनाफे में बदल दिया है। आज के युवाओं को इस तरह के रियलिटी शो की तू-तड़ाक की भाषा प्रभावित कर रही है।

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मैं गंभीर लोगों से डरता हूं।मुझे गंभीरता नहीं व्यंग्य पसंद है।

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आत्मा,परमात्मा,अन्तर्मन,अंतर्दृष्टि,परमपिता,परम तत्व,परम,अन्तरात्मा आदि पदबंध अप्रासंगिक हो गए हैं।

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मेरे लिए फेसबुक खेल है और खेल में सूरदास के अनुसार- खेलन में को काकों गुसईंया। यानी सब समान हैं।

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किसी भी कला का ज्ञान मनुष्य को बूढा नहीं होने देता।

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धर्म पुरानी जीवन संहिता है,संविधान नई जीवन संहिता है। तय करो किस ओर हो तुम।

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सही ज्ञान वह है जो मनुष्य को सही-गलत की पहचान कराए।

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तर्क में परास्त करना सबसे घटिया चीज है,इससे आनंद नष्ट होता है।सुंदर तर्क वह है जो संवाद में खींचे,संवाद खुला रखे।

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बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी कमजोरी है उसकी पुनर्जन्म की धारणा में आस्था।

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अंतर्दृष्टि जैसी कोई चीज नहीं होती।

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महाभारत तो कुरूक्षेत्र के बिना लिखा गया।

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पवित्रता सबसे घटिया शब्द है,इसने सबसे ज्यादा पीड़ित किया है।

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मोक्ष का मतलब मरना नहीं है, मोक्ष का मतलब मोह रहित सावधानी से जीना है।

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जो धर्म मातहत भाव का प्रचार करे वह धर्म नहीं अधर्म है।

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जिस तरह दुख की कोई सीमा नहीं होती,उसी तरह सुख की भी कोई सीमा नहीं है।

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विवेकहीन भक्ति और प्रेम अंततःदुख देते हैं।

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भक्ति और प्रेम में विधि निषेध नहीं होते,बल्कि सभी किस्म के विधि निषेधों का अंत हो जाता है।

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दुनिया से विरक्ति पैदा कर दे वह गुरू नहीं बल्कि दुनिया को समझाए वह है गुरू।

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व्यक्ति के विकास के लिए एकांत जरूरी है।

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आधुनिक धार्मिक प्रचारक इन दिनों धर्म-चर्चा कम राजनीतिक और व्यापारिक चर्चाएं ज्यादा करते हैं।इनमें से अधिकांश के साथ कारपोरेट घरानों में से कोई न कोई बंदा काम कर रहा है।धर्म इन सबके कारण अधर्म में रूपान्तरित हो गया है।धर्म यदि धर्म का मार्ग छोड़कर अन्य मार्ग ग्रहण कर ले तो समझो धर्म का अंत हो गया .वह राजनीति बन गया।दिलचस्प बात यह है कि इन नए धर्म प्रचारकों को टीवी बहुत पसंद है,बिना टीवी के इनके विचारों का प्रसार नहीं होता।टीवी से धर्म का प्रचार धर्म को धर्म नहीं रहने देता,बल्कि राजनीतिक बनाता है।

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