बुधवार, 20 जुलाई 2016

मेरे साइबर शत्रु

       कुछ दिन पहले एक पुराने शत्रु से मुलाकात हुई,देखते ही मैंने पूछा कैसे हो,गुस्से में बोले ठीक हूं,मैंने कहा कम से कम यह बात तो हंसकर कह दो,बोले तुम्हारी शक्ल देखते ही घृणा होती है,मैंने कहा शक्ल नहीं चरण देखो,घुटना देखो,शक्ल ही क्यों देखते हो ,बोले ,पता नहीं क्यों बार -बार तुम्हारे चेहरे पर ही नजर जाकर टिक जाती है,मैंने कहा तो मन लगाकर चेहरा देखो,बोले फेसबुक में यही करता रहता हूँ,तुम्हारी वॉल पर जाता हूँ और निहारता रहता हूँ,कुछ फोटो भी प्रिंट करा लिए हैं, मैं सब समय तुम्हारे बारे में बुरा सोचता हूँ लेकिन तुम्हारी शक्ल भूल नहीं पाता ,मैंने कहा चलो चाय पी लेते हैं,फिर बढ़िया पान खाते हैं,वे बोले तुम्हारे साथ अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा,तुम शैतान हो,कमीने हो,मैंने कहा सब सुनूँगा लेकिन यह बताओ क्या पीछे से फेसबुक फोटो को भी गालियां देते हो,बोले नहीं,वहां मेरी आवाज ही नहीं निकलती,बल्कि नींद आ जाती है।मैंने कहा तुम बहुत भले हो।आनंद लो फेसबुक में ही मिलते हैं,वहीं वर्चुअल चाय पिलाएंगे,एक कप तुम्हारा होगा और दूसरा कप हमारा होगा।

फेसबुक का मजा यह है कि इसमें दुश्मन को खोजकर पढ़ते हैं,दुश्मन की खबर रखते हैं,उसके विचारों को सहेजकर रखते हैं,जो बेगाने हैं ,वे बेगाने रहते हैं लेकिन मिलते हैं,छुपकर पढ़ते हैं,गजब मजा है,जिसकी शक्ल देखनी पसंद नहीं है उसकी वॉल पर रोज जा रहे हैं,जिसको गाली देते हैं,उसको रोज पढ़ रहे हैं।फेसबुक बंधनहीन आदत है।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...