बुधवार, 13 जुलाई 2016

मथुरा का रस-

        मथुरा से निकले तकरीबन 35साल से ऊपर गुजर गए,इस बीच मथुरा में बहुत कुछ बदला है,जिसका कायदे से अध्ययन करना मेरा लक्ष्य है,मैं इस बीच मथुरा आता-जाता रहा हूँ,लेकिन मात्र पर्यटक की तरह,मथुरा को नए सिरे से पाने,समझने और महसूस करने के लिए वहां कुछ समय गुजारना बेहद जरूरी है,निकट भविष्य में यह काम कर पाऊँ तो बेहतर होगा।

मथुरा के मंदिर,बंदर,घाट,यमुना का किनारा,गलियां,वहां के लोगों की बेबाक भाषा,गालियां, अनौपचारिकता, औरतों का बिंदास भाव मुझे बहुत अच्छा लगता है।चलते -फिरते मथुरा को जितना मैं देखकर समझ पाया हूँ उसमें मुझे एक नए किस्म की मानुषगंध मिलती है।

मथुरा पहले की तुलना में स्मार्ट हो गया है।वहां के लोग पहले की तुलना में ज्यादा आधुनिक बने हैं,बदले हैं,खासकर स्त्रियां तो पहचानने में ही नहीं आतीं।इन दिनों आधुनिकता के परिवर्तनों ने मथुरा की युवा लड़कियों को बहुत ही आकर्षित किया हुआ है।

पुराने शहर के बाहर विशाल नया मथुरा,नयी रिहाइश वाला मथुरा बस गया है। दिलचस्प बात है मथुरा की गंध, पुराने शहर के अंदर ही महसूस कर सकते हैं।पुरानी गलियों में ही पुराने शहर की भाषा ,गंदी नालियों,बंदरों आदि को देखकर महसूस कर सकते हो।

मेरी दिली ख्बाहिश है मथुरा की गलियों और उनकी जीवंतता के वैविध्य पर जमकर लिखूँ।हर गली की अपनी विशेषता है,वहां के रहने वाले लोगों की अपनी निजी विशेषताएं भी हैं।मथुरा के बाहर रहते हुए मथुरा का मर्म धीरे धीरे मन से खिसक गया है।ब्रजभाषा बोल नहीं पाता,वहां जाने पर दो-तीन दिन रहने पर ब्रजभाषा बोल पाता हूँ।

ब्रजभाषा का सुख मथुरा का सबसे बड़ा सुख है।बाहर रहते हुए मुझे रोज एक-दो ब्रजभाषा कविता पढ़ने की आदत पड़ गयी,इस आदत को मैंने सचेत रूप से विकसित किया,जिससे मैं मथुरा से जुड़ा रहूँ।मथुरा में बड़ी संख्या में पुराने मित्र भी हैं जो बार-बार याद आते हैं।लेकिन मथुरा को हमेशा भाषा में ही पाता हूँ,वहां जाता हूँ तो भाषा सुनने में मजा लेता हूँ।

मैंने अपने अनुभव से यही सीखा है कि यदि किसी शहर को पाना है तो वहां के लोगों को देखो और आत्मीयता से वहां की भाषा सुनो,शहर आपके मन में उतरता चला जाएगा।



कोलकाता में 27साल से रह रहा हूँ और यहां पर मैंने बोलचाल की बंगला भाषा के जरिए बंगाल को महसूस किया है, घर से जब पढाने जाता हूँ तो रास्ते में बंगला में लोगों की बातें सुनते हुए बंगाल को पाता हूँ,उसी क्रम में बंगला का आस्वाद विकसित हुआ,बंगला समझने की क्षमता पैदा हुई।यहां तक कि नए बंगला शब्दों को भी मैंने बोलचाल की बंगला के जरिए ही अर्जित किया,सीखा।असल में जीवन तो भाषा से ही व्यक्त होता है।

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