रविवार, 19 जून 2016

मुफ़्तख़ोर आतंकी जुनून

          श्रीनगर के पुराने शहर यानी डाउनटाउन इलाक़े में आज भी विलक्षण पुराने क़िस्म की रमणीयता नज़र आती है। छोटी गलियाँ, छोटे पुराने घर,सामान्य और सरल क़िस्म के लोग, पुराने क़िस्म की दुकानें, पुरानी तहज़ीब इसके समूचे परिवेश में फैली हुई है।एक ख़ास क़िस्म की अनौपचारिकता और मधुरभाव यहाँ की तहज़ीब में सहज ही महसूस कर सकते हो।
पुराने शहर का बाज़ार जब बंद हो जाता है तब गलियों का सौंदर्य नज़र आता है। लेकिन जब बाज़ार खुला होता है तो लोगों से भरा, माल से भरा लगता है। मैं जब फ़ोटो खींच रहा था तो एक बुज़ुर्ग ने कहा हमारी ग़ुरबत यानी ग़रीबी को मत दिखाना। यह वह इलाक़ा है जिसने १९८९ के बाद तक़रीबन २० साल तक चैन नहीं देखा। कब और किस तरह इस शांत इलाक़े में अशांति चली आई यह अपने आपमें सबसे जटिल सवाल है। लोग अभी भी चुप हैं और सही उत्तर खोज रहे हैं।
यहाँ के लोग आज भी वह सुबह याद करते हैं तो भय से काँपने लगते हैं। पुराने शहर का कोई घर नहीं होगा जिसमें पुलिस-बीएसएफ़ या सेना कभी घुसी न हो, कोई घर नहीं है जिसकी अंदर की साँकल -कुंडी -चटखनी लात मार -मारकर सैन्यबलों ने तोड़ी न हो,एक समय तो लोगों ने अंदर से घर बंद करना ही बंद कर दिया । त्रासद पहलू यह था कि इस इलाक़े में एक तरफ़ पाकिस्तान की ओर से अबाध हथियार और पैसा आ रहा था तो दूसरी ओर से भारतीय सेना नव्य आतंकियों से जूझ रही थी। मैं नव्य आतंकी इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ये वे नौजवान थे जो आरंभ में जानते तक नहीं थे कि वे क्या करने जा रहे हैं। एक वाक़या है जिसे समझकर आप स्थिति का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
एक दिन अचानक पुराने शहर में सुबह पाँच बजे क़रीब अत्याधुनिक हथियारों से भरा एक ट्रक मुहल्ले के बीच में आकर खड़ा हो गया और उसमें सवार चंद नौजवानों ने आसपास के लोगों से कहा कि जिसे जो हथियार चाहिए वह मुफ़्त में घर ले जाएँ। देखते ही देखते चारों ओर से युवाओं की भीड़ आई और हर घर में बंदूक़ , पिस्तौल, एके ४७ आदि पहुँच गए। देखते ही देखते पुराने शहर में सड़कों और पार्क में युवाओंमें अपने अपने हथियार चमकाने दिखाने की होड़ लग गयी और यही वह प्रस्थान बिंदु है जहाँ से पुराने शहर के अधिकांश युवा अनजाने पाक से भेजे हथियारों की गिरफ़्त में आ गए। जो युवा मुफ़्त हथियार घर ले आए वे जानते ही नहीं थे कि जो मुसीबत वे अपने घर लेकर आए हैं वह उनको किस नर्क तक ले जाएगी। चंद दिनों में ही युवाओं को पुराने शहर में अत्याधुनिक हथियारों से सड़कों पर हवाई फ़ायर करते देखा गया इस समूचे उपक्रम में कब किसने युवाओं के मन में भारत से मुक्त होकर अलग कश्मीर बनाने की बात बिठा दी इसे कोई नहीं जानता।
जिन युवाओं ने मुफ़्त हथियार लिए वे न तो राजनीति जानते थे और नहीं हथियार चलाना जानते थे, वे सब शहरी युवा थे,मुफ़्त के हथियारों के पीछे सक्रिय राजनीति से एकदम अनभिज्ञ थे। आज उन युवाओं में से सैंकड़ों परिपक्व हो गए हैं। वे पिछले दो दशक की पीड़ाओं को आज तक भूल नहीं पाए हैं। वे आज भी आज़ादी का मतलब समझ नहीं पाए हैं। उनके लिए "भारत से आज़ादी का "नारा चंद दिग्रभ्रमित युवाओं द्वारा पाकजनित जुनून में दिया गया नारा था। वे जिस समय मुफ़्त में हथियार लाए तो सतह पर यह मुफ़्त का माल लग रहा था और उसने सामान्य युवा के लोभी मन को अपनी ओर खींच लिया, लेकिन यह विवेक और राजनीति नज़रिए के आधार पर लिया गया फ़ैसला नहीं था।यह बात पुराने शहर का हर शहरी मानता है।

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