शुक्रवार, 20 मई 2016

वाम- कांग्रेस गठजोड़ पराजय के सबक-


        पश्चिम बंगाल में वाम की पराजय काफी महत्व रखती है।जिन लोगों की वाम के प्रति सहानुभूति है वे वाम को पश्चिम बंगाल के सामाजिक यथार्थ के संदर्भ में बहुत कम जानते हैं,जो वाम इस राज्य में है वह विचारधारा के नशे और ३४साल सत्ता में रहने के कारण यथार्थ से एकदम कटा हुआ है।लोकल से लेकर नेशनल स्तर के वामनेता,खासकर माकपानेता जमीनी यथार्थ को देखने से भागते रहे हैं।सच्चाई यह है कि वाम के पराभव का सिलसिला थमा नहीं है ऊपर से राजनीतिक अवसरवाद ने वाम को घेर लिया है।आयरनी यह है कि माकपा पोलिट ब्यूरो सदस्य पी.विजयन( केरल) से प्रणव राय से हाल ही में केरल कवरेज के दौरान पूछा कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से वाम ने जो गठबंधन किया है उस पर क्या कहना है ? विजयन ने कहा मैं नहीं जानता।आश्चर्य है वाम-कांग्रेस का यहां गठबंधन था सारे मीडिया में खबर है पूरी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ रही है लेकिन पोलिट ब्यूरो सदस्य कह रहा है,मैं नहीं जानता! चुनावी सभाओं में पोलिट ब्यूरो सदस्य गठबंधन कह रहे हैं,लेकिन एक दूसरे पोलिट ब्यूरो सदस्य विमान बसु ने कहा गठबंधन कहां है ? यह राजनीतिक दोगलापन यदि माकपा नेताओं के मन में है तो जनता कैसे उन पर विश्वास करती !माकपा ने दो टूक ढंग से कभी खुलकर नहीं बताया कि वाम- कांग्रेस गठबंधन है या चुनावी तालमेल है ?इस तालमेल को किन तर्कों को लेकर किया गया उसकी कोई लिखित रूप में चर्चा नजर नहीं आई! कोई विश्वास करेगा कि केरल के माकपा नेताओं को मालूम नहीं है कि बंगाल में क्या हो रहा है!
माकपा की जिन मुद्दों को लेकर आलोचना हमने की उन पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।इससे भी बड़ी बात यह कि जब संगठन कमजोर है और हमले हो रहे हैं ,माकपानेता अपने लोगों को सुरक्षा देने में असमर्थ हैं,पोलिंग एजेंट तक देने में असमर्थ हैं,तब फिर चुनाव लड़ने क्यों गए ? क्या संगठन के बिना चुनाव लड़ना चाहिए? बंगाल में कई बार चुनाव होते हैं और माकपा चुनाव में लड़ने लायक अवस्था में नहीं है।ऐसी स्थिति में माकपा को पश्चिम बंगाल में कुछ वर्षों के लिए चुनावी राजनीति से विरत रहकर संगठन निर्माण के काम पर ध्यान देना चाहिए,इस समय माकपा अधेड़ और बूढ़ों का दल मात्र होकर रह गया है।युवाओं का संगठन में अभाव है ,और सही नीतियों का भी अभाव है।
माकपा की सबसे बड़ी चुनौती है कि वह अपनी सांगठनिक संरचनाओं ,नियमों और नीतियों को नागरिक समाज की परिकल्पना और नीतियों की संगति में नए सिरे से बनाए,यदि वह ऐसा करता है तो भविष्य में संभावनाएं हैं।वरना लोकतंत्र में हाशिए पर रहने के लिए तैयार रहे।



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