गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

जेएनयू छात्र आंदोलन राष्ट्रवाद और आरएसएस


    जेएनयू छात्र आंदोलन के लिए 'अन्य' ( 'अदर' 'हाशिए के लोग') बहुत ही महत्वपूर्ण है। संयोग है कि जेएनयू के अकादमिक वातावरण,पाठ्यक्रम और अकादमिक संस्कृति का मूलाधार भी यही है। जेएनयूछात्र संघ के बिना जेएनयू की परिकल्पना असंभव है,छात्रसंघ जेएनयू आत्मा है। आज यही मूलाधार संकटग्रस्त है, उस पर केन्द्र सरकार के जरिए हमले संगठित किए जा रहे हैं। जेएनयू में अन्य या अदर के हकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। जेएनयू में छात्रों की हर स्तर पर भागीदारी है,जेएनयू में छात्रों की सलाह को तरजीह दी जाती रही है,उनको स्वतंत्र और स्वायत्त माहौल दिया गया है।

        जेएनयू के लिए राष्ट्रवाद का मतलब वह नहीं है जो संघियों या बुर्जुआ कांग्रेस के लिए है।जेएनयू छात्र आंदोलन की साझा समझ रही है कि भारत सांस्कृतिक-जातीय और धार्मिक विविधतावाला देश है।जेएनयू के जन्म के बाद से इस थीम पर हजारों पर्चे और अनेकों प्रस्ताव इस समझ के आधार पर छात्रसंघ ने प्रकाशित किए हैं।जेेएनयू के छात्रों की नजर में भारत के राष्ट्र की धुरी धर्म नहीं नागरिक हैं।राष्ट्रचेतना की धुरी धार्मिक चेतना नहीं,नागरिकचेतना है।जेएनयू में ताकतवर की पूजा नहीं होती,लोकतंत्र की पूजा होती है, उसका सम्मान होता है।वहां जनता यानी छात्रों के सहयोग से लोकतांत्रिक शक्ति पैदा हुई है।जेएनयू के छात्र आंदोलन की प्रेरणा के स्रोत अन्य या अदर या हाशिए के लोगों के आंदोलन हैं।जेएनयू में छात्रचेतना की धुरी है- छात्रों को शिक्षित करो, लोकतांत्रिक बनाओ और संगठन की कला सिखाओ।

इसके विपरीत आरएसएस की विचारधारा में अन्य के लिए कोई जगह नहीं है,लोकतंत्र के लिए कोई जगह नहीं है,आरएसएस की विचारधारा का आधार जनता नहीं हिन्दुत्व है,गोलवलकर की विचारधारा है।यही वजह है कि जेएनयू के आम वातावरण में आरएसएस का कभी कोई बहुत बड़ा आधार नहीं बन पाया।आरएसएस देश में जिन छात्रसंघों को नियंत्रित करता है वहां किसी भी संगठन में लोकतंत्र और संवाद की परंपरा नहीं है,ऐसी स्थिति में जेएनयू छात्र आंदोलन और आरएसएस में यदि सीधे टकराव नजर आ रहा है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

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