सोमवार, 25 जनवरी 2016

सुभाषचन्द्र बोस के नाम पर संघीखेल


हाल ही में सुभाषचन्द्र बोस की 100 गोपनीय फाइल मोदी सरकार ने सार्वजनिक की हैं, इसके पहले कुछ फाइल ममता सरकार ने सार्वजनिक की थीं, मोदी सरकार भी कुछ फाइल पहले सार्वजनिक कर चुकी है।लेकिन इन फाइलों से नया कोई तथ्य सामने नहीं आया, सवाल यह है जब नया कुछ नहीं है तो क्या तालियां सुनने –बजाने के लिए रद्दी गोपनीय फाइल सार्वजनिक की गयी हैं? सुभाषचन्द्र बोस और अन्य क्रांतिकारियों के गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक करने से पहले यदि इन क्रांतिकारियों की समस्त रचनाएं हिन्दी और अंग्रेजी में इंटरनेट पर मुफ्त में केन्द्र सरकार मुहैय्या करा देती तो बड़ा उपकार होता।

पीएम नरेन्द्र मोदी ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के सपने के साथ कैसे खिलवाड़ किया है,यह समझने के लिए सिर्फ एक ही उदाहरण काफी है। पीएम मोदी ने सरकार बनाते ही योजना आयोग को खत्म कर दिया। यह एक्शन सीधे सुभाषचन्द्र बोस के सपने की हत्या है। उल्लेखनीय है सुभाषचन्द्र बोस ने अगस्त1942 में एक लेख ‘फ्री इण्डिया एण्ड हर प्रॉब्लम्स’ शीर्षक से लिखा जो उनकी रचनावली में संकलित है।इस लेख में उन्होंने विस्तार के साथ आजाद भारत में आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डाला है।इस लेख में एक जगह उन्होंने योजना समिति की महत्ता पर रोशनी डालते हुए कहा है कि भारत के निर्माण के लिए यह जरूरी कदम है। उन्होंने लिखा है कि मैं जब कांग्रेस का अध्यक्ष था तब मैंने राष्ट्रीय योजना समिति की बैठक का उद्घाटन किया था।यह भविष्य के लिए महत्वपूर्ण कमेटी है।

उल्लेखनीय है बाद में इसी कमेटी के आधार पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने योजना आयोग का गठन किया और पंचवर्षीय योजना का शुभारंभ किया। लेकिन पीएम मोदी ने आते ही सबसे पहले योजना आयोग को ही खत्म कर दिया।यह प्रकारान्तर से सुभाषचन्द्र बोस के सपने की हत्या है।

इस प्रसंग में दूसरी बात यह कि सुभाषचन्द्र बोस और हेडगेवार - गोलवलकर-मोहन भागवत के भारत में जमीन-आसमान का अंतर है।संघ के नेतागण भारत को हिन्दुत्व के नजरिए से और धर्म को आधार बनाकर संगठित करना चाहते हैं,उनके नायक पीएम के मन की बात भी यही है।लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का मकसद इससे भिन्न था,वे न्याय,समानता और बंधुत्व के आधार पर स्वतंत्र भारत का निर्माण करना चाहते थे।उनकी इस भावना को संविधान निर्माताओं ने संविधान निर्माण का आधार बनाया।इसलिए सुभाष का वैचारिक अपहरण असंभव है।

असल में संघ एक घटिया हरकत कर रहा है ,वह सुभाष के गोपनीय दस्तावेजों के उद्घाटन के बहाने नेहरूविरोधी मुहिम चला रहा है, नेहरूविरोधी मुहिम के जरिए संघ एक तरफ कांग्रेस को नीचा दिखाना चाहता है ,दूसरी ओर धर्मनिरपेक्षता विरोधी मुहिम की वैचारिक मदद करना चाहता है,अफसोस की बात है कि संघ के ये दोनों मकसद सफल नहीं हो सकते। क्योंकि यह भारत है,संघियों का धार्मिकदेश नहीं है।

आरएसएस का मानना है स्वाधीनता संग्राम में मुसलमानों की देशद्रोही की भूमिका रही है,वे आजादी के पक्ष में नहीं थे।यही ब्रिटिश शासकों की भी समझ थी।सुभाष चन्द्र बोस ने इस नजरिए का खंडन करते हुए " फ्री इंडिया एंड हर प्राब्लम्स" लेख में लिखा है " मुसलमान भारत की आजादी के खिलाफ थे,यह प्रचार एकदम गलत है,बल्कि सच यह है कि वे राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ थे।आजकल तो एक मुसलमान कांग्रेस का सदर है।मुसलमानों का व्यापकतम तबका ब्रिटिश गुलामी से भारत को मुक्त कराने के पक्ष में था,वे ब्रिटिशविरोधी थे,सुभाष ने लिखा १८५७ के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से हिन्दू और मुसलमान एक साथ ब्रिटिश शासकों के खिलाफ लड़े हैं।मिलकर भारत की स्वाधीनता के लिए काम किया है।मुस्लिम समस्या कृत्रिम गढी गयी है।

इसी तरह स्वतंत्र भारत को लेकर आरएसएस और सुभाषचन्द्र बोस का नजरिया एकदम भिन्न है। सुभाषचन्द्र बोस का मानना था कि स्वतंत्र भारत में राजसत्त्ता की यह जिम्मेदारी है कि सभी नागरिकों को पूर्णत: धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता दी जाय,जबकि संघ इसके एकदम खिलाफ है।सुभाष यह भी मानते थे कि राज्य को पूरी तरह धर्ममुक्त होना चाहिए,संघ यह भी नहीं मानता।सुभाष का यह भी मानना था कि धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में नागरिकों को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाय।संघ यह भी नहीं मानता,उसके नेताओं का मानना है कि मुसलमानों को दोयमदर्जे का नागरिक बनाकर रखा जाए।

सुभाषचन्द्र बोस के बहाने संघ परिवार कुप्रचार तो कर सकता है, मीडियासंघी और फेसबुकसंघी कुतर्कों का जाल भी बुन सकते हैं,लेकिन सुभाष का सच नहीं बदल सकते।सुभाषचन्द्र बोस का सच यह है कि वह हिन्दुत्ववादी नहीं है,वह प्रतिक्रियावादी नहीं है,वह तो क्रांतिकारी है।वह कॉमरेड है और इसी सम्बोधन से अपने साथियों- सैनिकों को सम्बोधित करता है।संघ से लेकर पीएम मोदी तक किसी की जुबान में कॉमरेड पदबंध बोलने की शक्ति और विवेक नहीं है।संघी ध्यान रखें क्रांतिकारी हमेशा क्रांतिकारी रहता है।क्रांतिकारी पर अन्य कोई रंग नहीं चढ़ता।

आरएसएस मूलत: कारपोरेट घरानों द्वारा वित्तपोषित राजनीतिक संगठन है,इसके लिए राष्ट्रीय नायक (पटेल-सुभाष -आम्बेडकर-मालवीय आदि )पोस्टरबॉय से ज्यादा महत्व नहीं रखते,उसके लिए इनका मात्र विज्ञापन मूल्य है। इस संगठन का मूल मकसद है स्वाधीनता का अवमूल्यन करना,हिन्दुत्व के आधार पर समाज को संगठित करना,सामाजिक विभेद पैदा करना। आरएसएस का गुण है ये लोग पहले मीडिया के जरिए झूठ गढ़ते हैं,फिर कहते हैं यह सच्ची खबर है।फिर उसे सबको मानने के लिए मजबूर करते हैं।

संघ का नया नारा है (शायर इकबाल से क्षमा-याचना के साथ) ‘हो जाएं ख़ून लाखों लेकिन लहू न निकले।’

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