सोमवार, 16 नवंबर 2015

तीन लेखकों की हत्या पर संसद मौन क्यों है ?

     श्याम बेनेगल साहब सवाल यह है कि एवार्ड लौटाना समाधान नहीं है तो लेखक-बुद्धिजीवी क्या करें ? यहां तक कि राज्यसभा में तो कई लेखक,सिनेकर्मी आदि सदस्य हैं उन्होंने भी पहल करके राज्यसभा में 3लेखकों की हत्या की निंदा करने वाला प्रस्ताव तक पेश नहीं किया , सरकार ने कोई पहल लेखकों से बात करके समाधान निकालने के लिए नहीं की । क्यों पीएम से लेकर गृहमंत्री तक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं?

यदि राष्ट्रपति को लगता है कि लेखकों को इनाम को सहेजकर रखना चाहिए तो वे कम से कम केन्द्र सरकार को सीधे कह सकते हैं कि लेखकों से बुलाकर बात करो और उनको सुरक्षा का भरोसा दो।

क्या लेखक -बुद्धिजीवी चुप रहें और पिटते रहें ? अफसोस यह है कि 3 लेखकों की हत्या पर न तो यूपीए सरकार जागी और न एनडीए सरकार की अब तक नींद खुली है,अफ सोस की बात यह है कि संसद ने 3लेखकों की सरेआम हत्या की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव तक पास नहीं किया है। देश के लेखक किस तरह विश्वास करें कि उन पर हमले नहीं होंगे,अभी तक हमलावर संगठनों पर पाबंदी नहीं लगी है।



मोदी सरकार एवार्ड वापसी पर किस तरह सोचती है इसका साक्षात प्रमाण है केन्द्रीयमंत्री वी के सिंह का बयान,यह बयान लेखकों का सरेआम अपमान है। खासकर उन लेखकों का जो प्रतिवाद में एवार्ड लौटा रहे हैं,क्या इस मंत्री को कोई सरकार से हटा सकता है ,क्या इस तरह के गैर-जिम्मेदार बयान पर आपत्ति करके पीएम-राष्ट्रपति कोई बोलेगा ,जी नहीं, इस मामले में सारे स्वर-सारे रंग मिले हुए हैं,वरना एक मंत्री की बेबुनियाद आरोप लगाने की हिम्मत कैसे हुई कि वह यह कहे कि लेखकों ने पैसा लेकर असहिष्णुता की बहस छेड़ी है,मंत्री या तो प्रमाण दें या फिर लेखकों से माफी मांगे। यह विभिन्न राजनीतिक दलों और मीडिया की भी जिम्मेदारी है कि वीके सिंह को प्रमाण देने के लिए कहे या फिर माफी मांगने के लिए कहे। केन्द्रीय मंत्री का यह बयान असहिष्णुता की कोटि में ही आता है।

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