शनिवार, 29 अगस्त 2015

राखी और आनंद का नागरिकखेल

 
आज राखी है, यह आनंद है । लेकिन हमने इसे प्रथा बनाकर जाने कब रक्षाबंधन बना दिया!  यह हिन्दू बहिनों और भाईयों का सुंदर पर्व है। यह आनंद का पर्व है। प्रतीकात्मक रुप में राखी बहुत बड़ा पर्व है। सवाल यह है राखी पर्व था ,रक्षाबंधन कब से हो गया ? राखी पर्व में जो व्यंजना है वह रक्षाबंधन में नहीं है, पर्व सकारात्मक है , बंधन नकारात्मक है। 
    बंधन संकेत है कि बहिनें तकलीफ़ में हैं।  बंधन मानने वाले ठंडे दिमाग़ से सोचें कि वे बहिनों का बीमा कराना चाहते हैं या नागरिक बनाना चाहते हैं? बीमा बंधन है , नागरिकचेतना आज़ादी है, हक़ है। हमारे पीएम को यही लगता है कि बहनों का बीमा हो जाए तो अपने दायित्व से मुक्त हो जाएँ।
    बहन दायित्व नहीं है, बहन नागरिक है, आत्मनिर्भर स्त्री है, बहन के प्रति दायित्वबोध की आज ज़रूरत नहीं है, बहन को नागरिकबोध और नागरिक अधिकारों से लैस करके समान धरातल पर लाने की ज़रूरत है। राखी को पर्व मानोगे तो समान नज़रिए से देख पाओगे। आनंद भाव से देख पाओगे। रक्षाबंधन के रुप में देखोगे तो हमेशा दायित्व निभाने वाले असमानतावादी नज़रिए से देखोगे। राखी पर आनंद की ज़रूरत है, ख़ुशी की ज़रूरत है, सहज और सरल होने की ज़रूरत है, बंधन हमें यह सब नहीं करने देता । 
            राखी पर्व है तो हमें हिन्दू औरतों के संसार में झाँककर देखना चाहिए कि आख़िर वे किस कष्ट में हैं और ये कष्ट क्यों हैं? हमने कभी बहन को , उसकी समस्याओं को सामाजिक आंदोलन नहीं बनाया ! हमारे लिए औरत हमेशा प्रतीक से ज्यादा महत्व नहीं रखती। हमने कभी बहन को लिंग या जेण्डर के रुप में विश्लेषित करने और जानने की कोशिश नहीं की। हम हमेशा बहन को भाई के संदर्भ से देखते रहे, कम से कम अब तो भाई के संदर्भ में बहन को देखना बंद कर दें, उसे स्वतंत्र लिंग के रुप में देखें। स्त्री के संदर्भ में देखें। 
                  मुसलमानों को सबक़ सिखाने उनके ख़िलाफ़ घृणा फैलाने वाले हमारे देश में अनेक विशाल संगठन हैं , वे जान लें कि स्वाधीनता संग्राम में राखी का पर्व साम्प्रदायिक सद्भाव के पर्व के रुप में मनाया जाता रहा है, यह परंपरा आज भी जारी है,स्वयं रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस परंपरा को बनाने में अन्य लोगों के साथ अग्रणी भूमिका अदा की थी। 
                    बहन को हम यदि सच में प्यार करते हैं तो उसे भारत के संविधान की एक प्रति भेंट करें कुछ न हो तो ईमेल कर दें नेट पर मुफ़्त में उपलब्ध है। हम यह सुनिश्चित करें कि बहन की शादी बिना दहेज के करेंगे और सिविल मैरिज करेंगे। सबके लिए  समान नागरिक संहिता की माँग करने वाले कानूनसम्मत सिविलमैरिज से क्यों भागते हैं ? वे क्यों मैरिज को क़ानूनन रजिस्टर्ड नहीं कराते ? आज देश में संविधानसम्मत नागरिकचेतना से बहन-भाई दोनों को शिक्षित करने की ज़रूरत है। दोनों को यह समझना होगा कि लिंगभेद कैंसर है और बहनें उससे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं । बहनों को आनंद में देखना चाहते हैं तो हमें उनमें लिंगभेद के ख़िलाफ़ जागरुकता पैदा करनी चाहिए. उन चीज़ों,वस्तुओं, आदतों और संस्कारों को चुनौती देनी चाहिए जिनसे लिंगभेद में इज़ाफ़ा होता है , लिंगभेद तो बहन के जीवन में सामाजिक बेड़ी है । 

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