शनिवार, 30 मई 2015

संघ की खुराफाती हरकतें और राजनीतिक दुष्कर्म


            आरएसएस के संगठन निरंतर आक्रामक होते जा रहे हैं और खुलेआम राजसत्ता का अपने लक्ष्यों के विस्तार के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं। संघ का लक्ष्य है अ-लोकतंत्र की स्थापना करना और कारपोरेट लूट का माहौल बनाना। वह समाज सेवा के नाम पर खुराफाती राजनीति करने वाला संगठन है। सवाल यह है  आम जनता की आंखों में,खासकर मध्यवर्ग की आंखों में धूल झोंकने में यह संगठन कैसे सफल हो जाता है ? आंखों में धूल झोंकना इनकी पुरानी आदत है। इसके लिए वे हर किस्म का हथकंड़ा अपनाते हैं। धूल झोंकने की कला का लक्षण  है  कहो कुछ, करो कुछ,बोलो कुछ और करो कुछ।
      मसलन्, पीएम नरेन्द्र मोदी कहें मैं तो व्यक्ति,धर्म आदि की आजादी का पक्षधर हूँ ,लेकिन जमीनी स्तर पर उनसे जुड़ा संगठन व्यक्ति और धर्म की आजादी पर हमले करे,दंगों में भाग ले,हत्याकांडों में भाग ले, संवैधानिक हकों पर खुलेआम हमले करे तो सच कौन सा मानें ? भाषण वाला या एकेशन वाला ? समाज किससे चलता है भाषण से या एक्शन से ? जाहिर है जीवन में पहचान एक्शन से होती है भाषण और भाषा से नहीं।  मोदी और संघ को एक्शन के आधार पर देखो ,बयानों के आधार पर नहीं। सच भाषा में नहीं, बयान में नहीं.एक्शन में,यथार्थ में होता है। जब हंगामा होता है तो विभ्रम पैदा करने के लिए,आंखों में धूल झोंकने के लिए पुलिस कार्रवाई कर दी जाती है। इसके बावजूद संघियों के एक्शन जारी रहते हैं। जनता के जीवन पर संघियों के हमले जारी रहते हैं। संघी एक्शन में विश्वास करते हैं,भाषण में नहीं।   
     पीएम से लेकर मोहन भागवत तक अम्बेडकर की मूर्तियों पर माला पहना रहे हैं और अम्बेडकर की जय हो -जय हो कर रहे हैं। लेकिन व्यवहार में अम्बेडकर विरोधी कार्य कर रहे हैं,अम्बेडकर विरोधी एक्शन कर रहे हैं, अम्बेडकर के अनुयायियों पर हमले कर रहे हैं।
      सवाल यह है संघ कहां मिलेगा ? मोदी के बयान में या जमीनी संगठनों की हरकतों में ? संघ के जमीनी एक्शन देखें तो नरेन्द्र मोदी बहुत बौने और कमजोर पीएम नजर आते हैं। संघ की विचारधारा बेहद ताकतवर और अ-लोकतांत्रिक नजर आती है। टीवी टॉक शो में अमूमन भाजपा के प्रवक्ता या अन्य लोग पीएम मोदी के तथाकथित सदभाव बनाए रखने वाले बयानों का हवाला देते हैं, लेकिन पीएम मोदी के बयानों का न तो देश पर कोई असर हो रहा है और न संघ के खुराफाती संगठनों पर ही । स्थिति इस कदर बदतर हो चुकी है कि अब तो केन्द्रीय मंत्रालय भी संघ के खुराफाती संगठनों के इशारों पर काम करने लगे हैं। मद्रास आईआईटी के एक छात्रसमूह पर हाल ही में लगाया प्रतिबंध,पाठ्यक्रमों को बदलने की कोशिशें, आईआईटी की कार्यप्रणाली में दखलंदाजी की कोशिशें बता रही हैं कि संघ और मोदी  को देखना हो तो संघ के संगठनों की हरकतों में देखो, मोदी को काम करते आप पीएम हाउस में नहीं खुराफाती संगठनों में देखें तो बेहतर होगा। क्योंकि संघ के खुराफाती संगठनों का काम ही असल काम है, सरकार तो उनके लिए बहाना है। मोदी को पहचानना है तो मुख्यतौर पर संघ के संगठनों के कामों को देखें । सरकार के काम तो पूरक मात्र हैं।
        मोदी को 'महान' बनाने में गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर उनके काम की भूमिका न्यूनतम है,उनकी असली इमेज तो संघ के जमीनी संगठनों की खुराफातों ने बनाई है,मोदी के व्यक्तित्व और कृतित्व का आधार सरकारी या संवैधानिक पद नहीं है,उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के निर्माता हैं संघ के संगठन। मोदी को देखना हो तो संघ के संगठनों की हरकतों के आईने में देखो, वहीं पर रीयल मोदी नजर आएगा। संविधान के आईने में मोदी नजर नहीं आएगा। संविधान तो मोदी के लिए मृग मरीचिका है।    
     उल्लेखनीय है आरएसएस का तथाकथित सामाजिक संगठन का स्वरुप पूरी तरह राजनीतिक है।  यह वैसा ही सामाजिक संगठन है जैसे कि अन्य देशों में साम्प्रदायिक-पृथकतावादी –फंडामेंटलिस्ट संगठन होते हैं। सारी दुनिया का यह अनुभव है कि तमाम किस्म के इस तरह के खुराफाती संगठन खुलकर समाज सेवा करते हैं और उसकी आड़ में जमकर राजनीतिक दुष्कर्म करते हैं, तमाम किस्म का राजनीतिक व्यभिचार करते हैं।
      राजनीतिक व्यभिचार वह है जो इन दिनों कारपोरेट घरानों के पक्ष में संघ कर रहा है। राजनीतिक दुष्कर्म वह है जो इनदिनों आम जनता के जीवन में विभिन्न रुपों में हमले के रुप में सामने आ रहा है। संघ खुलकर किसानों के खिलाफ और कारपोरेट घरानों के पक्ष में मैदान में आ चुका है। सवाल उठता है संघ का लैंडबिल से क्या संबंध है ? वह तो सामाजिक संगठन है ! वह भूमि अधिग्रहण के पक्ष में मैदान में क्यों उतरा ? वह दावा करता है कि उसका काम है सामाजिक सेवा करना। लेकिन लैंड बिल के जरिए वह किसानों की जमीन हथियाने और किसानों को लूट के लिए तैयार करने के अभियान में जुट गया है। इसे समाजसेवा नहीं कहते , यह तो खुली और नंगी किसानविरोधी राजनीति है। यह किसानों के हितों पर संघ का हमला है।
    किसान पर हमले के रुप में ही हमें संघ की गऊवध विरोधी मुहिम को देखना चाहिए। किसान के लिए गाय पशुधन है। वह पुण्य या भगवानसेवा नहीं है। वह पशुधन का अपने कृषिकर्म में उपयोगी पशु और उत्पादन के औजार  के रुप में इस्तेमाल करता है। जिस तरह अनुपयोगी उपकरण को कंपनी या कारखानेदार निकालकर फेंक देता है वैसे ही किसान भी अनुपयोगी पशु को निकालकर फेंक देता है ,बेच देता है, उसका वध करके अन्य कामों में इस्तेमाल कर लेता है। पशुधन किसान के कृषिकर्म का उपकरण है, वह उसका साधन है, वह उसका लक्ष्य नहीं है, लेकिन संघ के लोग इस समूचे प्रसंग में गऊवध रोकने के नाम पर किसान की अर्थव्यवस्था पर ही हमला बोल रहे हैं।

       संघ की यदि जनांदोलनों में दिलचस्पी है तो उसे खुलकर अपना स्वरुप बदलकर मैदान में आना चाहिए। वे हर चीज को धर्म से जोड़कर पेश कर रहे हैं। गऊ को भी उन्होंने धार्मिक दृष्टिकोण से जोड़ दिया है फलतः समाज में धार्मिक घृणा का भी विभिन्न रुपों में प्रचार होने लगा है। हर चीज को धर्म से जोड़ना खासकर हिन्दूधर्म से जोड़ना एकसिरे से अनैतिक और अनैतिहासिक है। गाय तो गाय के मालिक की संपत्ति है वह उसे पाले या खाए, यह फैसला करने वाला कानून कौन होता है और यह कौन सा शास्त्र है कि व्यक्ति की निजी संपत्ति पर संघ राजनीति करे , संघ को कोई हक नहीं है कि वह बोले कि गाय का मालिक गाय को पाले या मारे या बिक्री करे। गाय यदि निजी संपत्ति है तो उसके मालिक को हक होगा कि वह गाय का क्या करे,इसके बारे में अन्य किसी को कोई हक नहीं है कि वह तय करे कि गाय का क्या होगा। संघ के जो लोग गाय पालते हैं वे संघ की विचारधारा के अनुसार गाय पालें इस पर किसी को आपत्ति नहीं होगी ,लेकिन जो संघ की विचारधारा को नहीं मानते और नहीं जानते,वे किसान गाय के बारे में निजी तौर पर फैसला करें कि उनको गाय के साथ क्या करना है ।   

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