गुरुवार, 8 जनवरी 2015

विवेकवाद के हत्यारे

                                    
  पेरिस में व्यंग्य पत्रिका चार्ली हेब्दो "पर किया गया हमला निंदनीय है। इस हमले में १२लोग मारे गए हैं जिनमें 10 पत्रकार भी हैं। इस व्यंग्य पत्रिका ने आईएसआईएस के प्रधान पर व्यंग्य छापा था,जिसके प्रत्युत्तर में आतंकियों ने यह हमला किया , यह पत्रिका फ़्रांस में व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध है और समय- समय पर विभिन्न धर्मों पर व्यंग्य छापती रही है। सारी दुनिया में आतंकी और साम्प्रदायिक संगठन जिस तरह धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं उससे धर्म के प्रति सारी दुनिया में धारणा ही बदल गयी है। आतंकी और साम्प्रदायिक संगठनों के द्वारा धर्म का इस्तेमाल करने से धर्म का मूल चरित्र ही बदल गया है। धर्म का मूल चरित्र प्रेम और सहिष्णुता का था लेकिन नए रुपों में धर्म अब भय का प्रतीक बन गया है। 
    
          असल में  धर्म मध्यकालीन अविवेकवाद है। उससे निरंतर मुक्त होकर सोचने और आचरण करने की ज़रुरत है। दुर्भाग्य यह है कि आधुनिकयुग में धर्म की अंधी चली हुई है। चारों ओर संतों-महंतों-धार्मिक चैनलों की बाढ़ आ गयी है। धर्म के नाम पर राजनीति हो रही है , वोट माँगे जा रहे हैं,धार्मिक समूह में जीने और सहने की बातें कही जा रही हैं,उनके मानने पर ज़ोर दिया जा रहा है, धार्मिक पहचान में सोचने और जीने के नए -नए फ़ार्मूले जीवनशैली- स्वास्थ्य आदि के नाम पर  ज़ेहन में उतारे जा रहे हैं। सच यह है धर्म का जितना बर्बर इस्तेमाल आधुनिककाल में देख रहे हैं वैसा तो मध्यकाल में भी नहीं देखा गया। आधुनिककाल में धर्म को हम विभिन्न वैचारिक धार्मिक रंगतों में देख रहे हैं और इन सभी रंगतों का एक ही लक्ष्य है धर्म के सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व को स्थापित करना, हर हालत में धर्म के आधार पर सोचने ,मानने और आचरण करने के लिए विवश करना । इस नज़रिए का आतंकी और साम्प्रदायिक संगठन  खुलकर प्रयोग कर रहे हैं। धर्म की आलोचना करने वालों के खिलाफ हिंसाचार कर रहे हैं,निरीह  जनता पर हमले कर रहे हैं, धर्म के आलोचक बुद्धिजीवियों को निशाना बना रहे हैं ।
     इस समूची प्रक्रिया का एक आयाम  मध्यपूर्व के देशों में सक्रिय धार्मिक आतंकी संगठनों से जुडा है तो दूसरा तथाकथित उदार लोकतंत्र में सक्रिय साम्प्रदायिक -फ़ंडामेंटलिस्ट संगठनों से जुडता है। ईसाई,हिन्दू,बुद्ध ,इस्लाम आदि धार्मिक मताबलम्बियों में ये संगठन अमेरिका,ब्रिटेन,जापान, फ़्रांस,श्रीलंका, चीन, म्यांमार, भारत आदि में आक्रामक और हिंसक रुप में सक्रिय हैं।  ये संगठन खुलकर धर्म के साथ हिंसा का सहारा ले रहे हैं ,कहीं पर वे शारीरिक हमले कर रहे हैं तो कहीं पर वाचिक हमले कर रहे हैं। इन नए धर्मरक्षकों का लक्ष्य है सत्ता हासिल करना और सामाजिक वर्चस्व स्थापित करना।
     पेरिस की व्यंग्य पत्रिका "चार्ली हेब्दो "पर किया गया हमला सामयिक दौर का सबसे बर्बर हमला है। इसमें एक साथ 12 लोग मारे गए हैं। यह व्यंग्य विधा पर तो हमला है ही, साथ ही अभिव्यक्ति की आज़ादी पर भी हमला है। यह धार्मिक आतंकवाद है। धर्म के नाम किया गया हिंसाचार धार्मिक आतंकवाद की कोटि में आता है और यह सामाजिक कैंसर है । यह धर्म के प्रति सम्मान को नष्ट करने वाली प्रवृत्ति है। हम साफ़तौर पर कहना चाहते हैं  लोकतंत्र में व्यंग्य विधा की हर हालत में रक्षा करने की ज़रुरत है, साथ ही निर्भीक आलोचना का सम्मान करना और उसके साथ जीने के संस्कार और आदतें पैदा करें । हम  उनका भी सम्मान करना करना सीखें जो निर्भीक होकर असहमति व्यक्त करते हैं, असम्मान व्यक्त करते हैं। लोकतंत्र का अर्थ है ' स्व' एवं 'अन्य' के प्रति सम्मान और सहिष्णुता व्यक्त की जाय ।हर स्तर पर वाचिक और शारीरिक हिंसाचार  और असभ्य आचरण से बचा जाय ।हिंसा, असभ्यता और अविवेक ये तीन नरक द्वार हैं धार्मिक आतंकवाद के। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...