शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

युवाओं का नरक और मोदी का कौशल



   हाल ही में 11शहरों के स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले दस हज़ार युवाओं में बंगलौर स्थित " चिल्ड्रन्स मूवमेंट्स फ़ॉर सिविल एवेयरनेस " नामक संस्था ने एक सर्वे किया जिसमें यह तथ्य सामने आया है कि आधे से ज्यादा युवा यह मानते हैं कि लोकतंत्र की तुलना में फौजीशासन अच्छा होता है, पैंसठ फ़ीसदी युवा मानते हैं कि विभिन्न धर्मों के लड़के- लड़कियों में मिश्रण नहीं होना चाहिए। आधे से ज्यादा युवा यह मानते हैं कि लड़कियां उत्तेजक कपड़ों के जरिए पुरुषों को उत्तेजित करती हैं। आधे से ज्यादा युवा मानते हैं औरतों के पास हिंसा स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। सर्वे में आधे से ज्यादा युवाओं की राय है कि देश को तानाशाह नेता की ज़रुरत है । 
          यह सर्वे इस बात का प्रतीक है कि हमारे देश में लोकतंत्र की चेतना कितनी कमज़ोर है और लोकतांत्रिक भावबोध और लोकतांत्रिक मूल्यों से रहित किस तरह का युवावर्ग हमारे समाज में निर्मित हो रहा है। ये वे युवा हैं जो शिक्षित हैं और जिन तक लोकतंत्र के फ़ायदे पहुँचे हैं। इससे यह भी पता चलता है कि हमारी आधुनिक शिक्षा और मीडिया की समस्त प्रस्तुतियाँ किस तरह का अ-लोकतांत्रिक युवा पैदा कर रही हैं। इससे यह भी पता चलता है कि जो संगठन  युवाओं में अ-राजनीति की राजनीति कर रहे हैं वे किस तरह सफल हो रहे हैं और जो संगठन छात्रों और युवाओं में लोकतांत्रिक और परिवर्तनकामी राजनीति करते रहे हैं वे किस तरह असफल हैं। 
               लोकतंत्र के आचरण, आदर्श और नेतागण युवावर्ग में लोकतांत्रिक आस्थाएँ पैदा करने में एकदम असफल रहे हैं। ये वे युवा हैं जो लोकतंत्र,फौजीशासन और तानाशाही को आलोचनात्मक ढंग से नहीं जानते। इनके लिए लोकतंत्र का मतलब वोट डालना मात्र है। लोकतंत्र महज़ वोट नहीं है । यह जीवन मूल्य और आचरण भी है। दुर्भाग्य की बात है कि हमारे अधिकतर नेताओं, सांसदों, विधायकों का आचरण लोकतंत्र के अनुरूप नहीं दिखता , आचरण में वे अ-लोकतांत्रिक मूल्यों का अनुसरण करते हैँ। लोकतंत्र के सुफल लेने और बदले में अलोकतांत्रिक आचरण करने के कारण ही युवाओं में लोकतंत्र के प्रति संशय और संदेह का भाव है। हमारे लोकतांत्रिक प्रतिनिधियों ने यदि लोकतांत्रिक आचरण करके मिसाल क़ायम की होती तो युवाओं में लोकतंत्र के प्रति क्रेज़ होता, नेताओं और राजनीतिक दलों के अ-लोकतांत्रिक आचरण के साथ -साथ युवाओं को मीडिया और विज्ञापन जगत के अ-लोकतांत्रिक व्यवहार और संरचनाओं ने प्रभावित किया है। 
     मीडिया और विज्ञापन जगत के सर्जनात्मक लोग अपने भावों-विचारों और माल की अभिव्यक्ति के लिए जमकर लोकतंत्रविरोधी रणनीतियों का संप्रेषण के लिए इस्तेमाल करते रहते हैं इससे युवाओं में लोकतंत्र विरोधी भावबोध का तेज़ी से प्रचार प्रसार हुआ है। 
     युवाओं में अलोकतांत्रिक भावबोध पैदा करने के दो बडे संस्थान हैं पहला है परिवार और दूसरी है हमारी शिक्षा व्यवस्था। देश आजाद हुआ, समाज इक्कीसवीं सदी में गया, लेकिन परिवार का समूचा तानाबाना अभी तक अ-लोकतांत्रिक और पुंसवादी बना हुआ है , युवाओं के लोकतंत्र विरोधी संस्कारों को सबसे बड़ी खुराक यहीं से मिलती है। यही युवा जब स्कूल-  कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाता है तो वहाँ पर भी शिक्षकों और पाठ्यक्रमों के जिस तंत्र से दो-चार होता है , वह भी उसके अंदर लोकतांत्रिक विवेक पैदा नहीं करता। हमारे अधिकांश शिक्षक कक्षा से लेकर आम जीवन तक अ-लोकतांत्रिक आचरण करते हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनमें कोई निश्चित विवेक और नजरिया देखने को नहीं मिलता। सबसे सफल शिक्षक वह माना जाता है जो ख़ूब पैसा कमाता हो, नौकरी दिलाने में सफल हो, हर क़िस्म के छल-छद्म में उस्ताद हो,प्रयोजनमूलक कामों में युवाओं की प्रयोजनमूलक मदद करे। ज्ञानी, खोजी,आलोचनात्मक विवेक पैदा करने वाले शिक्षक को आजकल के युवा असफल शिक्षक मानते हैं, इस तरह के शिक्षक से वे दूर रहते हैं, इस तरह के शिक्षक की उनके मन पर कोई चीज असर नहीं करती। क्योंकि हमारी शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा का मतलब नौकरी तय कर दिया है। बढ़िया शिक्षक वह जो नौकरी दिलाने के प्रयोजनमूलक गुर सिखाए, नौकरी दिलाए। 
                 युवाओं में लोकतंत्रविरोधी भावबोध पैदा हो इसके लिए जरुरी है कि सबसे पहले परिवार को लोकतांत्रिक बनाओ। परिवार के सदस्यों में समानता पैदा की जाय। परिवार के प्रत्येक सदस्य की बातें ध्यान से और विश्वास के साथ सुनी और मानी जाय। संदेह और निगरानी की बजाय शिरकत और ज़िम्मेदारी का भावबोध पैदा किया जाय, परिवार को मौजूदा युग के अनुकूल रुपान्तरित किया जाय।
      इसी तरह शिक्षा को स्किल डवलपमेंट की बजाय ज्ञान ,आलोचनात्मक विवेक और खोज के प्रति उन्मुख किया जाय। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्किल डवलपमेंट का नारा वस्तुत: ज्ञानविरोधी और खोजविरोधी नारा है। यह कामकाजी कौशल सिखाने वाला नारा है। कामकाजी कौशल से युक्त व्यक्ति यदि ज्ञानशून्य है तो उसके एक अच्छे ग़ुलाम में तब्दील होने की संभावनाएँ होती हैं। मोदी सरकार चाहती है हमारा देश सारी दुनिया को ज्ञानी नहीं ग़ुलामी के कौशल से युक्त लोग ग़ुलाम सप्लाई करे। ऐसे लोग बनाएँ जो कामकाजी कौशल में सक्षम हों लेकिन अनालोचनात्मक विवेक से लैस हों। यही वह प्रस्थान बिंदु है जहाँ पर मोदी नए युवाओं को अपील कर रहा है और तदनुरूप अ-लोकतांत्रिक आचरण करके भी " मोदी मोदी" के जयकारे लगवा रहा है। 

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