मंगलवार, 25 नवंबर 2014

फेसबुकिए मोदीभक्तों का कष्ट


     मोदी पर मेरे निरंतर लेखन से मोदीभक्त कष्ट में हैं,कुछ गैर मित्र भी परेशान हैं कि मैं मोदी पर इतना क्यों लिख रहा हूं,लोकतंत्र का तकाज़ा है कि नेताओं का और खासकर नीति निर्माता नेताओं की गतिविधियों और बयानों का रीयल टाइम में मूल्यांकन किया जाय| मीडिया पर मोदी के अनुकूल वातावरण बनाए रखने का अमीरों का भयानक दबाव है, इस दबाव का प्रत्युत्तर एक नागरिक के नाते ठोस राजनीतिक आलोचना-प्रत्यालोचना के जरिए ही दिया जा सकता है,इससे लोकतंत्र मजबूत होगा| 
लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरुरी है कि संघ-भाजपा के नीतिगत प्रयासों को सीधे आलोचना के केन्द्र में लाएं, फेसबुक सशक्त माध्यम है और इस पर चलने वाली बहसों की नीति निर्माता अवहेलना नहीं कर सकते,फेसबुक में चलने वाली बहसें अनेक मसलों पर समाचार टीवी और अन्य माध्यमों को भी प्रभावित करती हैं,फेसबुक लेखन भडुआ लेखन न बने,फेसबुक मीडिया भडुआ मीडिया न बने इसके लिए जरुरी है कि इस पर जमकर देश-विदेश की राजनीति और संस्कृति पर बातें हों|
फेसबुक पर एकवर्ग ऐसे लोगों का है जिनके पास भडुआ मनोदशा है,वे इस माध्यम को भडुआ मीजिसम बनाने में लगे हैं,कुछ के लिए मात्र फोटो स्टूडियो है तो कुछ के लिए भाषा के अश्लील और अशालीन प्रयोगों का मीडियम है,इसी तरह कुछ मात्र पाठक के नाते आते हैं, फेसबुक पर युवाओं का बहुत बडा हिस्सा भी है जिनके पास लोकतांत्रिक संघर्षों का कोई अनुभव नहीं है| ये युवा संघर्ष की भाषा में देश को नहीं देखते,इनके लिए देश का कैरियर और मीठे सपनों के अलावा कोई महत्व नहीं है| स्त्रियों बहुत कम अंश है जो फेसबुक पर लिखता है,कायदे से औरतों की सक्रियता बढनी चाहिए | औरतें जितनी सक्रिय होंगी फेसबुक लेखन उतना ही वैविध्यपूर्ण बनेगा|फेसबुक पर लोकतांत्रिक कम्युनिकेशन की औरतें धुरी बन सकती हैं| उनके सक्रिय होने से इस मीडियम पर तल रही लफंगई कम होगी | औरतें जहां नहीं बोलतीं वहां लफंगे गुलगपाड़ा ज्यादा मचाते हैं|

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