गुरुवार, 27 नवंबर 2014

पाक अछूत नहीं है मोदीजी

       सार्क देशों के नेपाल सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में जो भाषण दिया उसमें उन्होंने एकबार भी पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया। उन्हें श्रीलंका याद आया,नेपाल याद आया,बंगलादेश और मालदीव को उल्लेख योग्य समझा लेकिन पाकिस्तान का उन्होंने जिक्र तक नहीं किया। यहां तक कि 26/11की घटना का जिक्र किया, लेकिन न तो आतंकी संगठनों का कोई जिक्र किया और न पाकिस्तान का जिक्र किया। मोदी ने कहा ''आज जब हम 2008 में मुंबई में उस खौफनाक आतंकी घटना को याद करते हैं तो हमें अपने लोगों को खोने का कभी न खत्‍म होने वाला दर्द महसूस होता है। आतंकवाद और अंतर्राष्‍ट्रीय अपराधों से लड़ने के लिए हमने जो प्रतिज्ञा की है उसे पूरा करने के लिए हमें साथ मिलकर काम करना होगा।'' इन पंक्तियों के अलावा पूरे भाषण में आतंकवाद का कहीं कोई जिक्र नहीं है। 

मोदी जानते हैं कि दक्षिण एशिया के देशों में सबसे तनावपूर्ण संबंध भारत-पाक के बीच में हैं। इन तनावपूर्ण संबंधों को 'हठी राजनीति' के आधार पर सामान्य नहीं बनाया जा सकता। खासकर विदेशनीति के मामले में हठ नहीं चल सकता। विदेशनीति के तमाम चैनल और कोशिशें देशज दबावों और तनावों से मुक्त होकर ही सामान्य रुप में काम कर सकते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मनमोहन सरकार के जमाने में संघ का दबाव काम करता था और मोदी सरकार के जमाने में पाक के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के मामले में संघ का ही दबाव विदेशनीति पर असर डाल रहा है। मोदी सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे संघ के पाकविरोधी हठवाद से विदेशनीति को मुक्त रखे। संघ की मुश्किल है कि वह विदेशनीति के ऊपर दबाव बनाए रखने के चक्कर में देश-विदेश में पाकविरोधी मुहिम में तेजी बनाए रखता है।

यह सच है भारत को पाक प्रशिक्षित –संचालित आतंकी संगठनों से हमेशा खतरा बना रहता है और वे आए दिन जम्मू-कश्मीर में खासतौर पर हिंसक हरकतें करते रहते हैं। लेकिन इस बात को आधार बनाकर पाक से संबंध बिगाड़ना सही नहीं होगा। हमें पाक सरकार और पाक की जनता को आतंकियों से अलग करके देखना चाहिए। संघ की मुश्किल है कि वह पाक शासन,पाक जनता और आतंकी संगठनों एक साथ मिलाकर देखता है। सबके खिलाफ उन्मादी बयानबाजी करता रहता है, इससे भारत-पाक के बीच तनाव बना रहता है, मुसलमानों के प्रति घृणा बनी रहती है। मोदी सरकार ने अब तक पाक से बातचीत न करने का जो बहाना दिया है वह सही नहीं है,मोदी सरकार का कहना है पाक ने हुर्रियत कॉफ्रेस के नेताओं के मुलाकात करके सदभाव का माहौल तोड़ा है इसलिए बातचीत नहीं करेंगे। सच यह है जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों तक संघ, पाकविरोधी गरमी बनाए रखने के लिए विदेशनीति का दुरुपयोग कर रहा है, जिससे जम्मू-कश्मीर में वोटबैंक बनाया जा सके।

उल्लेखनीय है पाक स्थित आतंकी हाफिज सईद से वेदप्रताप वैदिक मिले तो संघ को कोई परेशानी नहीं हुई, पाक ने भी इस मुलाकात पर आपत्ति नहीं की,बल्कि उलटे सईद-वैदिक मुलाकात की पाक सरकार ने ही व्यवस्था करायी, सारा देश जानता है कि मोदी सरकार ने ही वैदिक सरकार को रहस्यमय मिशन के लिए पाक भेजा था। वैदिक के संघ के साथ मित्रतापूर्णसंबंध हैं,वे उनके जलसों में जाते रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव खत्म होते ही भारत-पाक बातचीत के लिए मोदीजी राजी होंगे।

पाकहठ के कारण संघ और उसका भोंपू मीडिया लगातार इस्लाम,पाक और मुसलमान इन तीनों के खिलाफ अहर्निश प्रौपेगैण्डा कर रहा है। इससे समूचा माहौल विषाक्त हो रहा है। विदेशनीति को घरेलू वोटबैंक के लिए और खासकर बहुसंख्यकवाद के आधार पर हिन्दुओं को गोलबंद करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। संघ को यदि सच में देशसेवा करनी है तो पाकहठ त्यागना होगा। पाक को स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र के रुप में सम्मान देकर बात करने की आदत डालनी होगी। पाक हठ से पाक को मदद मिल रही है भारत को नहीं। पाक को विश्व रंगमंच पर हम अलग-थलग नहीं कर पा रहे हैं।



दूसरी बात यह कि भारत के हित में है कि पाक में लोकतंत्र रहे और वहां काम करने वाली लोकतांत्रिक सरकार को हम समर्थन दें। पाक में लोकतंत्र का अभाव हमारे लिए और समूचे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए खतरा है। पाक स्थित आतंकी संगठन लगातार पाक में लोकतंत्र के अभाव का दुरुपयोग करते रहे हैं। पाक में इस समय लोकतांत्रिक ढ़ंग से चुनी गयी सरकार है और पाक में लोकतंत्र के निर्माण की प्रक्रिया चल रही है जिसमें हमें लोकतांत्रिक शक्तियों का समर्थन करना चाहिए। मोदी सरकार ने पाकहठ के आधार पर पाक की लोकतांत्रिक सरकार से बातचीत बंद करके अप्रत्यक्षतौर पर पाक की अ-लोकतांत्रिक ताकतों का मनोबल ऊँचा उठाने का काम किया है। बेहतर यही होगा कि मोदी सरकार पाठ हठ छोड़े और पाक के प्रति अछूतभाव त्यागे।

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