शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

गुमशुदा 39 के कवरेज से उठे सवाल


        एबीपी न्यूज ने इराक में आईएसआई के द्वारा अपहृत किए गए 40भारतीय मजदूरों पर कल (28जून 2014) एक बेहतरीन तथ्यपरक कार्यक्रम पेश किया। साथ में अपने चैनल की राय भी दी कि कार्यक्रम में प्रस्तुत तथ्यों की खासकर 39मजदूरों की हत्या की वह पुष्टि नहीं कर सकता। इसके बावजूद हमें इस कार्यक्रम से उठे सवालों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। यह सच है कि आम आदमी पार्टी के सांसद ने लोकसभा के पिछले सत्र में यह मसला सबसे उठाया था, उस समय किसी ने इस मसले की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया,यहां तक कि विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने भी आश्वासन देकर सारे मसले को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया। लेकिन कल के टीवी कवरेज ने इस मसले को जिंदा कर दिया है। इस मसले पर विदेशमंत्रालय अभी तक बयान नहीं दे पाया है।
      स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन मजदूरों के अपहरण के प्रसंग का सरकार और उसका तंत्र निगरानी  कर रहा था, आतंकियों के चंगुल से भागे एक मजदूर से भी इराक स्थित दूतावास ने संपर्क किया, लेकिन इस समय वह मजदूर कहां है,कोई नहीं जानता ,साथ ही 39मजदूर किस अवस्था में हैं कोई नहीं जानता।  सरकार ने अपने बयान में भी कहा था कि उसे मालूम है कि भारतीय मजदूरों को बंदी बनाकर कहां रखा गया है। इसके बाद क्या हुआ किसी को कुछ नहीं मालूम। कल हठात 2बंगलादेशी नागरिकों के बयान सुनाकर टीवी चैनल ने सारे देश का ध्यान इस समस्या की ओर खींचा है और पत्रकारिता के लिहाज से यह स्वस्थ बात है। सरकार का पूरा तंत्र जो अब तक सोया पड़ा था हठात हरकत में आ गया है और विदेशमंत्री कह रही हैं कि तथ्यों को जानकर ही वे बयान देंगी। सवाल यह है क्या इस घटना की दैनंदिन सूचनाएं-रिपोर्टिंग मंत्री महोदया को हमारा इराक दूतावास नहीं कर रहा था ? रीयलटाइम में ट्विट करने वाले पीएम और उनके मंत्री एक भी ट्विट क्यों नहीं कर पाए ? क्या मंत्रालय के पास इतनी भी जानकारी नहीं है कि तुरंत कुछ कहा जाय ? सूचनाएं बताती हैं कि 10जून2014 को इराक के मोसुल इलाके में 40 भारतीय मजदूरों का आतंकियों ने अपहरण किया था। इनमें से एक मजदूर किसी तरह भागने में सफल रहा। यह खबर सबसे पहले भारतीय मीडिया में आई। जबकि भारतीय मीडिया में बंगलादेश के मजदूरों के अपहरण की बात एकसिरे से गायब रही है ,लेकिन एबीपी न्यूज की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि कुल91मजदूरों का आतंकियों ने अपहरण किया था जिनमें 51 बंगलादेशी मजदूरों को उन्होंने मुसलमान होने के कारण बाद में छोड़ दिया और 40 भारतीयों को उन्होंने झुंड से अलग करके गोलियों से भून दिया। 
     बंगलादेश के जिन दो चश्मदीद मजदूरों का टीवी कवरेज में चैनल ने इस्तेमाल किया है,उनके बयान के अलावा और किसी स्रोत से इस खबर की पुष्टि नहीं हुई है। उल्लेखनीय है कि आईएसआईएस का अब तक का रवैय्या रहा है कि वे जिनको गोलियों से भूनते हैं उनके बारे में खुद भी बयान जारी करते हैं, वीडियो जारी करते हैं,लेकिन अपहृत मजदूरों के बारे में उन्होंने कोई बयान जारी ही नहीं किया,न तो अपहरण का बयान जारी किया और न हत्या करनेवाली घटना पर बयान जारी किया। दूसरी समस्या यह है कि भारत सरकार यह कहती रही है कि वे जानते हैं इन मजदूरों को बंदी बनाकर रखा हुआ है और वे प्रयास कर रहे हैं रिहाई के। सवाल यह है कि उन प्रयासों में कोई प्रगति हुई या नहीं ? विदेशमंत्री ने विभिन्न स्तरों पर मजदूरों की रिहाई के लिए बातें की हैं लेकिन कोई परिणाम सामने नहीं आया। इसी प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कई हजार भारतीयों और अपहृत नर्सों को छुड़ाने में सरकार को सफलता मिली है। लेकिन इस चक्कर में 39मजदूरों की रिहाई का मामला अभी तक अटका पड़ा है। कई स्रोतों से यह भी खबर आई थी कि आतंकियों ने 39मजदूरों की रिहाई के बदले मोटी रकम फिरौती के रुप में मांगी थी, जिसे भारत सरकार ने देने से मना कर दिया था। तीसरी मुश्किल यह है कि इराक के जिस इलाके में घटना हुई और जहां पर ले जाकर 39 मजदूरों का 'कत्ल' हुआ है,उसके बारे में इराक स्थित राजदूत या विदेश मंत्रालय या अन्य एजेन्सियों का कोई बयान अभी तक क्यों नहीं आया ? एबीपी न्यूज की खबर जब तक पुष्ट नहीं होती तब तक वह महज़ 'अघटित घटना' की खबर ही कही जाएगी। बेहतर यही होगा कि विदेश मंत्रालय विस्तार के साथ सभी तथ्यों का खुलासा करते हुए श्वेतपत्र के रुप में विस्तृत बयान जारी करे।  

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