शनिवार, 6 सितंबर 2014

नरेन्द्र मोदी का डिजिटल टाइमपास



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब कल टीवी पर शिक्षक दिवस के बहाने बोल रहे थे तो वे सामान्यबोध के धरातल से सम्बोधित कर रहे थे। सामान्यबोध ने उनके राजनीतिकबोध को दबाए रखा । असल में वे बच्चों की चेतना के दबाव में थे। जैसा उम्मीद थी सब कुछ नियोजित था और नियोजन में कोई ऐसी बात नहीं घटती कि वक़्ता को परेशानी हो या उलझन हो। बच्चों में मोदी को लेकर कुतूहल था और मोदी अपनी शैली से उसे उभारने की कोशिश कर रहे थे । बच्चों के सवाल बच्चों जैसे थे लेकिन मोदी के जबाव बच्चों के अनुकूल नहीं थे बल्कि पीएम के अनुकूल थे। 
    प्रधानमंत्री का काॅमनसेंसभाषण मीडिया के पैरामीटर के अनुसार तय किया गया था और उसमें उन बातों को ही कहने पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया जो बातें बच्चे आए दिन अपने स्कूलों में शिक्षकों या माता-पिता से सुनते हैं। सुनें हुए को सुनना कोई असर नहीं छोड़ता , हाँ, उससे टाइमपास जरुर होता है।फलत:बच्चों के साथ मोदी सत्र टाइमपास का डिजिटल रुप था। 
    डिजिटल टाइमपास की यह ख़ूबी है वहाँ पर कहीं गयी बातें तेजगति से आती हैं और जाती हैं। चूँकि टाइमपास में रुढिबद्ध सम्प्रेषण के रुपों का प्रयोग करते हैं अत: कम्युनिकेशन बड़ा सरल- सहज लगता है। सरल- सहज कम्युनिकेशन का मतलब यह नहीं है कि सम्प्रेषक सरल - सहज है। असल में भाषायी रुढियों का प्रयोग सरल का विभ्रम खड़ा करता है लेकिन यह विभ्रम क्षणिक होता है। डिजिटल कम्युनिकेशन जितने देर चलता है उतनी देर असर रहता है बाद में उसका असर नदारत हो जाता है, जैसे पोर्न फ़िल्म का असर जब तक चलती है तब तक असर रहता है बंद हुई ,असर ग़ायब। कम्प्यूटर चल रहा है तो आप सक्रिय हैं यदि बंद कर दिया तो कम्प्यूटर असरहीन होता है। यही हाल मोदी के डिजिटल भाषणों का है। चल रहे थे तो असर था ,बंद हैं तो असर ख़त्म।यही वजह थी कि मोदी के भाषणों को तक़रीबन १साल अहर्निश चलाया गया।
       शिक्षक दिवस पर मोदी कम्युनिकेशन की मूल चिन्ता थी 'हज़म 'करने की। वे चाहते थे शिक्षक दिवस के प्रतीक पुरुष के रुप में जाने जाएँ या फिर महान विचारक के रुप जाने जाएँ! लेकिन यह सब संभव नहीं हो पाया। क्योंकि 'शिक्षक'को हज़म करना संभव नहीं है । उसकी सत्ता-महत्ता तो राज्यसत्ता से स्वायत्त है और यह स्थिति उसने सैंकडों सालों में अर्जित की है। शिक्षक संस्थान है उसे डिजिटल क्रांति से अपदस्थ नहीं कर सकते। शिक्षक -छात्र के सम्बन्ध का कोई विकल्प नहीं है। अमेरिका में डिजिटल क्रांति आज तक शिक्षक को अपदस्थ नहीं कर पायी है। 

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