रविवार, 3 मार्च 2013

चुनावी पापुलिज्म की आम बजट से विदाई


       

      एक जमाना था केन्द्रीय बजट के आने के पहले आमलोगों में उत्सुकता होती थी ,आम आदमी मन लगाकर रेडियो –टीवी पर सुनता-देखता  था कि केन्द्र सरकार के आमबजट में नया क्या आनेवाला है ?  लेकिन इनदिनों बजट को लेकर जिज्ञासा एकसिरे से खत्म हो गयी है।मीडिया का भी वित्तमंत्री पर कोई दबाब नजर नहीं आया।  
     आमबजट को लेकर सांसदों से लेकर आम आदमी तक बढ़ते बेगानेपन ने एक नए किस्म के आर्थिक अज्ञान को बढ़ावा दिया है। कायदे से संचारक्रांति के दौर में बजट की सूचनाओं का विवेचन ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए लेकिन हो उलटा रहा है। आम बजट आज सबसे ज्यादा रहस्यमय दस्तावेज है और इस रहस्य को कारपोरेट मीडिया ने जमकर बढ़ावा दिया है।
वित्तमंत्री पी.चिदम्बरम् ने जब पिछले सप्ताह सन् 2013-14 का आमबजट पेश किया तो उन्होंने पहला अच्छा काम यह किया है कि बजट को चुनावी राजनीति से पृथक् कर दिया है। पहले बजट में चुनावी प्रलोभन हुआ करते थे लेकिन इसबार के बजट में कोई आर्थिक प्रलोभन नहीं हैं।
यह मनमोहन सरकार का आखिरी बजट है। बजट को चुनावी राजनीति से अलग करने का अर्थ है देश की अर्थव्यवस्था को पापुलिज्म से अलग करना। इससे यह भी संकेत मिलता है कि आगामी चुनाव में कॉग्रेस कोई पापुलिज्म का नारा और योजनाएं उछालने नहीं जा रही है ।इसका एक अन्य आयाम यह भी है मीडिया प्रौपेगैण्डा के जरिए मौजूदा विकास योजनाओं की उपलब्धियों को आने वाले समय में खूब उछाला जाएगा।
   सन् 2013-14 के आमबजट की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इससे मंदी से लड़ने में कोई बड़ी मदद नहीं मिलेगी। इसका प्रधान कारण यह है कि केन्द्र सरकार के पास बजटघाटा कम करने के वैज्ञानिक विकल्पों का अभाव है। बजटघाटा 5,20,925 करोड़ रूपये का है।  जबकि लक्ष्य था 5,73,630करोड़ रूपये। यानी केन्द्र सरकार सारी कोशिशों के बावजूज बजटघाटा कम करने का लक्ष्य हासिल नहीं कर पायी है। मनमोहन सरकार के बजटघाटे के लक्ष्य को हासिल न कर पाने के पीछे प्रधान कारण है अमीरों को दी गई आर्थिक सुविधाएं। जबकि केन्द्र सरकार ने आम आदमी को मिलने वाली सब्सीडी में कटौती की है। पिछले साल के बजट की तुलना में इस साल 4फीसदी की कटौती की गयी है।
  सन् 2013-14 के आम बजट में चमड़े से बनी चीजें और सिलेसिलाए कपड़े सस्ते होने की संभावना है वहीं दो हजार से ज्यादा की कीमत के मोबाइल फोन महंगे हो जाएंगे। इसके अलावा वातानुकूलित रेस्टोरैंट में खाना महंगा होगा।
  एक करोड़ रूपये से ज्यादा आमदनी वाले 42,800 लोगों पर 10 फीसदी अधिभार लगाने की घोषणा की है जो इस इन धनियों के लिए कोई खास मायने नहीं रखता। इससे इसवर्ग के लोगों में कम आमदनी दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। महिलाओं के विकास के लिए महिला बैंक खोलने का बजट में प्रस्ताव पेश किया गया और इसके लिए आरंभिक पूँजी के तौर पर एक हजार करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। इस बैंक की परिकल्पना आंध्र में राज्य सरकार द्वारा संचालित श्रीनिधि बैंक से ली गयी है। महिला बैंक को रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों से मुक्त रखा गया है ,इस बैंक को सार्वजनिक क्षेत्र में खोला जाएगा और इसके लिए अलग से कानून भी बनाया जाएगा।
    इसी तरह छोटे शहरों में अपना पहला मकान खरीदने का सपना देख रहे लोगों को वित्त मंत्री ने ब्याज पर छूट का तोहफा दिया है। वित्त मंत्री ने कहा कि 40 लाख रुपये मूल्य तक के मकान खरीदने वालों को ब्याज पर मिलेगी अतिरिक्त 1 लाख रुपये की छूट मिलेगी। सरकार की शर्त के मुताबिक 25 लाख रुपये के आवास ऋण पर पहली बार घर खरीदने वालों को ही कर छूट मिलेगी। इसके अलावा यह प्रावधान बेहद छोटी अवधि के लिए किया गया है और अप्रैल 2013 से मार्च 2014 तक मकान खरीदने वालों को ही यह छूट प्राप्त होगी। 2 से 5 लाख के स्लैब में आने वालों को अब 2,000 रुपये का टैक्स क्रेडिट मिलेगा।
     आमआदमी का उपभोगखर्चा विगत 3सालों से 8फीसदी चला आ रहा है उसमें इस साल मात्र 4फीसदी इजाफा हुआ है। लेकिन इससे महंगाई पर अंकुश लगाने में सफलता नहीं मिली है। पिछले साल की तुलना में सब्सीडी कम हुई है। खाद्य सब्सीडी का मनमोहन सरकार खूब हल्ला मचाती रही है लेकिन इसबार के बजट में खाद्य सब्सीडी में पिछले साल की तुलना में पांच हजारकरोड़ रूपयों की कटौती की गयी है। जबकि वित्तमंत्री ने फूड़ सब्सीडी के लिए 10हजार करोड़ रूपये अतिरिक्त देने की बात कही है। लेकिन वास्तव अर्थ में फूड़सब्सीडी में पिछले साल की तुलना में इस साल 5हजार करोड़ रूपये की कटौती की गयी है। साथ ही पिछले साल की तुलना में इस साल तेल और पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सीडी में तीस हजार करोड़ रूपये की कटौती की गयी है। संशोधित आंकड़े ज्यादा ही होंगे।
    मनरेगा योजना के मद में पिछले साल की तुलना में कोई बढोत्तरी नहीं हुई है। जबकि गांवों से लेकर शहरों तक बेकारी में इजाफा हुआ और आर्थिकमंदी चरम पर है।ऐसी दशा में मनरेगा के लिए अतिरिक्त राशि आवंटित करने की जरूरत थी। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र की पचास हजार करोड़ रूपये की संपदा के विनियमन का प्रस्ताव रखा गया है। यानी मनरेगा आदि के लिए धन केन्द्र सरकार सार्वजनिक संपत्ति को निजी हाथों में बेचकर जुगाड़ करेगी।
   इस साल के बजट में पिछले साल की तुलना में शिक्षामद में आवंटित राशि में भी गिरावट आई है। स्वास्थ्य और चिकित्सा के मद में जरूरत से बहुत कम धनराशि आवंटित की गयी है। इसी तरह सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में ग्रामीण विकास के लिए आवंटित राशि कम रखी गयी। आदिवासियों के विकास के चिदम्बरम ने जो धनराशि आवंटित की है वह संवैधानिक नियमों के अनुसार आवंटित धनराशि से कम है। इससाल आदिवासियों के लिए 20900 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं जो संवैधानिक नियमों के अनुसार तयशुदा आनुपातिक आवंटन से कम है।यही दशा अनुसूचित जाति के लिए आवंटित राशि की है वहां पर भी संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करते हुए 50फीसदी कम राशि (47000 हजार करोड़) आवंटित की गयी है।


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