शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

राजारहाट –न्यूटाउन के प्रति ममता की बेरूखी


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धीरे धीरे समझ रही है कि उनके हाथ से समय निकलता जा रहा है। वे अपने सांगठनिक पचड़ों और अपनी पुरानी राजनीतिक मनोदशा के जंजाल से मुक्त होने के बारे में नए सिरे से संगठित होने की कोशिश कर रही हैं। इस कोशिश के क्रम में उन्होंने विगत सोमवार को शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर समिति के अफसरों ,उद्योगपतियों और भवन निर्माताओं के प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग की। पश्चिम बंगाल के शहरों में शहरी सुविधाओं का व्यापक अभाव है। राज्य के शहरों से जुड़े इलाकों में सामान्य शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर की न्यूनतम सुविधाओं का अभाव आज एक ठोस वास्तविकता है। मुख्यमंत्री के साथ हुई इस बैठक में शहरी विकास मंत्रालय के अधिकारियों के अलावा भवन निर्माताओं के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था। 

भवन निर्माताओं ने मुख्यमंत्री से शहरी लैण्डशिलिंग एक्ट को तुरंत समाप्त करने की मांग रखी और कहा कि देश के अधिकांश शहरों में यह कानून खत्म किया जा चुका है लेकिन कोलकाता में अभी तक यह खत्म नहीं हुआ है। इस कानून के कारण भवन निर्माण के क्षेत्र में तेजी लाने में मुश्किलें आ रही हैं। साथ ही नए पूंजी निवेश का मार्ग भी रूका हुआ है। कई भवननिर्माताओं ने राजारहाट-न्यूटाउन में सिंडीकेट की दादागिरी का मसला भी उठाया और यह कहा कि मुख्यमंत्री के सिंडीकेट के खिलाफ बयान दिए जाने के बाबजूद सिंडीकेट की दादागिरी कम नहीं हुई है। मुख्यमंत्री ने इनलोगों की बातों को गंभीरता से सुना और तुरंत कार्रवाई का वायदा किया। उल्लेखनीय है कि यह मीटिंग हाल में सम्पन्न बंगाल विल्ड कॉन्क्लेव के अग्रिम कदम के तौर पर बुलाई गई थी।

राजारहाट न्यूटाउन के प्रसंग में कई प्रमुख तथ्य हैं जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। पहली सच्चाई यह है कि इस नए शहर में सिंडीकेट का आतंक है। सिंडीकेट के बिना कोई काम नहीं किया जा सकता। सिंडीकेट की दादागिरी ममताशासन आने के बाद पैदा नहीं हुई है बल्कि यह वामशासन के दौर में ही इसका जन्म हुआ था। सिंडीकेट दादाओं ने वामपंथी शासकों से लेकर ममता शासन तक सबको ठेंगा दिखाकर रखा है और इस इलाके में उनकी समानान्तर सत्ता है। इसका समूचे इलाके के विकास पर बुरा असर पड़ा है। ममताशासन को खासतौर पर इस संदर्भ में कुछ अप्रिय फैसले लेने होंगे। सिंडीकेट सरगनाओं के खिलाफ स्थानीय पुलिस प्रशासन को सख्ती से निबटने के आदेश दिए जाने चाहिए। साथ ही इस इलाके में सिंडीकेट के आतंक के खिलाफ राज्य के विभिन्न दलों के नेतागण सिंडीकेट दादाओं के समर्थन की नीति त्यागें।

भारत में राजारहाट एक बेहतरीन नवीन शहर के रूप में विकसित होने वाला अत्याधुनिक शहर है। इसकी शहरी योजना को सभी स्तरों पर प्रशंसा मिली है। यहां तक कि यूएनओ ने भी बेहतरीन नियोजित शहर के रूप में इसकी प्लानिंग को स्वीकृति दी है।

आज राजारहाट की स्थिति बेहद खराब है वहां बुनियादी सुविधाओं और सुरक्षा का अभाव है। अनेकों बहुमंजिला भवन पूरे के पूरे बने खड़े हैं और उनमें कोई ऑफिस तक नहीं खुला है। यही हाल रिहायशी इमारतों का है। वहां पर जो लोग रह रहे हैं उनके पास न्यूनतम बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। यहां तक कि डाकसेवा के पहुँचने की भी व्यवस्था नहीं है। दसियों हाउसिंग सोसायटी बनी खड़ी हैं लेकिन उनमें कोई रहने वाला नहीं है। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि ममता सरकार बनने के बाद अचानक इस इलाके में सिण्डीकेट का आतंक चरम पर पहुँच गया और तकरीबन समूचे इलाके में निर्माण कार्य ठप्प हो गया ।

एक अनुमान के अनुसार राजारहाट न्यूटाउन में विभिन्न कंपनियों का तकरीबन 70हजार करोड़ रूये से ज्यादा पैसा लग चुका है और सारा कमकाज जहां का तहां रूका हुआ है। कंपनियां परेशान हैं कि किस तरह इस संकट से निकला जाय। सोमवार की बैठक में बिल्डरों ने अपनी आर्थिक दुर्दशा से भी मुख्यमंत्री को अवगत कराया है। एक बिल्डर ने बताया कि मुख्यमंत्री ने हमलोगों की बातें सुनीं लेकिन कोई ठोस समाधान पेश नहीं किया। उनके सामने जब हुडको के अधिकारियों और पुलिस अफसरों की बैठक के बारे में जिक्र किया गया तो मुख्यमंत्री ने कहा कि वे बात करेंगी।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उद्योगपतियों को बैठक करते समय एक दिक्कत आ रही है कि मुख्यमंत्री कभी भी खुले मन से मीटिंग में शामिल नहीं होतीं। वे अपने एजेण्डे के साथ आती हैं और अपनी बात कहकर चली जाती हैं। इसके कारण उद्योग जगत के साथ राज्य प्रशासन का दुतरफा संवाद नहीं बन पा रहा है। कायदे से बिल्डरों और उद्योगपतियों के साथ बातचीत में उन समस्याओं पर बातें होनी चाहिए जिन समस्याओं को वे लोग उठाते हैं। लेकिन नौकरशाही ने सारा माहौल इस कदर खराब किया हुआ है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ खुलकर विचार विनिमय हो ही नहीं पा रहा है। अकेले में जो उद्योगपति उनसे मिलता है उसकी वे सुनती हैं लेकिन समूह में वे सिर्फ अपनी कहती हैं। राजारहाट-न्यूटाउन को लेकर ममता सरकार ने अब तक जिस बेरूखी का परिचय दिया है उससे उद्योग जगत परेशान है।

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