सोमवार, 26 नवंबर 2012

ममता का नया आनंदराग जमीन लो और कारखाना खोलो


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सारी राजनीति मूलतःआनंद, महोत्सव, मेले, ठेले आदि के तानेबाने में बुनी है। ममता की धारणा है आनंद है तो विकास है। आनंद का जितना व्यापक राजनीतिक उपभोग ममता सरकार ने पैदा किया है वैसा अन्य किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया। वे राजनीतिक तनावों को आनंद से धोना चाहती हैं।  9 नवम्बर को उद्योगपतियों के साथ बैठक-डिनर का आयोजन था और 10 को कोलकाता फिल्म महोत्सव का आरंभ होने जा रहा है। जिसमें महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर हीरो शाहरूख खान आदि के उपस्थित रहने की संभावना है। 

ममता सरकार का बुनियादी लक्ष्य है राज्य के उद्योग और संस्कृति उद्योग को चंगा करना। इस लक्ष्य को पाने के लिए वे अपने नए बदले मिजाज में नजर आ रही हैं। वे तनाव के सवालों से कन्नी काट रही हैं। राज्य की राजनीति के स्वस्थ विकास के लिए यह जरूरी है कि मुख्यमंत्री विकास के सवालों पर केन्द्रित करे। विकास के सवालों पर मुख्यमंत्री की सक्रियता आनंदमय वातावरण के जरिए दिखाई दे रही है। कुछ लोगों को इसमें असुविधा हो सकती है। लेकिन राज्य के राजनीतिक वामस्वर को मद्धिम करने के लिहाज से ममता का आनंदराग मददगार साबित हो सकता है। इससे स्थानीयस्तर पर अ-राजनीतिक माहौल बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही राज्य सरकार विरोधी मीडिया उन्माद के सामाजिक प्रभाव को कम करने में भी मदद मिलेगी। 9 नवम्बर को उद्योगपतियों की बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आनंदराग की पूरी छाप देखने को मिली। वे स्वयं आनंद के मूड में थीं और नए बदले मिजाज में थीं। पहलीबार ऐसा हुआ कि ममता को विगतदिनों में घटित तनावपूर्ण घटनाओं से मुक्तभाव में देखा गया। ममता के बदले मिजाज से अनेक उद्योगपति अचम्भे में थे,वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार नए तेवर की ममता को कैसे समझें।

इस बैठक में मौजूद उद्योगपतियों के मन में ममता विरोधी मीडिया उन्माद का दबाव था इसके कारण वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सीधे सवाल करने से कन्नी काट रहे थे। इससे यह भी पता चलता है कि राज्य सरकार ने ठीक से मीडिया प्रबंधन नहीं किया है। राज्य में मीडिया का राज्य सरकार के प्रति आक्रामक रूख इस संदर्भ में एक बड़ी बाधा बनकर खड़ा हुआ है। मीडिया का राज्य की प्रत्येक घटना को उन्माद की हद तक ले जाकर प्रचारित-प्रसारित करना स्वयं में राज्य के विकास के लिए बड़ी समस्या है।उल्लेखनीय है विगत वाममोर्चा सरकार को भी इस मीडिया उन्माद का सामना करना पड़ा था और उसका राजनीतिक लाभ ममता को मिला था।

पश्चिम बंगाल के बारे में विचार करते समय यह बात सब समय ध्यान में रखी जानी चाहिए कि राज्य के खिलाफ मीडिया हमेशा से आक्रामक मूड में सक्रिय रहा है। मीडिया का आक्रामक रूख मीडिया को तो लाभ पहुँचाता है लेकिन राज्य के विकास में बाधाएं खड़ी करता है। विकासविरोधी और उद्योग विरोधी माहौल बनाने में स्थानीय मीडिया की बड़ी भूमिका रही है। स्थानीय मीडिया की इस तरह की नकारात्मक भूमिका अन्य राज्यों में नजर नहीं आती। खासकर आनंदबाजार समूह की भूमिका इस संदर्भ में नकारात्मक रही है। राज्य के औद्योगिक विकास के लिए जरूरी है कि मीडिया की राज्यविरोधी भूमिका के परे जाकर देखा जाय। इस प्रसंग में वामदलों ,कांग्रेस और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को मिलकर काम करने की जरूरत है। राज्यविरोधी भूमिका निभाते हुए आनंदबाजार समूह की संपत्ति में इजाफा हुआ है। इसके अलावा राज्य का औद्योगिक और राजनीतिक वातावरण तनावपूर्ण बना है। अराजक राजनीतिक शक्तियों को इससे मदद मिली है। यही वो नया परिप्रेक्ष्य है जिसमें 9 नवम्बर को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उद्योगपतियों तो सम्बोधित किया।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा जो भी उद्योगपति राज्य में उद्योग लगाना चाहते हैं उन्हें राज्य सरकार के भूमि बैंक से सीधे जमीन मिल सकती है। जो अन्यत्र उद्योग लगाना चाहते हैं तो उनके प्रस्ताव पर विशेष तौर पर राज्य सरकार ध्यान देगी। प्रस्ताव के आधार पर भूमिबैंक के बाहर की जमीन के बारे में भी राज्य सरकार खरीद-फरोख्त में मदद कर सकती है।उन्होंने यह भी कहा कि नेताओं-दलालों को घूस देने से परहेज करें। मुख्यमंत्री का यह बयान राज्य के औद्योगिक विकास के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण है और इससे उद्योगपतियों का मिजाज बदलेगा। अभी राज्य के पास भूमिबैंक में बड़े पैमाने पर जमीन पड़ी हुई है उस पर कोई बड़ा प्रकल्प नहीं बन पाया है। इसके अलावा जिनलोगों ने उद्योग के नाम पर वामशासन के जमाने में जमीन ली थी और अभी तक काम आरंभ नहीं किया उन सभी उद्योगपतियों को कल-कारखाने खोलने के लिए दबाव पैदा किया जाना चाहिए। पुरानी आवंटित जमीन में एक अच्छी-खासी मात्रा में ऐसी भी जमीन है जिस पर वर्षों से कोई काम आरंभ नहीं हुआ है,ऐसे लोगों से जमीन वापस लेने की प्रक्रिया आरंभ की जानी चाहिए।

राज्य के औद्योगिक विकास की सबसे बड़ी समस्या है स्थानीय राजनीतिक दादाओं का आतंक। इससे निबटने के लिए राज्य सरकार को खास प्रयास करने होंगे। साथ ही पुराने राजनीतिक सोच से बाहर निकलना होगा। पुराना राजनीतिक सोच पूंजीपति को वर्गशत्रु मानकर चलता है। ममता के वाम मित्रों ,खासकर माओवादियों और सांस्कृतिक मित्रों का भी यह मानना है कि पूंजीपति वर्गशत्रु हैं और उनसे ममता सरकार को दूर रहना चाहिए।

शुक्रवार के उद्योगपतियों के जमावड़े में टाटा स्टील प्रोसेसिंग एंड डिस्ट्रीब्यूसन कंपनी लिमिटेड के संदीपन चक्रवर्ती,आईटीसी के कुरूश ग्रांट ,पीयरलेस के एस.के.राय इसके अलावा उद्योगगपति हेमंत कनोरिया,एम.के.जालान ,दीपक जालान,अलका बांगुर, उज्जवल उपाध्याय,आदित्य अग्रवाल, संजीव गोयनका,संजीव गोयनका ,हर्ष नेवटिया आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा एस्सोचैम,फिक्की,बंगाल चेम्बर ऑफ कॉमर्स,सीआईआई,कलकत्ता चैम्बर ऑफ कॉमर्स आदि संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी इस बैठक में भाग लिया। कई उद्योगपतियों से जब इस बैठक के बारे में बातें हुईं तो उनका मानना था कि ममता ने यदि स्थानीय दादाओं के आतंक और धन वसूली को नियंत्रित कर लिया तो इससे औद्योगिक वातावरण को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। इस बैठक की खास बात यह थी कि इसमें उद्योगपतियों के पास मुख्यमंत्री से पूछने के लिए सवाल नहीं थे। उद्योगपतियों ने मुख्यमंत्री से सवाल न करके यह संदेश दिया है कि वे ममता सरकार के काम से मौटे तौर पर संतुष्ट हैं। लेकिन मीडिया में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि सवाल पूछने से ममता नाराज हो सकती थीं इसलिए सवाल नहीं किए गए।








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