गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

हिन्दूतंत्र के उपासक अन्ना हजारे


                 
 हाल के दिनों में अन्ना हजारे के बारे में कारपोरेट मीडिया  ने अनेक मिथों का प्रचार किया है। कारपोरेट मीडिया की अति सक्रियता ने पहला संदेश यह दिया है कि कारपोट मीडिया अब बुद्धिहरण और विवेकहरण का औजार बन गया है। वे एक ऐसा काल्पनिक जगत बनाने में लगे हैं और उस जगत में आम जनता को ठेलने की कोशिश कर रहे हैं जो प्रतिगामी है।
    अन्ना हजारे के तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की परतें खोलने के साथ साथ अन्ना हजारे के आसपास निर्मित वातावरण पर भी हमें नजर रखनी चाहिए। अन्ना को जो लोग देवता मान रहे हैं और उनके जरिए लोकतंत्र का सुंदर भविष्य देख रहे हैं वे नहीं जानते कि अन्ना की राजनीति क्या है ?
       अन्ना की राजनीति ,खासकर पर्यावरण राजनीति के आधार पर उनके वास्तव स्वरूप को जाना जा सकता है। दुखकी बात है कि अन्ना की राजनीति को कारपोरेट मीडिया भारत की भावी राजनीति बनाना चाहता है। अन्ना के प्रति व्यक्तिगत आग्रहों-पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर हमें गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए कि अन्ना ने अपने कर्मक्षेत्र वाले गांवों में आखिरकार कैसी राजनीतिक संस्कृति रची है ? मीडिया ने सारे देश में किन लोगों को अन्ना के पीछे गोलबंद किया है ?अन्ना अंततः किस तरह की राजनीतिक शक्तियों के हाथों में खेल रहे हैं और जमीनी स्तर पर किस तरह की राजनीति कर रहे हैं ? इन सवालों के उत्तर अन्ना के कर्मक्षेत्र के माहौल में छिपे हैं। अन्ना के राजनीतिक सोच में छिपे हैं।
          अन्ना की एनजीओ राजनीति का आधार लोकतंत्र नहीं संघ मार्का हिन्दू धर्म है। इसका वे अपने हरित गांवों में इस्तेमाल कर रहे हैं।  अन्ना की राजनीति को खासकर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को जो लोग जाति,धर्म,राष्ट्र, लिंग,राष्ट्रवाद,अतिवादी राष्ट्रवाद आदि से परे मानते हैं वे विभ्रम के शिकार हैं। प्रसिद्ध पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता मुकुल शर्मा ने अपने एक लेख में यह बात कही है। यह लेख काफिला डॉट कॉम पर छपा है।
    इस लेख का महत्व यह है कि इसमें मुकुल शर्मा ने व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर अन्ना हजारे का विश्लेषण किया है। अन्ना हजारे के विचारधारात्मक चरित्र को जानना इसलिए भी जरूरी है कि उससे हमें उनकी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की संभावनाओं को समझने में मदद मिल सकती है। अन्ना हजारे को सैलीब्रिटी के रूप में मीडिया ने पेश किया है। मुकुल ने पर्यावरण और संकीर्णतावाद के अन्तस्संबंध के संदर्भ में अन्ना ङजारे का विवेचन किया है। इससे यह भी अंदाजा लगेगा कि अन्ना किस तरह का नागरिक समाज बनाना चाहते हैं।
    अन्ना हजारे के महाराष्ट्र स्थित रेलीगन सिद्धी गांव के पर्यावरण संबंधी कामों की बड़ी प्रशंसा हुई है और उसे सत्ता की खास किस्म की वर्चस्वशाली विचारधारा से भी खुराक मिलती रही है और बदले में वे शासकीय विचारधारा की सेवा करते रहे हैं। मुकुल शर्मा ने लिखा है -
"The rural environmental works by Anna Hazare in Ralegan Sidhi village in Maharashtra have been hailed widely, which are fed by, and feed into, certain dominant political cultures of the state. Though developmental and environmental works form the core of his ideological structures, they include other important issues. A belief system of force and punishment, liberal use of Hindu religious symbols, strict rules and codes, evocation of nationalism and ultra-nationalism, ‘pure’ morality and caste hierarchies, with a marginalisation of women, Muslims and Dalits, form the core of his village regeneration. The basis for the authority of Anna comes from a belief system, where the people following him consider it their natural duty to obey, and the exercising person thinks it a natural right to rule. Thus a former village sarpanch of the region states: ‘Whatever Anna says, we do. The whole village follows his words. Anna’s orders work like the army.’ For another villager, ‘Annajee is like God.’ The absolute recognition of an authority locally works in several internalised ways."

"In the process of social transformation, Anna believes that advice, persuasion or counselling do not always work and occasionally force has to be applied. Force can be applied in many forms, physical and social, and often the simple persistent fear of its application regulates society. Force gives a safe and solid grounding to socially accepted values. It is not only Anna Hazare who proposes flogging and fear as essential parts of a green village; it has its wide audience in the village."

आज अन्ना का एक ईमेल मीडिया में आया है जो उन्होंने मल्लिका साराभाई के लिए लिखा है जिसमें अन्ना ने कहा है कि मैं जातिप्रथा को नहीं मानता। लेकिन मुकुल ने साफ लिखा है कि अन्ना अपने कर्मक्षेत्र में ग्राम्य निर्माण की आड़ में हिन्दू धार्मिक प्रतीकों ,उनके कठोर नियमों और कोडस का व्यापक इस्तेमाल करते रहे हैं। साथ ही राष्ट्रवाद और अति राष्ट्रवाद को उभारते रहे हैं। शुद्ध नैतिकता की आड़ में वे जाति श्रेष्ठत्व और हायरार्की को भी उभारते रहे हैं और इस क्रम में उन्होंने दलित,स्त्री,अल्संख्यकों आदि को हाशिए पर डाल दिया है।
     अन्ना के गांवों में उनकी आवाज अंतिम आवाज होती है। मुकुल की बात मानें तो अन्ना ने एकदम फासिस्टों की राजनीति से मिलता जुलता वातावरण इस क्षेत्र में बनाया है। हिन्दू धर्म,भय और ताकत इन तीन तत्वों का वे अपने हरे गांवों के निर्माण के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
   उल्लेखनीय है मुकुल शर्मा ,भारत के उन चंद पत्रकारों में आते हैं जिनकी रिपोर्टिंग विश्वसनीय और लोकतांत्रिक राजनीति के पैराडाइम पर आधारित रही है। विकासमूलक पत्रकारिता में मुकुल शर्मा का क्षेष्ठतम योगदान रहा है।वे इन दिनों एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारत में प्रधान हैं।
    मुकुल ने रेखांकित किया है  अन्ना की हरे गांव की राजनीति जिन इलाकों में हैं वहां पर वास्तव में अन्ना का तालिबानी शासन चलता है। मुकुल के शब्दों में-
   " environmentally sound Ralegan Sidhi, religious symbols are core vehicles for transformation and imposition. Its embodiment in certain places/people legitimises them. The command-obedience relationship also gets its rationale from the belief that a God or a temple is ‘supreme’ and any decision taken in front of them must be obeyed. According to Hazare, Lord Rama set an ideal before every citizen of how to conduct everyday life by his own example. There is need for Lord Shri Krishna to reincarnate and save the country."
" It is not only environmental rules, but also rules governing the entire socio-political life of people that make an authority acceptable. Those who make these rules and those who obey them are legitimate; others illegitimate/illegal. Anna Hazare is deeply concerned with rules and norms with a definite model: “The daily routine enforced in the army such as getting up early in the morning, jogging and physical training thereafter, cleanliness of body, clothing, living quarters and the neighbourhood etc. led to development of a disciplined life, benefits of which I am availing of even today. The habit of giving due respect and regard to the seniors by age, post, or competence was inculcated in us…. This has helped me in conducting the village development work at Ralegan Siddhi according to the rules and regulations decided by us by common consent.” "
अन्ना के गांव की वास्तविकता यह है कि इस इलाके की अनेक मायनों में तालिबानी सांस्कृतिक परिस्थितियां हैं। मुकुल ने आगे लिखा है-
    "Villagers normally say that their village works like an army. As a commandant, Anna orders and we follow. Army discipline is the ideal. The path of rural development here depends in a large measure on many other ‘dos’ and ‘don’ts’. No shop in Ralegan can sell bidis or cigarettes. Film songs and movies are not allowed. Only religious films, like Sant Tuka Ram, Sant Gyaneshwar can be screened. Only religious songs are allowed on loudspeakers at the time of marriages. It is emphasised in the village that the villagers themselves decided not to sell bidis in their shops; they themselves do not watch films or listen to film songs. However, the language of acquiescence can be highly brahaminical and hegemonic."
     हरित गांवों में अन्ना का जो सांस्कृतिक नजरिया व्यवहार में लागू किया जा रहा है उसमें साम्प्रदायिक कठमुल्लेपन और फासिज्म के अनेक तत्व सक्रिय हैं। मुकुल ने आगे लिखा है- "The concept of morality and subsequent codes/behaviours/practices based on it are important elements in the notion of development. Anna’s concern with the moral is couched in his discourse of the nation that exercise control over the private and the public, the personal and the political. For school children there is moral education and practice, comprising physical training, body building, patriotism, obedience, samskars and Hindu culture. Doing surya namaskar and chanting Om is regular for the students. For women, it is stressed that they should certainly look after the household but they must also participate in activities intended to help their community and country. It is stated, ‘Woman is the Universal Mother, The Great Mother. Many such Great Mothers have given birth to Great Sons — Chhatrapati Shivaji Maharaj, Swami Vivekananda for instance.’ She is also a symbol of purity, sublime as well as innate strength. It is significant that much of the problematisation of morality of children, youth and village is done in the context of influence of western, modern culture. ‘Western lifestyle’, ‘modern development’ and ‘invasion of western culture’ invariably emerge as repeated expressions, signifying the collapse of morality in modern India."
     क्या अन्ना हजारे के बारे में इतने व्यापक एक्सपोजर के बाद भी यह कहने की जरूरत है कि अन्ना स्वभाव से लोकतंत्र में नहीं हिन्दूतंत्र में विश्वास करते हैं और हिन्दूतंत्र के भी सबसे संकीर्ण और पिछड़े हुए विचारों,व्यवहार,संस्कार आदि का अभ्यास करते रहे हैं। उनके इस तरह के विचारों का विवेकानन्द ,गांधी,आम्बेडकर ,विनोवा भावे आदि के विचारों के साथ कोई लेना-देना नहीं है। अन्ना के विचार यदि किसी एक संगठन से ज्यादा मिलते हैं तो वह है राष्ट्रीय स्वयं संवक संघ।















3 टिप्‍पणियां:

  1. देश में उठे इस ज्वार को मीडिया हाइप कह कर जनता की तौहीन तो न कीजिए। यह सही है कि यह ज्वार समय के भाटे के साथ मद्धम पड जाएगा पर लोगो के सेंटिमेंट को मात्र मीडिया हाइप नहीं कहा जा सकता ना :)

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