रविवार, 30 जनवरी 2011

28जनवरी जन्मदिन पर विशेष- जोसे मार्ती की विरासत- फिदेल कास्त्रो

             जोसे मार्ती के जन्म की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित विश्व संतुलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैठक के विशिष्ट प्रतिभागियो,देशवासियो,
क्यूबावासियों के लिए मार्ती का क्या महत्व है? मार्ती जब 16 वर्ष के थे तब उन्हें पैरों में बेड़ियों के साथ कठोर कारावास में डाल दिया गया था। जब वे मुश्किल से 18 वर्ष के थे तो उन्होंने 'पॉलिटिकल प्रीजन इन क्यूबा' नामक दस्तावेज में दृढ़ता के साथ कहा था,'ईश्वर मौजूद है लेकिन अच्छाई के विचार में। वह प्रत्येक मानव के जन्म के समय मौजूद रहता है और उनकी आत्माओं में एक शुध्द आंसू रोप जाता है। अच्छाई ही ईश्वर है। आंसू शाश्वत अनुभूति का स्रोत है।'
हम क्यूबावासियों के लिए मार्ती अच्छाई के ऐसे ही विचार हैं।स्वतंत्रता के लिए 10 अक्टूबर 1868 से शुरू हुए संघर्ष को मार्ती के जन्म के ठीक 100 साल बाद जब 26 जुलाई 1963 से फिर शुरू किया गया तो उनके नैतिक सिध्दांतों की विरासत हमारे पास थी जिसके अभाव में हम क्रांति की बात सोच भी नहीं सकते थे। उनसे ही हमें देशभक्ति की प्रेरणा मिली और सम्मान तथा मानव गरिमा का विचार मिला। ऐसे उदात्त विचार दुनिया में और कोई हमें नहीं दे सकता था।
वे वास्तव में असाधारण और विशिष्ट व्यक्ति थे। वे एक सिपाही के बेटे थे तथा उनके माता-पिता स्पेनिश थे। वे अपनी जन्मभूमि की आजादी के लिए पैगंबर बने। वे बुध्दिजीवी और कवि थे। महान संघर्ष शुरू होने के समय वे नवयुवक थे। बाद में वे इस युध्द में ख्याति पाने वाले अपने से अधिक उम्र के अनुभवी सेना प्रमुखों के प्रेम, सम्मान, सहायता और श्रध्दा के पात्र बन गए।वे लोगों में शांति, एकता और सद्भाव के प्रबल हिमायती थे, लेकिन उपनिवेशवाद,दासता और अन्याय के खिलाफ न्यायपूर्ण और आवश्यक युध्द शुरू करने में उन्होंने कोई हिचक नहीं दिखाई। सबसे पहले उन्होंने ही अपना खून बहाया और अपने प्राण न्यौछावर किए। यह निजी परोपकारिता और उदारता का अविस्मरणीय प्रतीक था। जिन लोगों की आजादी के लिए वे लड़े, उनमें से अधिकांश ने अनेक वर्षों तक उन्हें भुलाए रखा लेकिन फिनिक्स की तरह उनकी राख से उनके विचार उभर कर सामने आए। उनकी मृत्यु की आधी शताब्दी के बाद पूरा देश विराट संघर्ष में कूद पड़ा। संघर्ष ऐसे जबर्दस्त विरोधी के साथ था जैसा किसी छोटे या बड़े राष्ट्र ने पहले कभी नहीं देखा था।
आज उनके जन्म की 150वीं वर्षगांठ के कुछ घंटों बाद पूरी दुनिया के विचारक और बुध्दिजीवी उनके जीवन और कृत्य के आगे नतमस्तक होकर भावभीनी श्रध्दांजलि दे रहे हैं।क्यूबा के बाहर की दुनिया को उनसे क्या मिला? उसे मिले शताब्दियों तक याद किए जाने योग्य सृजक और मानववादी के पद-चिह्न।
पद-चिह्न किसके लिए और क्यों? उनके लिए जो दुनिया को बचाने की उनकी जैसी आशा और सपने के साथ आज लड़ रहे हैं और जो कल लड़ेंगे। ये पद-चिह्न इसलिए क्योंकि उन्होंने वह नियति अपनाई जिसे आज मानवता अपने रू-ब-रू देख रही है, जिसके खतरों से वह वाकिफ हो रही है और जिसे उन्होंने अपनी गहरी दृष्टि और महान प्रतिभा के बल पर पहले ही भांप लिया और चेतावनी दी थी।
19 मई 1895 को मार्ती ने इस धरती के बाशिंदों के जीवन के अधिकार के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
अपने नजदीकी दोस्त मैनुअल मरकाडो को लिखे गए अपने विख्यात अधूरे पत्र, जिसे उन्होंने एक औचक लड़ाई में शामिल होने के लिए जाने के कारण बीच में छोड़ दिया था,में उन्होंने इतिहास के लिए अपने अंतरंग विचार छोड़े। ये विख्यात विचार अकसर उध्दृत किए जाते हैं। फिर भी यहां मैं उसका जिक्र करूंगा :मुझे अपने देश के लिए तथा क्यूबा की आजादी के संघर्ष के दौरान अमरीका के एंटिलीज के पार फैलने तथा इस अतिरिक्त ताकत के बल पर हमारी अमरीकी भूमि पर कब्जा करने से रोकने के कर्तव्य के लिए रोजाना अपनी जान का खतरा रहता है। अब तक मैंने जो कुछ किया है और आगे जो कुछ करूंगा वह इसी उद्देश्य के लिए होगा।
अनुकरणीय लैटिन अमरीकी देशभक्त मैक्सिमो गोमेज (जो खुद डोमिनिकन मूल के थे और जिन्हें मार्ती ने क्यूबाई थल सेना का नेतृत्व संभालने के लिए चुना था) के साथ सेंटा डोमिंगो में मोंटे क्रिस्टी घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद तथा क्यूबा के लिए रवाना होने से पहले मार्ती ने अन्य अनेक दैदीप्यमान तथा क्रांतिकारी विचारों के साथ ऐसी प्रशंसनीय बात लिखी जिसे मैं यहां दोहराना चाहता हूं :'स्वतंत्रता के लिए क्यूबा का युध्द...महान मानववादी महत्व की घटना है। एंटिलीज का विवेकयुक्त शौर्य अमरीकी राष्ट्रों की ताकत तथा उनके साथ सही व्यवहार और दुनिया के अभी भी डावांडोल रहे संतुलन के लिए उपयुक्त सेवा दे रहा है।'
इस समय उस दूरस्थ और मृगमरीचिका लगने वाले संतुलन से अधिक आवश्यक और महत्वपूर्ण कुछ नहीं हैइस अंतिम वाक्य को उन्होंने कितनी दूरदर्शिता के साथ लिखा जो आज इस बैठक का केंद्रीय विषय बन गया है। आज उस दूरस्थ और मृगमरीचिका लगने वाले संतुलन से अधिक आवश्यक और महत्वपूर्ण कुछ नहीं है।
जोसे मार्ती के मैनुअल मरकाडो को लिखे पत्र के एक सौ छह वर्ष चार महीने और दो दिन बाद तथा मार्ती और गोमेज द्वारा मोंटेक्रिस्टी घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए जाने के 106 वर्ष, पांच महीने और छह दिन बाद अमरीका के राष्ट्रपति ने 20 सितंबर 2001 को कांग्रेस के सामने अपने भाषण में ये शब्द कहे :'हम अपने पास उलब्ध हर संसाधन का प्रयोग करेंगे।'
'अमरीकियों को केवल एक लड़ाई की उम्मीद नहीं होनी चाहिए, यह अभूतपूर्व तथा लंबा अभियान होगा।'
'प्रत्येक क्षेत्र में प्रत्येक राष्ट्र को फैसला करना होगा कि आप हमारे साथ हैं या आतंकवादियों के साथ हैं।'
'मेरा अपनी सेना के लिए भी एक संदेश है : तैयार रहो। मैंने सशस्त्र सेनाओं को सतर्क कर दिया है और इसका एक कारण है। वह घड़ी आ गई है जब अमरीका को कार्रवाई करनी होगी और हम आप पर गर्व करेंगे।'
'यह सभ्यता की लड़ाई है।'
'मानव स्वतंत्रता की प्रगति, हमारे समय की महानतम उपलब्धि और हर समय की सबसे बड़ी आशा अब हम पर निर्भर है।'
'यह संघर्ष क्या दिशा लेगा, मालूम नहीं। लेकिन परिणाम निश्चित है...और हम जानते हैं कि ईश्वर तटस्थ नहीं है।'
वेस्ट प्वाइंट सैन्य एकेडेमी की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिए गए अपने भाषण में अमरीका के राष्ट्रपति ने अन्य बातों के अलावा यह कहा :
'हम जिस दुनिया में प्रवेश कर गए हैं उसमें सुरक्षा का केवल एक ही रास्ता है और वह है कार्रवाई। हमारा राष्ट्र कार्रवाई करेगा।'
'अपनी सुरक्षा के लिए हमें आपके नेतृत्व वाली सेना का रूप बदलना होगा उसे ऐसी सेना बनाना होगा जो एक क्षण की सूचना पर दुनिया के किसी भी अंधेरे कोने पर हमला कर सके। हमारी सुरक्षा के लिए यह भी जरूरी होगा कि प्रत्येक अमरीकी आशावादी और संकल्पी हो तथा हमारी स्वतंत्रता और हमारे जीवन की रक्षा के लिए जब भी जरूरी हो हम रोकथाम की कार्रवाई कर सकें।'
'हमें 60 या उससे अधिक देशों में आतंक के ठिकानों का पर्दाफाश करना
चाहिए।'
'हम जहां जरूरत है वहां अपने राजदूत भेजेंगे और जहां तुम्हारी, हमारे सिपाहियों की जरूरत है, वहां हम तुम्हें भेजेंगे।'
'हम अच्छाई और बुराई के संघर्ष में डूबे हैं। हम समस्या पैदा नहीं करते, समस्या उजागर करते हैं। इसका विरोध करने में हम दुनिया का नेतृत्व करेंगे।'
आज जब दुनिया में 6.4 अरब बहुत अमीर और बहुत गरीब लोगों को अपने अस्तित्व के लिए खतरा नजर आ रहा है ऐसी स्थिति में ये विचार यदि मार्ती जैसे व्यक्ति की कुशाग्र बुध्दि से तेजी से टकराए होते तो उनके विशाल हृदय को कितनी चोट पहुंचती।
ये शब्द पागलखाने के अंधेरे कोने से किसी पागल ने नहीं बोले हैं। इस दमदार आवाज के पीछे हैं लाखों परमाणु हथियार,करोड़ों विनाशकारी बम और प्रक्षेपास्त्र, निशाना साधे हुए लाखों प्रक्षेपास्त्र, पायलटों वाले और पायलट रहित हजारों बमवर्षक और लड़ाकू विमान, दर्जनों नौसेना स्क्वाड्रन, विमान वाहकों सहित टुकड़ियां, परमाणु चालित या परंपरागत पनडुब्बियां, दुनिया के हर कोने में अनुमति के साथ या अनुमति के बगैर बनाए गए सैनिक ठिकाने, धरती के चप्पे-चप्पे पर टोही नजर रखने वाले सेना के उपग्रह,मजबूत तथा तुरंत संदेश देने वाली संचार व्यवस्था जो दूसरे देशों की संचार व्यवस्था को ठप्प कर सकती है और साथ ही दूसरों के करोड़ों संदेशों को अवरुध्द कर सकती है, अकल्पनीय रसायन तथा जैविक हथियार तथा 400 अरब डालर का सेना बजट जिसके बराबर रकम से दुनिया की बहुत सारी समस्याएं हल की जा सकती हैं। ये धमकियां उस व्यक्ति द्वारा दी गई हैं जिसके पास सामान है और जो इन साधनों का इस्तेमाल कर सकता है। बहाना क्या है? 11 सितंबर का वहशियाना हमला जिसमें हजारों अमरीकी नागरिकों की जानें चली गईं। पूरी दुनिया ने अमरीकी अवाम के साथ हमदर्दी व्यक्त की और रोष के साथ हमले की निंदा की। पूरी दुनिया से इस व्यापक समर्थन के बल पर वह राजनीतिक, धार्मिक हर कोण से आतंकवाद के ज्वार से मुकाबला कर सकता था।
क्यूबा ने प्रस्ताव किया था कि यह लड़ाई बुनियादी तौर पर राजनीतिक और नैतिक होनी चाहिए तथा दुनिया के सभी देशों के हित में और उनके समर्थन के साथ होनी चाहिए। किसी के मन में भी यह विचार नहीं आया होगा कि हमें बेकसूर लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले तथा व्यक्तियों, समूहों, संगठनों या शासन अथवा सरकार द्वारा मचाए जाने वाले बेतुके, बदनाम और अलोकप्रिय आतंकवाद का सामना करना पड़ेगा जिसमें आतंक को कुचलने के नाम पर वहशी सरकारी आतंक का इस्तेमाल किया जाता है और यह दावा किया जाता है कि महाशक्ति को पूरे राष्ट्रों को नष्ट करने तथा परमाणु और आम विनाश के हथियार इस्तेमाल करने का पूरा अधिकार है। विश्वमत अधिकांशत: इस घोषित युध्द के खिलाफ है। इस क्षण जब हम इतिहास में संभवत: पहली बार विश्व संतुलन का विचार प्रस्तुत करने वाले जोसे मार्ती की 150वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, एक ऐसा युध्द शुरू होने वाला है जो धरती पर अभूतपूर्व सैनिक असंतुलन का परिणाम है। कल वह समय सीमा खत्म हो गई जिसके आधार पर दुनिया की सबसे ताकतवर महाशक्ति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा या उसके बगैर एक अन्य देश के खिलाफ अत्यंत परिष्कृत हथियार इस्तेमाल करने का इकतरफा बहाना बना रही है। इस संस्था पर भी सवाल खड़े किए जा सकते हैं क्योंकि यहां पांच स्थायी सदस्याें को वीटो का अधिकार है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा में शेष लगभग 200 प्रतिनिधि देशों के अत्यंत मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार का हनन है।
वीटो के विशेषाधिकार का प्रयोग भी इसी सरकार ने किया है जो परिषद की मर्जी के बगैर आगे बढ़ने को अपना अधिकार बताती है। शेष स्थायी सदस्यों ने इसका बहुत कम प्रयोग किया है। पिछले 12वर्षों में सैनिक ताकत के संदर्भ में इसके सदस्यों में जो बुनियादी बदलाव आया है उसे देखते हुए यह असंभव लगता है कि इनमें से कोई एक देश वीटो का प्रयोग उस सदस्य के खिलाफ करेगा जो कि न केवल जबर्दस्त सैन्य शक्ति बल्कि आर्थिक, राजनीतिक, शिल्प वैज्ञानिक ताकत के कारण महाशक्ति बना हुआ है।
विश्व जनमत अधिकांशत: उस घोषित युध्द के खिलाफ है। लेकिन यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हाल ही में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार 65 फीसदी अमरीकी आबादी सुरक्षा परिषद की अनुमति के बगैर उस हमले के खिलाफ है। लेकिन यह कोई बड़ी बाधा नहीं है। सेना भेज दी गई है और वह कार्रवाई के लिए तैयार है। सर्वाधिक परिष्कृत हथियारों की परीक्षा भी तो जरूरी है। जिस देश के अस्तित्व का खतरा है उसके शासकों द्वारा धमकी देने वाले की सभी मांगें मान लिए जाने के अलावा इस युध्द के टलने की कोई संभावना नहीं है।
सैनिक संघर्ष या ऐसी स्थिति में क्या होगा, कोई नहीं जानता। इस समय पक्के तौर पर केवल यह कहा जा सकता है कि इराक युध्द के खतरे के विश्व अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़े हैं। इराक में एक भी गोली चलने से पहले ही वह गंभीर हालत में है। इस संकट को वेनेजुएला की बोलिवेरियन सरकार के खिलाफ फासीवादी तख्तापलट ने और भी गहरा कर दिया है। वेनेजुएला तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है। तख्तापलट के कारण इस महत्वपूर्ण उत्पाद की कीमतें इतनी अधिक हो गई हैं कि वह दूसरे देशों विशेषकर गरीब राष्ट्रों की पहुंच के बाहर हो गया है।
अब यह आम राय है कि इराक युध्द का मकसद तेल तथा प्राकृतिक गैस के दुनिया के तीसरे बड़े भंडार पर कब्जा करना है। यह यूरोपियन राष्ट्रों तथा विकसित देशों के लिए चिंता का विषय है जो अमरीका के ठीक विपरीत अपनी ऊर्जा का 80 फीसदी आयात करते हैं। अमरीका अपने उपयोग का केवल 20-25 फीसदी तेल आयात करता है।
कल 28 जनवरी को रात नौ बजे अमरीकी राष्ट्रपति ने कांग्रेस को बताया कि अमरीका इराक की अवज्ञा पर विचार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक 5 फरवरी को बुलाने के लिए कहेगा। उसने कहा कि यह परामर्श प्रक्रिया गलतफहमी से बचने के लिए चलाई जा रही है तथा अमरीकी जनता तथा विश्व शांति के लिए यदि इराक ने युध्द को निरस्त नहीं किया तो अमरीका उसे निरस्त करने के लिए बने गठजोड़ का नेतृत्व करेगा। उसने यह भी कहा कि यदि अमरीका को युध्द करने लिए बाध्य किया गया तो वह अपने पूरे हथियारों और सशस्त्र सेनाओं को युध्द में झोंक देगा। सुरक्षा परिषद के अनुमोदन के बारे में उसने एक भी शब्द नहीं बोला। एक मात्र महाशक्ति द्वारा अपनी मर्जी से युध्द थोपे जोने के उस क्षेत्र में भयंकर परिणाम तो होंगे ही उनके अलावा आर्थिक क्षेत्र में असंतुलन बहुत बड़ी त्रासदी होगी।
अमीर और गरीब देशों के बीच तथा उनके अपने भीतर विषमता बढ़ती और गहराती जा रही है। दूसरे शब्दों में धन के वितरण में दरार बढ़ती जा रही है। यह हमारे युग की महाविपत्ति बन गई है जिसकी वजह से मनुष्यों में असह्य गरीबी, भूख, अज्ञान, बीमारी और तकलीफें बढ़ती जा रही हैं।
हम यह कहने का साहस क्यों नहीं करते कि भयंकर विषमताओं, अज्ञान, पूर्ण निरक्षरता के बीच तथा राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और कलात्मक संस्कृति के अभाव में किसी तरह के लोकतंत्र, स्वतंत्र चयन या वास्तविक आजादी की बात नहीं हो सकती? इस समय बहुत कम लोगों को यह सब उपलब्ध है। विकसित देशों में भी भयावह स्थिति है जहां खरबों डालर वाणिज्यिक और उपभोक्तावादी विज्ञापनों पर खर्च किए जा रहे हैं जो जहर फैलाकर कभी पूरी न होने वाली इच्छाएं और सपने पैदा कर रहे हैं। इससे फिजूलखर्ची और परायापन बढ़ रहा है तथा मनुष्य की सहज जीवन स्थितियां हमेशा के लिए खत्म हो रही हैं। मुश्किल से डेढ़ शताब्दी में हमने ऊर्जा के भंडार, पक्के और संभावित भंडार खत्म कर दिए हैं जिन्हें तैयार करने में प्रकृति को 30 करोड़ वर्ष लगे। इनकी मुश्किल से ही पूर्ति होगी।
आज दुनिया की जटिल आर्थिक समस्याओं के बारे में जन समुदाय क्या जानता है? उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक या विश्व व्यापार संगठन और अन्य ऐसी ही संस्थाओं के विषय में किसने जानकारी दी है? आर्थिक संकटों, उनके कारणों तथा परिणामों को उनके सामने किसी ने स्पष्ट किया है? उन्हें किसने बताया है कि पूंजीवाद, मुक्त उद्यम और मुक्त प्रतिस्पर्धा अब बिरले ही देखने को मिलते हैं और वास्तव में 80 फीसदी विश्व उत्पादन और व्यापार पर 500 बड़े अंतर्राष्ट्रीय निगमों का नियंत्रण है? उन्हें स्टॉक एक्सचेंज, जिन उत्पादों पर तीसरी दुनिया के राष्ट्र निर्भर रहते हैं उनकी सट्टाबाजारी, प्रतिदिन खरबों डालर की मुद्रा की खरीद-फरोख्त के बारे में कौन बताता है? उन्हें किसने समझाया है कि तीसरी दुनिया की मुद्राएं कागज के टुकड़े भर हैं जिनका लगातार अवमूल्यन होता रहता है तथा उनकी वास्तविक या लगभग वास्तविक निधियां फिजिक्स के न्यूटन के नियम की तरह धनी देशों की तरफ चली जाती हैं और इस वास्तविकता के भयंकर और भौतिक परिणाम क्या हैं? या हम पर खरबों डालर का कर्ज क्यों है जबकि पांच वर्ष से छोटे बच्चों सहित हमारे करोड़ों लोग भूख और असाध्य बीमारियों से हर साल मर जाते हैं? कितने लोग जानते हैं कि हमारे देशों की प्रभुसत्ता केवल कागजों में है, ऐसी संधियों में जिनमें हमारी तीसरी दुनिया के राष्ट्रों की कोई भागीदारी नहीं होती और इसके विपरीत हमारा और अधिक शोषण और परतंत्रीकरण क्यों हो रहा है? हमारे कितने लोग जानते हैं कि हमारी राष्ट्रीय संस्कृतियों को लगातार नष्ट किया जा रहा है?
ऐसे असंख्य सवाल हैं। एक और सवाल काफी होगा। यह उन लोगों के लिए है जो पाखंडी हैं और मानवों, देशों तथा पूरी मानवता के निहायत पवित्र अधिकारों के बारे में झूठ बोलते हैं। हम मार्ती की एक सूक्ति में समाविष्ट सुंदर तथा गहरे सत्य को जीवन में चरितार्थ क्यों नहीं करते : 'शिक्षा ही मुक्ति का मार्ग है?'
मैं उस देश की ओर से दृढ़ता के साथ यह बात कह रहा हूं जिसने चालीस से अधिक वर्षों से बगैर घबराए जबर्दस्त घेराबंदी और ऐसे कठोर आर्थिक युध्द को झेला है जो समाजवादी जगत और सोवियत संघ के टूट जाने के फलस्वरूप बाजार, व्यापार तथा विदेशी आपूर्ति के नुकसान के कारण और भी प्रबल हो गया है (करतल ध्वनि) और जो देश दुनिया का सर्वाधिक संगठित, सामाजिक दृष्टि से विकसित देश है और जिसके पास बुनियादी ज्ञान तथा राजनीतिक और कलात्मक संस्कृति है। एक छोटा गरीब देश बहुत कम से बहुत कुछ कर सकता है ।जिस वीर पुरुष के सफल जन्म की वर्षगांठ हम यहां मना रहे हैं उसका सम्मान हमने यह दिखा कर किया है कि एक छोटा गरीब देश सीखने के दौरान जरूरी गलतियां करने के साथ-साथ बहुत थोड़े से बहुत कुछ कर सकता है।
उनकी स्मृति में क्यूबा की सबसे बड़ी श्रध्दांजलि यह है कि उसने ऐसी खंदक बनाना और उसकी रक्षा करना सीख लिया है जिसे पार करके बड़ी से बड़ी ताकत अमरीकी और दुनिया के अन्य देशों तक नहीं पहुंच सकती। उनसे हमें विचारों के अथाह मूल्य और उनकी ताकत के बारे में पता चला। उत्तर में स्थित शक्तिशाली पड़ोसी द्वारा मानवता पर लादी गई असह्य आर्थिक व्यवस्था चल नहीं सकती। अत्यधिक परिष्कृत हथियार इतिहास की धारा को नहीं मोड़ सकते।
जो लोग शताब्दियों से बेशी मूल्य और सस्ता श्रम प्रदान कर रहे हैं उनकी संख्या अरबों में पहुंच गई है। उन्हें मक्खियों की तरह नहीं मारा जा सकता। वे अपने साथ हो रहे अन्याय के प्रति लगातार जागरूक होते जा रहे हैं। यह अन्याय भूख, बेइज्जती के जरिए तथा स्कूलों और शिक्षा के अभाव में उनके ऊपर हो रहा है। सबसे बड़ा अन्याय वह घिसा-पिटा झूठ है जिसके जरिए एकाधिकारी सत्ता जनसंचार माध्यमों का उपयोग कर उन्हें
हमेशा के लिए गुलामी की स्थिति में रखना चाहती है। उन्होंने हाल ही में ईरान, इंडोनेशिया, इक्वेडोर और अजर्ेंटीना से बड़े साफ सबक सीखे हैं। एक भी गोली चलाए बगैर, यहां तक कि बगैर किसी हथियार के जन समुदाय सरकारों को धूल चटा सकता है।
राष्ट्रीय सिपाही अपने देशवासियों को गोली मारने से हिचक रहे हैं। प्रत्येक कारखाने, प्रत्येक स्कूल, प्रत्येक पार्क और प्रत्येक समुदाय केंद्र पर राइफल, हैलमेट और संगीन लगाकर कोई एक विदेशी सिपाही दुनिया पर शासन नहीं कर सकता।औद्योगिक राष्ट्रों के अधिकाधिक बुध्दिजीवी, जागरूक मजदूर और मध्य वर्गों के लोग देशों तथा प्रकृति के विरुध्द निर्मम युध्दों से मानवता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इतिहास ने दिखाया है कि बड़े संकटों से बड़े समाधान निकले हैं। इनमें से ही नेता पैदा हुए हैं। इस बात में कोई विश्वास नहीं करेगा कि व्यक्ति इतिहास रचते हैं। वे इतिहास की प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं। वे अपनी निपुणता से उसे आगे बढ़ाते हैं या अपनी कमियों तथा गलतियों से उसे आगे बढ़ने से रोकते हैं लेकिन वे अंतिम परिणाम तय नहीं करते। मार्ती जैसा मेधावी व्यक्ति भी यदि 30 साल पहले या बाद में पैदा होता तो वह भी इतिहास में अज्ञात रहता। वोलिवर, सक्र, जुआरेज, लिंकन तथा ऐसे ही अनेक प्रशंसनीय लोगों के बारे में भी यही कहा जा सकता है।
जहां तक क्यूबा का सवाल है हमारा राष्ट्रीय नायक 1823 में पैदा हुआ तथा उसने बागानों और भारी संख्या में गुलामों से भरे गुलाम समाज में 1853 में अपना 30वां जन्म दिन मनाया। 1868 में हमारा पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू करने वाले महान योध्दाओं ने उस समय जो प्रबल राष्ट्रवादी और देशभक्ति की भावना पैदा की उसके अभाव में वह हमारे देश के इतिहास के लिए इतनी बड़ी भूमिका अदा नहीं कर पाता।
इसलिए मेरा दृढ़ विश्वास है कि सबसे बड़ी लड़ाई विचारों के क्षेत्र में होगी, हथियारों के क्षेत्र में नहीं क्योंकि बुध्दि और सही ध्येय के लिए लड़ रहे लोगों की धैर्यशील चेतना में हर ताकत, हर हथियार, रणनीति और हर युक्ति की काट है। वैसे अगर हम पर युध्द थोप दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में हम हथियारों के इस्तेमाल की जरूरत से इनकार नहीं करते।
अमरीका में भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए कुछ लोग हैं जिन्हें हमने कभी शत्रु के रूप में नहीं देखा। 40 से अधिक वर्षों से हम जिन धमकियों और हमलों का सामना कर रहे हैं उनके लिए हमने उन्हें कभी दोषी नहीं ठहराया। ऐसे मित्र और मानवता के सही ध्येय के लिए संभावित साथी वहां मौजूद हैं। (करतल ध्वनि)
वियतनाम युध्द के दौरान हमने ये साथी देखे। इसे हमने उस भावना में देखा जो कि छोटे एलियान गोंजालेज के अपहरण की तरह हमें छू गई। इसे हमने मार्टिन लूथर किंग के संघर्ष में सहयोग के रूप में देखा। इसे हमने नव उदार भूमंडलीकरण के खिलाफ खड़े कनाडियाई, लैटिन अमरीकी और यूरोपियाई जनगण के साथ उठी आवाज के रूप में
सीएटल और क्यूबेक में देखा। कम से कम सुरक्षा परिषद के अनुमोदन के बगैर अनावश्यक युध्द के विरोध के रूप में हम यह पहले ही देख रहे हैं। कल हम इसे दुनिया के उन दूसरे देशों का साथ देने के रूप में देखेंगे जो मानव जाति को उसके अपने ही पागलपन से बचाने के एक मात्र रास्ते पर चलना चाहते हैं।
यहां मौजूद प्रतिष्ठित आगंतुकों को सुझाव देने की हिम्मत करते हुए मैं कहना चाहता हूं कि आप अपने काम को जारी रखें। हमें धमकाने तथा एक अन्यायपूर्ण, विवेकहीन तथा न चलने वाली आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था का गुलाम बनाने के लिए जो विनाश के परिष्कृत हथियार लगाए जा रहे हैं उसके खिलाफ आप नए विचार बोएं, नए विचार बोएं, नए विचार बोएं; नई जागरूकता बोएं, नई जागरूकता बोएं, नई जागरूकता बोएं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
(करतल ध्वनि)








1 टिप्पणी:

  1. i appreciate ur views sir. thanks for providing information abt Jose Marti. i also admire Siman Boliver frm Latin America. sir i think now we should raise our voice against UNSC rather asking our accomodation in it.

    ravi

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