रविवार, 12 सितंबर 2010

माफिया तंत्र खड़ा करना चाहते हैं माओवादी



    शशिकांत जी, माकपा ने सिंगूर और नंदीग्राम में जो किया ओर उनके प्रतिवाद में विपक्ष ने जो किया उस पर मैं अपनी किताब में विस्तार से लिख चुका हूँ। नंदीग्राम-सिंगूर के प्रसंग में , जमीन अधिग्रहण के माकपा और पश्चिम बंगाल सरकार के तरीके से भी मेरी असहमति है।
आज सवाल माओवादी राजनीति का नहीं है। माओवादी हिंसाचार का है। राजनीति के नाम पर बहस करने के नाम पर गोल-गोल बहस करने से हम कहीं नहीं पहुँचेंगे। माओवादी जेनुइन सवाल उठाने के नाम पर फ्रॉड कर रहे हैं। हिंसा कर रहे हैं। किसी भी कीमत पर हिंसा को समर्थन नहीं दिया जा सकता चाहे वह माकपा की हिंसा हो या माओवादियों की। थोड़ा सत्य जान लें तो बेहतर होगा, पश्चिम बंगाल सरकार ने नंदीग्राम-सिंगूर विवाद के बाद सारे राज्य में कहीं पर जमीन अधिग्रहण नहीं किया है। कहीं पर भी किसानों की जमीन नहीं ली गयी है। बल्कि इसके उलटे सैंकड़ों एकड़ नई जमीन किसानों और खेतमजदूरों में बांटी गयी है।
दूसरी बात यह कि माओवाद प्रभावित किस इलाके में भूमि सुधार लागू किए गए हैं ? माओवादी यदि किसानों के बड़े हितैषी हैं तो उन्होंने भूमि सुधार को अपने संघर्ष का प्रधान एजेण्डा क्यों नहीं बनाया ?माओवादी और उनके साथी-हमदर्द अनेक मसलों पर हंगामा और हिंसाचार कर रहे हैं लेकिन भूमिसुधार पर नहीं। जरा बताइए उनका छत्तीसगढ़ से लेकर आंध्र तक पहला एजेणडा क्या है ?
माओवादी संगठन किसान हितों की रक्षा के नाम पर जमींदारों की जमीन बचाने का खेल खेल रहे हैं। माओवादियों को क्रांति से कम कुछ नहीं चाहिए भूमि सुधार को वे मानते नहीं और क्रांति होने वाली नहीं है ऐसे में जमींदारों के हितों और जमीनी स्वामित्व की वे रक्षा नहीं कर रहे हैं तो क्या कर रहे हैं। माकपा की अनेक नीतियों की आलोचना की जा सकती है हम भी करते हैं लेकिन माकपा और वाममोर्चे की एक बड़ी उपलब्धि है भूमिसुधार कार्यक्रम को लागू करना और उसके तहत लाखों किसानों को जमीन मिली है। कम से कम यह वास्तविकता सभी मानते हैं और आप भी मानें। सवाल यह है नहीं कि माकपा विधानसभा चुनाव में हारती है या जीतती है। सवाल यह है गांव के किसानों में लागू किए गए भूमिसुधारों को तृणमूल कांग्रेस कैसे देखती है ,क्योंकि माओवादियों से लेकर कांग्रेस तक,महाश्वेता देवी से लेकर आप जैसे लोग सभी तृणमूल की जीत पर आशा टिकाए बैठे हैं।
बंधुवर यह खुला सच है कि तृणमूल कांग्रेस नव्य उदारनीतियों की अंधी अनुयायी फासीवादी संरचना वाला ,सबसे भ्रष्ट दल है। उसका गांव में प्रधान राजनीतिक आधार उजड़े हुए जमींदार हैं। ये जमींदार उसके लिए रसद जुटाने का काम कर रहे हैं और उन जमींदारों को अपनी जमीन वापस चाहिए। तृणमूल कांग्रेस इन जमींदारों के आधार पर ही गांवों में आ रही है।
सवाल यह है कि माओवादी संगठनों, महाश्वेता देवी और उनकी भक्तमंडली जो आए दिन नव्य उदारवाद का विरोध करती है वह तृणमूल कांग्रेस जैसी अंध नव्यउदारतावाद समर्थक पार्टी के साथ खड़ी किस आधार पर है ? शशिकांत बाबू माओवाद को पश्चिम बंगाल में एक पंचायत की सीट पर विजय मिलना असंभव है ,प्रमुख विपक्ष तो ख्बाब की बातें हैं। जान लीजिए जो नक्सलबाड़ी है वहां पर उनका कोई नामलेवा नहीं है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के बिना वाममोर्चे का विरोध करना संभव नहीं है उसी तरह पश्चिम बंगाल की विपक्ष की राजनीति का निर्धारक तत्व माओवादी नहीं हैं ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस है। आप हमें बताइए ममता बनर्जी का कांग्रेस की किस नीति से मतभेद है। ममता और कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर जब कोई नीतिगत मतभंद ही नहीं है तो प्रकारांतर से ममता का समर्थन करके माओवादी किसका समर्थन कर रहे हैं ? ध्यान रहे लालगढ़ में ममता ने माओवादियों की मदद से रैली की। वेदांत प्रकल्प को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की हरी झंड़ी न मिलने पर राहुल गांधी ने वेदांत प्रकल्प के पास जो तथाकथित मीटिंग की उसमें इस इलाके के माओवादी नेता मंच पर थे उन्होंने वहां भाषण भी दिया। बंधुवर अखबारों की खबरें यह भी बताती हैं कि मेधापाटकर और सोनिया गांधी की बैठक भी कुछ समय पहले हुई है। आखिर माओभक्त और कांग्रेस और उनके अनुयायी दलों में क्या खिचड़ी पक रही है ?

सत्य के अहेरी बाबू, आपको लालगढ़ में आंदोलन किस चश्मे से दिख गया। लालगढ़ में कहीं पर कोई जमीन अधिग्रहण नहीं हुआ है। जिंदल के कारखाने के लिए जमीन सालबनी में दी गयी है। लगता है माओ-माओ करते करते लालगढ़ का भूगोल ही भूल गए बंधुवर। रही बात व्यक्तिगत नौकरी की तो बंधुवर ब्लॉग उसकी जगह नहीं है।
यह बताओ माओवाद की हिमायत में गाली के अलावा क्या जानते हो। हत्या और गाली की भाषा सिर्फ असभ्य लोग बोलते हैं और व्यक्तिगत हमले कमजोर लोग करते हैं। बेकसूरों को मौत के घाट उतारकर उसके लिए नए-नए आवरण क्यों खोज रहे हैं माओवादी और उनके हमदर्द ।
माओवादी हिंसा वास्तव हिंसा है यह अपराध है। इस हिंसा में शामिल सभी अपराधियों को दण्डित किया जाना चाहिए। जिंदल के लिए जिस सालबनी इलाके में जमीन ली गयी है। वहां के निवासियों की रजामंदी से ली गयी है और यह बंजर-पथरीली जमीन है। उस इलाके के किसी भी बाशिंदे ने इस जमीन अधिग्रहण का विरोध नहीं किया था। जिंदल के कारखाने के लिए एक बीघा भी उपजाऊ जमीन नहीं दी गयी है। किसी किसान को जमीन से बेदखल नहीं किया गया है।
शशिकांत बाबू माओवाद राष्ट्रीय विपक्ष नहीं राष्ट्रीय विपत्ति है। विपत्ति और विपक्ष में अंतर होता है। माओवादियों को अपने जनाधार पर इतना ही भरोसा है तो एक बात बताओ आदिवासी इलाकों में चुनाव के समय लोग उनकी मतदान बहिष्कार की अपील की अनसुनी करके वोट देने क्यों जाते हैं ? ऐसा क्यों है किआदिवासी इलाकों या वे जिन इलाकों में सालों से क्रांति का बिगुल बजा रहे हैं वहां से माकपा,भाजपा,कांग्रेस के सांसद-विधायक चुनकर आते हैं। थोडा माओवादियों पर कम और आम जनता पर विश्वास करना सीखें बंधु। भारत की गरीब जनता अच्छी तरह जानती है कि माओवाद से किसी का भला होने वाला नहीं है। माओवाद के नाम पर आप जो कुछ देखकर रहे हैं यह प्रायोजित हिंसाचार है ,समानान्तर अवैध व्यवस्था खड़ा करने की माफिया राजनीति है।
(मोहल्ला लाइव डॉट कॉम पर चल रही बहस में लिखी टिप्पणियां)



























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