शनिवार, 3 जुलाई 2010

चीन के सैनिकों का प्रेम कनेक्शन कटा

  आज ‘वाल स्ट्रीट जरनल’ ने खबर दी है कि चीन के जनमुक्ति सैनिकों पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की कड़ी नजर है। इधर कई सालों से यह देखा गया  कि चीन के सैनिक इंटरनेट के माध्यम से डेटिंग वगैरह कर रहे थे। वे नेट के जरिए प्रेम संदेश भेज रहे थे। चीन प्रशासन के नए आदेश में सैनिकों का डेटिंग करना अपराध घोषित कर दिया गया है। इसके अलावा चीनी सैनिकों को सोशल नेटवर्कों पर भी जाने की मनाही कर दी गयी है।
     उल्लेखनीय है चीन के सैनिक बड़ी संख्या में  Kaixin001 नामक सोशल नेटवर्क पर जाने लगे थे और तरह-तरह से साइबर समाजीकरण कर रहे थे। चीन प्रशासन के आदेश में कहा गया है कि सैनिकों को छद्म नाम से भी इंटरनेट पर संपर्क और संवाद नहीं करना चहिए। क्योंकि इससे उनकी असली पहचान छिपती नहीं है।नेट संवाद में यह संभव नहीं है कि अपने काम-काज और नौकरी के बारे वे सब कुछ छिपा लें। होसकता है सैनिक के लिए कोई सूचना अप्रासंगिक लगे और वह बता दे।
   सवाल यह है कि चीन सरकार ने अपने सैनिकों के लिए आज के इंटरनेट युग में इतना घटिया आदेश जारी कैसे किया । उल्लेखनीय है अमेरिका के सैनिकों को इंटरनेट संवाद की अनुमति है। वे चाहें तो किसी भी सोशलसाइट पर भी जा सकते हैं। भारत में सैनिकों को इंटरनेट संवाद की सुविधा प्राप्त है।
    अमेरिका में तो युद्ध के मैदान में लड़ रहे सैनिकों को भी सोशल नेटवर्क पर जाने की अनुमति है। अमेरिकी सैनिक अपनी असली पहचान के साथ फेसबुक,ट्विटर,सोशल नेटवर्क आदि पर जाते हैं और अपने फोटो भी लगाते हैं। अमेरिकी सेना में भर्ती की सूचनाएं भी नेट पर दी जाती है। भर्ती के विज्ञापन भी रहते हैं। समस्या यह है कि चीन जैसा विशाल देश इस आदेश को लागू कैसे करेगा। चीन में नेट यूजरों की संख्या सबसे ज्यादा है।
   उल्लेखनीय है इंटरनेट का चीन में व्यापक सामाजिक असर हुआ है। खासकर उपभोक्ता के उपभोग पर इसका गहरा असर हुआ है। चीन का उपभोक्ता औसतन 3 घंटा प्रतिदिन ऑनलाइन पर बिताता है। यह अमेरिका और जापान के यूजर के बराबर का समय है। यदि कोई मीडिया वाला यह सोचे कि चीनी लोग घर में हैं और वे टीवी देख रहे होंगे तो यह समझ सही नहीं है।
    चीन के ज्यादातर उपभोक्ता ऑनलाइन पर वस्तुओं का चयन और खरीद करते हैं। इसके लिए वे व्यापक रिसर्च भी करते हैं। चीनी लोगों के लिए मीडिया उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना भारत में है। भारत में किसी भी माल की बिक्री के विज्ञापन का मीडिया ही एकमात्र सहारा है। चीन की अच्छी कंपनियां सोशल नेटवर्क और ब्लॉगरों के माध्यम से प्रचार करती हैं। इनके जरिए उपभोक्ता को प्रभावित करती हैं। ऐसी स्थिति में सैनिकों को नेट से दूर रखना मुश्किल काम है।    
                  






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