शुक्रवार, 14 मई 2010

नव्य उदार मार्ग का कुपरिणाम हैं चीनी बच्चों पर हमले

(चीन में हाल के कातिलाना हमलों में घायल 2 साल का बच्चा अस्पताल में)
       चीन में विगत दो महीनों से बच्चों पर जिस तरह के कातिलाना हमले हो रहे हैं इससे समूचे चीन में हंगामा उठ खड़ा हुआ है। चीन के विशेषज्ञों ने इस पर अपनी राय जाहिर करते हुए कहा है कि ये हमले अंधाधुंध नव्य पूंजीवादी आर्थिक विकास का परिणाम है। विगत दस सप्ताह में 8 हमले हुए हैं।
     विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक विकास के चक्कर में विकास का मानसिक स्वास्थय पर क्या असर हो रहा है इसकी अनदेखी हुई है। सारे देश में अंधाधुंध आर्थिक विकास हुआ है उसका देश के नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर हो रहा है इसके बारे कभी सोचा ही नहीं गया।
      Agence France-Presse, Associated Press समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में बीजिंग स्थित चीनी विश्वविद्यालय के राजनीति और कानून विभाग के प्रो.मा अइ का मानना है कि हमने आर्थिक तरक्की पर ध्यान केन्द्रित किया और लेकिन मानसिक दशा को उन्नत बनाने पर ध्यान नहीं दे पाए। विगत 30 सालों के परिवर्तन की गति बेहद तेज रही है। हाल के हमलों में कुल मिलाकर 17 छोटे बच्चे मारे गए हैं और 50 बच्चे घायल हुए हैं। हमलावरों में से एक ने आत्महत्या कर ली जबकि एक हमलावर को पुलिस के हवाले कर दिया गया है। हमलावर समाज में इस तरह के हमले करके बदला लेना चाहते हैं और आम जनता को शॉक देना चाहते हैं। ये हमले व्यापक सामाजिक-मनोवैज्ञानिक बीमारी की अभिव्यक्ति हैं।
     विगत 30 सालों में चीन के समाज में खुलापन आया है अनेक किस्म की सुविधाओं और स्वतंत्रताओं को आम जनता भोग रही है। आज चीनी नागरिक का नव्यउदार पूंजीवादी आर्थिक सुधारों के बुनियादी लक्षणों से मुकाबला हो रहा है। पूंजीवादी समाज का लक्षण है कुत्ता कुत्ते को खाता है। यह लक्षण विकासशील चीनी समाज को खा रहा है।
     शंघाई स्थित तोंगजी विश्वविद्यालय के मानसिकरोग विशेषज्ञ मिशेल फिलिप का कहना है कि चान के महानगरों के बाहर छोटे शहरों और कस्बों में डाक्टर यह नहीं जानते कि मनोरोग क्या है ? अनेक मनोरोगी अपना इलाज सामाजिक कलंक होने के कारण नहीं करा पाते। डा. फिलिप ने चीन में पिछले साल सर्वे करके पाया कि देश में सत्रह करोड़ तीस लाख मनोरोगी हैं। इनमें सिजोफ्रेनिया से लेकर शराब की लत से पैदा हुई मानसिक बीमारियों के शिकार लोग भी शामिल हैं। इनमें से 91 प्रतिशत लोगों का कभी इलाज ही नहीं हुआ है।    
                   



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