सोमवार, 8 मार्च 2010

टेलीविजन में औरत का नया रुप

टेलीविजन ने समाज का मिजाज बदला है।सूचना और मनोरंजन की धारणा बदली है। किंतु इसके वैचारिक सरोकार नहीं बदले हैं।कार्यक्रम बदले हैं।चरित्र बदले हैं। तकनीकी प्रोन्नति हुई है।इसकी आमदनी बढ़ी है।चैनल बढ़े हैं।कलाकार, प्रस्तोता,एंकर,निर्देशक आदि सभी क्षेत्रों में तेजी से विकास हुआ है किंतु टेलीविजन का दकियानूसी स्वभाव नहीं बदला है। आरंभिक दिनों में टेलीविजन 'सामाजिक हैसियत' का प्रतीक था।किंतु आज वह 'घरेलू वस्तु' बन गया है। यह टीवी इमेज का रूपान्तरण है। आरंभ में कम लोग टीवी देखते थे। आज सबसे ज्यादा देखते हैं।इसने उपभोग के प्रति सक्रियता और मूल्यों के स्तर पर निष्क्रियता पैदा की है।राजनीति में दर्शकीय भावबोध पैदा किया है।राजनीति जागरूकता पैदा की है।किंतु राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए हतोत्साहित किया है।टेलीविजन बातें खूब करता है,परिवर्तन कम करता है।यह ठलुआगिरी का स्रोत है।बेकारों का सहाराहै।अकेलेपन का साथी है।इस अर्थ में टेलीविजन गतिशील भूमिका अदा कर रहा है। 

    टेलीविजन अपनी भूमिका कई स्तरों पर अदा कर रहा है।साथ ही परिवर्तन के क्षेत्र में भी दबे पैर दाखिल हो रहा है।किंतु इसका मुख्य जोर अभी भी प्रतिगामी विचारों,मूल्यों और संस्कारों के रूपायन पर है।यहां हम विगत 30 वर्षों में सारी दुनिया के धारावाहिकों खासकर प्राइम टाइम कार्यक्रम में प्रसारित कार्यक्रमों की अंतर्वस्तु का विश्लेषण करना चाहेंगे।
    नैंसी सिंगमोरिल्ली और एरोन बाबू ने '' रिकॉगिनीशन एंड रेस्पेक्ट: ए कंटेंट एनालिसिस ऑफ प्राइम टाइम टेलीविजन करेक्टर्स एक्रॉस थ्री डिकेड्स' नामक शोधपरक मूल्यांकन इसका प्रस्थान बिंदु हो सकता है।
      यह देखा गया है कि टेलीविजन के प्राइम टाइम कार्यक्रमों में स्त्रियां बार-बार आती रही हैं। विगत तीस वर्षों में इनकी स्टीरियोटाइप भूमिका भी बदली है।औरतें अब ऐसी भूमिकाओं में आ रही हैं जिनके बारे में पच्चीस साल पहले कल्पना करना संभव नहीं था।खासकर 1990 के बाद टेलीविजन पर पुरूषों की तुलना में स्त्री चरित्रों की तादाद तेजी से बढ़ी है। साथ ही स्त्री चरित्र ज्यादा वैविध्यपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।इस सबके बावजूद स्त्री का स्टीरियोटाइप रूप दबाव बनाए हुए है।ज्यादातर स्त्री चरित्र कॉमेडी और पारिवारिक धारावाहिकों में आ रहे हैं।इन दोनों विधाओं को लोग खूब देखते हैं।जबकि घरेलू झगड़ों पर केन्द्रित कार्यक्रमों को कम देखते हैं।अपराध,एक्शन,एडवेंचर कार्यक्रमों में स्त्री चरित्र कम आ रहे हैं। प्राइम टाइम कार्यक्रमों में जो औरतें आ रही हैं वे मर्दों की तुलना में युवा हैं। ज्यादातर मर्दों की उम्र औरत से ज्यादा होती है।वे प्रौढ़ होते हैं।उल्लेखनीय है कि दृश्य में स्त्रियों की उम्र का काफी महत्व है।धारावाहिकों में 65 या उससे ज्यादा उम्र का बूढ़ा सक्रिय नजर आता है।जबकि स्त्रियों में ऐसी औरतें ज्यादा नजर आ रही हैं घर से बाहर काम करती हैं।स्त्री के लिए तय कार्यों जेैसे सैकेट्री,नर्स,टीचर,आदि में वे दिखेंगी।अधिकांश पुरूष चरित्र नौकरी देने वाले या स्त्री से बड़े ओहदे पर कार्यरत मिले हैं।जबकि अधिकांश स्त्रियों को घरेलू कार्यों में सक्रिय दिखाया गया है।नया फिनोमिना है स्त्री का छात्रा रूप में प्रस्तुतिकरण।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...