शुक्रवार, 5 मार्च 2010

सांस्कृतिक हिंसाचार है पोर्न संस्कृति

    सेक्स उद्योग का अमेरिका धुरी है। सेक्स उद्योग बुनियादी तौर पर चाम का काम है। इसे चमड़ा उद्योग भी कहते हैं। यह सामान्य धारणा है कि पोर्न से समाज को खतरा है।जबकि कुछ ऐसे भी विचारक हैं जो यह मानते हैं कि पोर्न से समाज को कोई खतरा नहीं है। आज पोर्न के व्यापार में मीडिया और सूचना जगत की बहुराष्ट्रीय कंपनियां मोर्चा संभाले हुए हैं। प्रत्यक्षत: बड़ा पूंजीपति इस धंधे की कमान संभाले हुए है। इस स्थिति से यह बात साफ तौर पर समझी जा सकती है कि सेक्स बाजार की किसे जरूरत है।

     पचास साल पहले तक छोटी पूंजी के प्रकाशक ही इस धंधे में थे। किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से स्थिति में धीरे-धीरे परिवर्तन आया है। खासकर 1970 के बाद पोर्न को अमेरिका के बड़े पूंजीपति ने अपने व्यापार का हिस्सा बनाना शुरू किया और आज इस धंधे पर उसका एकच्छत्र राज्य है। स्थिति यहां तक बदल चुकी है कि इंटरनेट जैसे शक्तिशाली माध्यम के जरिए पोर्न उद्योग का राज्य के प्रसारण तंत्र के साथ भी याराना हो गया है।

   कल तक पोर्न अवैध था। जिसे पाने के लिए गुपचुप प्रयास करने होते थे,आज किन्तु आज यह स्थिति नहीं है। आज पोर्न आपके घर में वैध रूप में बीएसएनएल के ब्रॉडबैण्ड के माध्यम से आधिकारिक प्रवेश पा चुका है। यानी कहने के लिए पोर्न 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के लिए अभी भी प्रतिबंधित है। किन्तु घर में आ चुका है। आपकी गली-कूंचे के कैफे में आ चुका है। पोर्न का व्यवसाय इंटरनेट का सबसे बड़ा व्यवसाय है।
       
    यूरोप में 19वीं शताब्दी में पोर्न का मुद्रण की मासकल्चर  के रूप में उदय हुआ। औद्योगिक क्रांति के बाद पूंजीवादी राज्य आने के बाद पोर्न का सबसे ज्यादा उत्पादन हुआ। पोर्नोग्राफिक साहित्य के आने के बाद नए किस्म के राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक विचारों के निर्माण और प्रसार में मदद मिली।

    कहने का अर्थ यह है कि उस समय पोर्न का राजनीतिक पक्ष भी हुआ करता था। किन्तु आज स्थिति यह है कि पोर्न का राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष तो दूर की बात है कलात्मक पक्ष भी नजर नहीं आता। परवर्ती पूंजीवाद के दौर में जो पोर्न आ रहा है वह आनंद,मनोरंजन और मुनाफे के लिए तैयार किया जा रहा है। पोर्न के प्रसार ने पोर्न के प्रति रवैयया बदला है। पोर्न का एक जमाने में जो कलात्मक मूल्य था,आज वह मूल्य नहीं है।
    
     सन् 1960 के बाद से पोर्न के बारे में आलोचनात्मक नजरिया व्यक्त होना शुरू होता है। पोर्न को सांस्कृतिक हिंसाचार कहा गया। पोर्न को घरेलू हिंसा और बलात्कार के संदर्भ में विश्लेषित किया गया। स्त्रीवादी विचारकों का मानना है कि पोर्न में कामुक हमलों,कामुक उत्पीडन और स्त्री शोषण का व्यापक रूप में चित्रण किया जाता है ,इसके परिणामस्वरूप कामुक संस्कृति विस्तार पा रही है, औरतों पर हमले और जुल्म की वारदातें बढ़ी हैं। पोर्न ने स्त्री के सम्मान को नष्ट किया है। उसे अमानवीय बनाया है। प्रतिगामी हिंसाचार और कामुक हिंसाचार को वैधता प्रदान की है। उसके प्रति सहिष्णु माहौल बनाया है।
      
    हेलिनी लॉगिनी का मानना है कि पोर्नोग्राफी में स्त्री और पुरूष को आनंद लेते दिखाया जाता है। किन्तु इस तरह की प्रस्तुतियों में स्त्र कम मानवीय होती है। स्त्री के समस्त कार्य-व्यापार को अमानवीय रूप में पेश किया जाता है।

    पोर्न यह संदेश देता है कि स्त्री के साथ किसी भी किस्म के नैतिक मूल्यों को सम्मान दिए वगैर व्यवहार किया जा सकता है। हमें सवाल उठाना चाहिए कि पोर्न में गलत क्या है ? वे स्त्री को असम्मानित करते हैं।

   पोर्न अपनी प्रकृति के अनुसार यह बतात है कि स्त्री पुरूष के मातहत है। पुरूष की फैण्टेसी को संतुष्ट करने का साधन है। कैथरीन मेककीनन और ए.डोरिन का मानना है कि पोर्न स्त्री की प्रत्यक्ष गुलामी है। यह स्त्री के प्रति दिया गया असम्मानजनक बयान है जो सुचिन्तित रूप से स्त्री के प्रति भेदभाव को बढावा देता है। जब औरत पुरूष पर कामुक दुर्व्यवहार का आरोप लगाती है तो लोग उस पर विश्वास नहीं करते,ऐसे लोगों को पोर्न देखना चाहिए।   
     
    पोर्न एक तरह से स्त्री की उस क्षमता पर ही सवालिया निशान लगात है कि वह अपने साथ किए जा रहे भेदभावपूर्ण बर्ताव के खिलाफ न्याय पा सकती है। पोर्नोग्राफी का निर्माण एवं प्रसार लिंगभेद और स्त्री शोषण को वैधता प्रदान करता है। मैककिनोन का मानना है पोर्नोग्राफी स्त्री पर किया गया प्रत्यक्ष हमला है। मर्द के द्वारा पोर्न का इस्तेमाल उसे यह  शिक्षा देता है कि औरत समर्पण के लिए बनी है।
    

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