रविवार, 24 जनवरी 2010

इस्राइली सैन्यवाद और फिलीस्तीन की आर्थिक तबाही




        एक जमाना था हिन्दी में साहित्यकारों और युवा राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं में युध्द विरोधी भावनाएं चरमोत्कर्ष पर हुआ करती थीं, हिन्दीभाषी क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में युध्द विरोधी गोष्ठियां,प्रदर्शन,काव्य पाठ आदि के आयोजन हुआ करते थे,किंतु अब यह सब परीकथा की तरह लगता है।

हिन्दी के बुध्दिजीवियों में अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सरोकारों को लेकर बेगानापन बढ़ा है। हिन्दी के बुध्दिजीवी खासकर प्रगतिशील बुध्दिजीवी स्थानीय सरोकारों और मुद्दों पर इस कदर व्यस्त हैं कि उन्हें स्थानीयता के अलावा अन्य कुछ भी नजर ही नहीं आता। यह हिन्दी के बुध्दिजीवी की बदली हुई मनोदशा का संकेत है।

अब प्रगतिशील जितना साम्प्रदायिकता पर हल्ला करते हैं, अमेरिका-इस्राइल के मध्यपूर्व में चलाए जा रहे जनसंहार अभियान पर उतना हल्ला नहीं मचाते। यह अचानक नहीं है कि मध्यपूर्व में चल रहा जनसंहार हिन्दी के बुध्दिजीवियों के चिन्तन के केन्द्र से अचानक गायब हो गया है।

भूमंडलीकरण के वैचारिक हथौड़े ने बुध्दिजीवियों को व्यापक जनहित के सरोकारों की बजाय स्थानीय सरोकारों में उलझा दिया है। जबकि सच यह है कि बुध्दिजीवी वही कहलाता है जो अपने समय के सबसे बड़े सरोकारों को व्यक्त करता है। फिलीस्तीन में हाल ही में जिस तरह का बर्बर ताण्डव चल रहा है। वह हम सबके लिए  शर्म की बात है। हमें प्रत्येक स्तर पर अमेरिकी-इस्राइली बर्बरता के खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी चाहिए। हमें सोचना होगा कि इराक में जब तक अमेरिका एवं उसके सहयोगियों की सेनाएं कब्जा जमाए हुए हैं,इराकी जनता पर मानव सभ्यता के सबसे बर्बर अत्याचार हो रहे हैं,फिलीस्तीन जब तक अपनी धरती से वंचित है।ऐसी अवस्था में दुनिया में किसी भी किस्म की शांति की कल्पना करना बेमानी है।

मध्यपूर्व में अमेरिका-इस्राइल की सैन्य कार्रवाई ने हमारे घरों के चूल्हे,कल-कारखाने,मोटर, गाडियां,परिवहन,माल ढुलाई,विकास आदि के प्रकल्पों को मंहगा बना दिया है। मध्यपूर्व में अमेरिका-इस्राइल जितना आक्रामक हो हमारा घरेलू बजट उतना ही गडबड़ाएगा।यह संभव ही नहीं है कि युध्द मध्यपूर्व में हो और हम उसके प्रभाव से बच जाएं। भूमंडलीकरण के दौर में कोई भी घटना स्थानीय नहीं होती,युध्द भी स्थानीय नहीं होते।इस दौर में जो लोकल है वह ग्लोबल होता है और जो ग्लोबल है वह लोकल है। सैन्य दृष्टि से युध्द स्थानीय होता है,किंतु राजनीतिक,आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव की दृष्टि से युध्द हमेशा ग्लोबल होता है।
     फिलीस्तीनी जनता के खिलाफ किए जा रहे हमलों की जड़ में दो प्रधान लक्ष्य हैं , पहला है ,फिलीस्तीनी अर्थव्यवस्था को तबाह करना और दूसरा फिलीस्तीन जाति को पूरी तरह नष्ट करना। फिलीस्तीन की आर्थिक नाकेबंदी का अर्थव्यवस्था पर सीधा बुरा असर हो रहा है। इस्राइली समर्थन में काम करने वाला बहुराष्ट्रीय मीडिया ,फिलीस्तीन की तबाही के लिए फिलीस्तीन की मुक्ति के संघर्ष में सक्रिय संगठनों की तथाकथित हमलावर कार्रवाईयों के लिए जिम्मेदार ठहराता रहा है। साथ ही इस्राइली हमलों का लक्ष्य आतंकी निशानों को बताता रहा है। वास्तविकता यह है कि इस्राइली सैनिकों के द्वारा आम जनता,रिहायशी बस्तियों ,और अर्थव्यवस्था पर हमले होते रहे हैं।
      हाल ही में अदालत में इस्राइल के वकील ने यह माना कि आतंकियों पर हमले के दौरान जनता की संपत्ति पर भी हमले हुए हैं।  अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए  बिजली काट दी गयी, पानी की सप्लाई बंद कर दी गयी। गैस लाइन बंद कर दी गयी। इस्राइल के इस तरह के कदम फिलीस्तीन जनता के खिलाफ की गयी सामूहिक दंडात्मक कार्रवाई हैं। बिजली ,पानी की सप्लाई काटना अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन है।
     फिलीस्तीनी बस्तियों की वास्तविकता यह है कि उनमें इस्राइल ने जगह -जगह बेरीकेट लगा दिए हैं। प्रत्येक बेरीकेट पर इस्राइली सैनिकों की चौकियां हैं , इनसे माल और लोगों का आना -जाना बेहद कठिन है। फिलीस्तीनी नागरिकों पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। कभी इस्राइली सैनिक हमले कर देते हैं तो कभी फिलीस्तीनी इलाकों में रहने वाले अवैध इस्राइली हमले कर देते हैं। इस प्रक्रिया में फिलीस्तीन के सकल घरेलू उत्पाद में सन् 1999-2007 के बीच 40 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गयी। उद्योग के क्षेत्र में निवेश बंद हो गया है। फिलीस्तीनियों की 37 फीसदी जमीन पर अवैध बस्तियां बसा दी गयी हैं। अकेले वैस्ट बैंक में 100 से ज्यादा अवैध बस्तियां बसायी गयी हैं।
   वैस्ट बैंक और पूर्वी यरुसलम में इस्राइली पाबंदियों और अवैध बस्तियों के बसाने के कारण अवैध इस्राइलियों की तादाद में सालाना 3.44 प्रतिशत की दर से इजाफा हुआ है। अकेले इस इलाके में 461,000 अवैध इस्राइलियों की संख्या बढ़ी है। वेस्ट बैंक के 227 इलाके हैं जो ओसलो समझौते के अनुसार फिलीस्तीन प्रशासन के तहत आते हैं। इन इलाकों का संपूर्ण दायित्व फिलीस्तीनी प्रशासन का है।
    ओसलो समझौते के अनुसार वेस्टबैंक के ए.बी.और सी तीन क्षेत्र हैं. इनमें ए और बी  क्षेत्र में आने वाले सघन शहरी क्षेत्र की जमीन के इस्तेमाल और नागरिक प्रशासन की जिम्मेदारी फिलीस्तीन स्वशासन की है , बी क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण इलाकों की भी जिम्मेदारी फिलिस्तीनियों की है। लेकिन इस क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्र की सुरक्षा की इस्राइल और फिलीस्तीनियों की साझा जिम्मेदारी है।
   उल्लेखनीय है कि वेस्ट बैंक के और बी क्षेत्र साझा नहीं हैं। लेकिन सी केटेगरी में आने वाले क्षेत्र वस्तुत : और बी वाले क्षेत्रों की नाकाबंदी करते हैं, चारो ओर से और बी के क्षेत्र को घेरते हैं। सी क्षेत्र में ही वेस्ट बैंक के सभी मुख्य इन्फ्रास्ट्रक्चर हैं, इनमें मुख्य सड़कें भी शामिल हैं। सी क्षेत्र पूरी तरह इस्राइली सेना के कब्जे में है। सी क्षेत्र के 59 फीसदी इलाके में अवैध बस्तियां बसा दी गयी हैं। उल्लेखनीय है  सी क्षेत्र में किसी किस्म का निर्माण कार्य करने का इस्राइल को अधिकार नहीं है। इसके बावजूद बड़े पैमाने पर अवैध बस्तियों का निर्माण जारी है।
    ओसलो समझौते अनुसार गाजा से सटे समुद्री इलाके में फिलीस्तीनी मछुआरे बगैर किसी बाधा के 20 मील तक समुद्र में नौका लेकर जा सकते हैं। सन् 2000 में दूसरे इंतिफादा के बाद से यह इलाका हम्मास के कब्जे में आने के बाद से इस्राइल ने समुद्री सीमा को 20 से घटाकर 6 मील तक सीमित कर दिया था। विगत दो  सालों में 3 मछुआरे इस्राइली सेना के हाथों अतिक्रमण करने के कारण मारे गए हैं। अनेक घायल हुए हैं और अन्य की नौकाएं जब्त कर ली गयी हैं। जो मछुआरे पकड़े जाते थे उन्हें नंगा करके समुद्र में तैरकर उस जगह तक जाने के लिए बाध्य किया जाता है जहां तक वह अपनी नौका लेकर गया था। यहां तक कि तेज ठंड़ में भी उन्हें यह दंड झेलना पड़ता है. बाद में उन्हें इस्राइली सैनिक चौकियों पर ले जाया जाता है।
    संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार समुद्र से मछली पकड़ने के लिए कम से कम 12-15 मील तक अंदर जाने पर ही अच्छी मछलियों के मिलने की संभावना होती है। इस्राइली पाबंदी के कारण मछली उत्पादन में गिरावट आयी है। चूंकि समुद्र में ज्यादा गहरे जाकर मछली पकड़ने की संभावनाएं खत्म हो गयीं और लागत बढ़ गयी इसके कारण मछुआरों ने इस धंधे से अपना मुँह फेरना शुरु कर दिया।

संयुक्तराष्ट्र संघ के अनुसार सन् 2006 में मछली उत्पादन 823 टन था जो सन् 2006 में घटकर 50 टन रह गया। उल्लेखनीय है फिलीस्तीनियों के सकल घरेलू उत्पाद का 4 फीसदी मछली उद्योग से आता था। फिलीस्तीन बड़े पैमाने पर मछली का निर्यात करते थे। 1990 के दशक में 10 मिलियन डालर की इस क्षेत्र से सालाना आय होती थी। आज मछली उद्योग पूरी तरह तबाह पड़ा है।      
सन् 2001 से 2006 के बीच में मछुआरों और समुद्री इलाके के बाशिंदों की अच्छी आय हुआ करती थी। लेकिन इन दिनों गाजा में भयानक बेकारी है। लगातार कुपोषण बढ़ रहा है। अब मछली का इस्राइल आयात किया जा रहा है। बाजार में मछली की जबर्दस्त मांग है लेकिन मछली नहीं है।  


1 टिप्पणी:

  1. इजराइल की जय भारत के लिये शुभ हो। भारत के बुद्धिजीवी अब अधिक समझदार हैं। कम्युनिज्म धराशायी हो चुका है। उसकी सड़ी लाश कंधे पर लेकर घूमने से बदबू ही आयेगी।

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