सोमवार, 25 जनवरी 2010

फिलीस्तीन मुक्ति सप्ताह- फिलीस्तीनी लेखिकाओं की कविताएं








गाज़ा, जहाँ समय अब भी खड़ा है
                     कवयित्री समां साबावी


हमें मत बताओ कि एक वर्ष बीत गया...
हमने जीवन की तारीखें देखकर देखना बंद कर दिया है
बहुत पहले से हमारे लिए समय स्थिर हो गया है
हिंसक विना और अथाह दुख ने इस पर विराम लगा दिया है
और इस बर्बादी के बीच मिलनेवाले कुछ शांत क्षणों में
हम 'क्रिसमस' नहीं मनाते, न ही झूठी प्रसन्नता के लिए 'ईद'
'नए वर्ष की शुभाकांक्षा' देकर हम स्वयं को मूर्ख नहीं बनाते
कोई भी अवसर कभी भी हमारा नहीं,
वह भविष्य की अनिश्चितताओं से घिरा है
बीता कल ही, हमारा आज है
यहाँ समय जड़ है
और एक ही तारीख वर्ष है
जो हमारा जीवन धारण नहीं करता,
न हमारे सम्मिलित दुखों को,
न बचे रहने की कामना को
हमें मत बताओ कि एक वर्ष बीत गया...
न्याय के ध्वस्त होते ही हमारी घड़ियाँ बंद हो गई थीं.
कों के दमन ने ग्रहण का अंधेरा फैला रखा है
.....अब कोई समय की बात नहीं करता
समय की अनुपस्थिति में हम ठहर से गए हैं
हम तुम्हारी तरह जीवन को दिनों से नही तौलते
आलिंगनों की ऊष्मा ही हमारे जीवन की वाजिब गणना है.
हमारा मूल्य प्रेमी हृदय क मात्र एक स्पंदन,
हमारा अस्तित्व हमारे होने की ज़िद है.
इसलिए हमें मत बताओ कि एक वर्ष बीत गया...

( अंग्रेजी से अनुवाद - विजया सिंह,रिसर्च स्कॉलर ,कलकत्ता विश्वविद्यालय )

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