रविवार, 24 जनवरी 2010

ज्योतिषियों की टेलीविजन मूर्खताएं - 2



फलित ज्योतिष का कृत्रिम चरित्र व्यक्ति के अहं को परेशान किए वगैर यथार्थ के साथ मिथ्या संबंध बनाने की ओर ठेलता है। इस क्रम में अविवेक को बड़ी ही चालाकी से छिपा लिया जाता है।ज्योतिष की ओर आम लोगों के बढ़ते हुए रूझान का बड़ा कारण है बौध्दिक ईमानदारी का अभाव।इस अभाव का एक कारण मौजूदा सामाजिक परिस्थितियां हैं,जिसके कारण बौध्दिक शॉर्टकट पैदा हो रहा है और दूसरा कारण अर्द्ध पांडित्य का बढ़ता हुआ प्रभाव।


ज्योतिष व्यक्ति के अहं के अलगाव को व्यक्त करता है।व्यक्ति के द्वारा जो मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं।कुछ हद तक ज्योतिष में वे सब शामिल हैं।मनोवैज्ञानिक तौर पर परेशान व्यक्ति उस व्यक्ति के पास जाता है जो उसकी सभी परेशानियों को दूर करता है,संतोष और आत्मविश्वास देता है।ज्योतिषी समस्त व्याधियों के समाधान का दावा करता है इसके कारण सहज तौर पर व्यक्ति उसकी ओर आकर्षित होता है।ज्योतिषी उसकी परेशानियों को दिशा देता है।दिशा देने के क्रम में वह तरह-तरह के प्रयोग करता है।जिससे व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक संतोष प्राप्त होता है।व्यावसायिक ज्योतिषी यह कार्य बड़े कौशल के साथ करते हैं।इससे जहां एक ओर व्यक्ति को संतोष मिलता है वहीं दूसरी ओर ज्योतिष का सामाजिक आधार विस्तृत होता है।


टेलीविजन में सीधे प्रसारण के समय आने वाले ज्योतिषियों की मुश्किल यह है कि इनके पास जिज्ञासु की प्रत्यक्ष जानकारी नहीं होती।साथ ही वैविध्यपूर्ण ऑडिएंस का सामना करना होता है। ऐसे में ये लोग किसी समस्या विशेष के बारे में सलाह नहीं देते हैं।बल्कि जिज्ञासु से प्रत्यक्ष संपर्क करने के लिए कहते हैं।


कभी -कभी यह भी होता है कि ज्योतिषी प्रामाणिक ढ़ंग से समस्या के समाधान हेतु रत्न धारण करने या किसी मंत्र का जप करने की सलाह दे देता है।अथवा किसी समस्या का संतोषजनक उत्तर भी दे देता है।प्रत्यक्ष प्रसारण में ज्योतिषी कभी भी जिज्ञासु को निराश नहीं करता,अपनी चमत्कारी हैसियत से समझौता करने की कोशिश नहीं करता बल्कि दो टूक उत्तर देता है।ऐसा करते हुए वह अपने मूल्यों की बिक्री करता है और बेधड़क झूठ बोलता है।


ज्योतिषी अपने उत्तर से यह आभास देता है कि उसे समस्या की ठोस सामयिक जानकारी है।वह समस्या के बारे में कम से कम बोलता है।जिससे उसकी साख खतरे में न पड़ जाए।उसके उत्तर में संदर्भ इतने व्यापक कैनवास में फैला होता है कि उसे किसी भी समस्या और समय के साथ फिट किया जा सकता है।


मसलन् किसी ने पूछा कि मेरी नौकरी नहीं लगी है क्या करूँ ?जबाव होता है मूंगा नामक रत्न पहनो।किसी ने पूछा जमीन का मुकदमा चल रहा है क्या मैं जीत जाऊँगा ?जबाव देता है कि मूंगा पहनो सफलता जरूर मिलेगी।


यानी समस्या है तो समाधान भी है और वह है रत्न धारण करो या मंत्र जप करो या जप कराओ।इस तरह के समाधान जिज्ञासु को आशा और जीत की उम्मीद बंधाते हैं।खासकर अर्ध्द-शिक्षित को इससे संतोष मिलता है।वह यह मानने लगता है कि ज्योतिषी गंभीरता से भविष्य देख रहा है।इस तरह की पध्दति छद्म व्यक्तिवाद को बनाए रखती है और उसके समाधान देती है।


प्रत्यक्ष प्रसारण में पूछे जाने वाली समस्याओं के सामयिक परिदृश्य की ज्योतिषी को बेहतर जानकारी होती है।वह अच्छी तरह से जानता है कि पूछी गई समस्या का जल्दी समाधान संभव नहीं है और जानता है कि जिज्ञासु इसका समाधान नहीं कर सकता,ज्योतिषी यह भी अच्छी तरह जानता है कि वह समस्या का विवेकपूर्ण ढ़ंग से समाधान नहीं कर सकता।फलत:वह विवेकहीन रास्ता अख्तियार करता है वहीं दूसरी ओर जिज्ञासु किसी अदृश्य शक्ति की मदद की उम्मीद करता है और ऐसी स्थिति में ज्योतिषी तरह-तरह के ताबीज,जड़ी-बूटी,रत्न,मंत्र आदि सुझाता है।


ज्योतिषी यह बताता है कि जिज्ञासु की जिन्दगी में विपत्ति या मुश्किल आनेवाली है या आ चुकी है।इससे रक्षा की जानी चाहिए।विपत्ति और उससे रक्षा की पध्दति का इस तरह इस्तेमाल किया जाता है कि लगे मानसिक द्वंद्व या अव्यवस्था से मुक्ति मिल सकती है।ज्योतिषी की भविष्यवाणियों के पैटर्न को देखें तो पाएंगे कि ज्यादातर लोगों की जिन्दगी खतरे में है।यह पैटर्न सीधे मनोवैज्ञानिक चिकित्सा से लिया गया है।खतरा भी हमेशा हल्का सा होता है।ऐसा होता है जिससे जिज्ञासु को शॉक न लगे।यही वजह है कि जिज्ञासु बार-बार भविष्यवाणी सुनता है या पढ़ता है।


ज्योतिषी जब खतरों की बात करता है तो यथार्थपरक खतरों की बात करता है।मसलन् वह कहता है कि इस सप्ताह या इस साल ऐक्सीडेंट हो सकता है या चोट लग सकती है।वह यह नहीं कहता कि किससे ऐक्सीडेंट होगा या चोट लग सकती है।यदि बोलना ही पड़े तो कहता है गिर सकते हो या किसी वाहन से टक्कर हो सकती है।या जल सकते हो।इन सबसे जिज्ञासु दुखी नहीं होता।ज्योतिषी यह नहीं कहता कि हवाई जहाज से गिर सकते हो या पहाड़ से गिर सकते हो।या अग्निकांड में जल सकते हो।यदि ऐसा कहेगा तो जिज्ञासु कभी फलादेश जानने नहीं आएगा।इस तरह की विपत्तियां आज की स्थितियों में कभी भी आ सकती हैं।इस तरह की भविष्यवाणियों से जिज्ञासु के मन में बैठे नार्सीज्म को कोई क्षति नहीं पहुँचती बल्कि वह इस तरह की भविष्यवाणियों को आत्मसात् कर लेता है।


ज्योतिषी  जब सड़क पर ऐक्सीडेंट की बात कहता है तो वह जानता है कि आज के दौर में सड़क दुर्घटना को अपराध नहीं माना जाता।सड़क दुर्घटना करने वाले को अपराधी नहीं माना जाता।बल्कि ज्योतिषी सड़क पर लगे साइनबोर्ड की तरह कहता है ''सावधानी से गाड़ी चलाएं।''



4 टिप्‍पणियां:

  1. मैनें अब तक अठारह ज्योतिषियों को अपने जन्म की तारीख समय और स्थान बताने के बाद केवल इतना निवेदन किया था कि मुझे भविष्य नहीं जानना है केवल मेरा भूत काल बता दो, पर आज तक कोई तैयार नेहीं हुआ। मेरा एक ऐसा परिकित भी इसकी प्रैक्टिस करता है और उसके क्लाइंट्स में बड़े बड़े मंत्री आदि भी हैं, वह अपने धन्धे के बारे में आफ दि रिकार्ड बहुत सारी बातें बताता है कि इस् धन्धे में कैसे कैसे द्विअर्थी भाषा बोल कर लूटा जाता है।

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  2. बढ़िया सटीक विचारणीय आलेख...

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  3. अन्य मूर्खताओं पर भी प्रकाश डालें

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