बुधवार, 6 जनवरी 2010

मध्यपूर्व और एडवर्ड सईद की संगीतदृष्टि -2-


तकनीकी विकास के युग में आप अपनी 'टाइमनेस' के प्रति अनभिज्ञ होते हैं। क्योंकि आज तकनीक के जरिए प्रत्येक चीज का संरक्षण किया जा सकता है,पुनरावृत्ति की जा सकती है।  सईद ने कहा मुझे लगता है साहित्य और चित्रकला में समय आगे नहीं जाता। आप उसके आसपास घूमते रहते हैं,बार-बार लौटते हैं। पढ़ते और दुबारा पढ़ते हैं। दूसरे शब्दों में इसकी समुद्र के साथ तुलना की जा सकती है।  वह प्रिफार्मेंस की शर्त तय करता है। वह शक्तिशाली है। जैसा तुमने अभी कहा  जब एक बार शुरू हो गया तो संगीत की प्रिफार्मेंस को खत्म होना ही होगा।  इस तरह देखें तो प्रिफार्मेंस में किसी भी किस्म की पुनरावृत्ति नहीं होती। चाहे वह टेप ही क्यों न हो। वह जैसा है वैसा नहीं होता बल्कि वह साथ ही भिन्ना हो जाता है।
    


डेनियल ने कहा यह सही है। यदि उसे दूसरे दिन दोहराया जाएगा तो उसकी भिन्न प्रिफार्मेंस होगी। सईद ने सवाल उठाया है कि क्या इसमें कचरा अथवा गुम हो जाने का खतरा रहता है। संगीत में चुप्पी अन्तर्निहित होती है। यह साहित्य में भी होती है। इसका हम संरक्षण करते हैं।  साहित्य के पठन और पुनर्पठन में पाठ भी शामिल है। कोई उसका लौटकर संपादन के दौरान परिवर्तन करना चाहे तो कर सकता है,यहां तक कि आलोचक के सामने मुद्रित के पठन और पुनर्पठन की निरंतर संभावना बनी रहती है। जबकि संगीतकार के सामने यह खत्म हो जाती है।




डेनियल का मानना है साहित्य और संगीत में कई चीजों को लेकर बुनियादी फ़र्क होता है। इसके बावजूद मैं कहना चाहता हूँ संगीत कायिक नियमों का उल्लंघन करता है। इनमें साइलेंस अथवा चुप्पी भी है। ध्वनि का भाषिक जगत अस्थायी होता है। ध्वनि का चुप्पी से ठोस संबंध है।  


मैं अमूमन इसकी घनत्व के नियम से तुलना करता हूँ। जैसे वस्तुएं जमीन पर उतारते हैं,चित्रित करते हैं। इसी तरह ध्वनि के द्वारा चुप्पी को उतारते हैं। यह अन्योन्याश्रित है। यदि आप इसे स्वीकार कर लेते हैं तो कायिक असमर्थता के व्यापक आयाम आपके सामने आ जाएंगे। जिनका एक संगीतकार के नाते उल्लंघन करना होगा। इस तरह साहस संगीत निर्माण का अन्तर्गृथित हिस्सा है। 


बीथोवन इसलिए साहसी प्रयास नहीं है कि वह गंभीर है बल्कि यह अतिमानवीय की चुनौतियों को कम करता है। इस अर्थ में संगीत निर्माण स्वयं में साहसिक कार्य है क्योंकि ऐसा करते हुए आप अनेक प्राकृतिक कायिक कानूनों का उल्लंघन करते हैं। डेनियल ने कहा चुप्पी के बारे में मुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि यदि आप ध्वनि बरकरार रखना चाहते हैं और तनाव पैदा करना चाहते हैं तो यह सस्टेंड ध्वनि के जरिए ही संभव है।  इसके पहले चरण में प्रथम ध्वनि और चुप्पी के बीच संबंध बनता है। इसके बाद पहले नोट और दूसरे नोट के बीच संबंध बनता है। यह सिलसिला अनंत रूप में चलता रह सकता है। 


डेनियल ने कहा संगीतकार को सबसे पहले यह जानना चाहिए कि ध्वनि कैसे भूमिका अदा करती है। जब आप उसे इस जगत में लाते हैं,जब आप उसे कमरे में लाते हैं ,दूसरे शब्दों में प्रतिध्वनि क्या है ? ध्वनि का लंबी अवधि तक खिंचना अथवा दीर्घ आलाप का अर्थ क्या है ? डेनियल ने कहा मेरे लिए ध्वनि के जरिए संगीत निर्माण विभ्रम की कला है।
   
सईद ने कहा लेखक के नाते मैं जब अतीत में जाता हूँ तो मेरे दिमाग में प्रासंगिकता का सवाल बार-बार जेहन में आता है। यह स्थिति संगीतकार के सामने भी आती है, ऐसी अवस्था में संगीतकार अतीत को कितना विकृत करता है ? सईद के मुताबिक अतीत की रचना को प्रासंगिक बनाने के लिए उसका विकृतिकरण जरूरी है। अतीत के पाठ में बगैर कांट'छांट के आलोचक उसे प्रासंगिक नहीं बना पाता। इस क्रम में वह अतीत का अतिक्रमण भी करता है। लेखक लगातार अतीत की ओर जाता है क्योंकि यह उसकी जरूरत है और आज के जमाने में उसकी प्रासंगिकता के बारे में बार-बार सवाल खड़े करता है।
    


डेनियल ने कहा  यह सच है। किंतु प्रत्येक महान कला के दो चेहरे होते हैं। एक चेहरा उसका अपने समय की ओर होता है और दूसरा चेहरा अंतरात्मा की ओर होता है। इसी के गर्भ से कालजयी रचना का जन्म होता है। जब हम किसी रचना को कालजयी कहते हैं तो इससे क्या तात्पर्य है ? प्रत्येक रचना तो अपने समय से जुड़ी है फिर उसे कालजयी अथवा काल का अतिक्रमण करने वाली क्यों मानते हैं ? कालजयी रचना अपने समय से जुड़ी होती है साथ ही वह स्थायी तौर पर सामयिक होती है।  किंतु यह नियम प्रत्येक रचना पर लागू नहीं होता।  


एक मर्तबा चोम्सकी ने कहा था  वह टेलीविजन पर बोलने नहीं जाएंगे क्योंकि वह जानते थे कि उन्हें अपनी अवधारणा को बताने का समय ही नहीं मिलेगा। इसी प्रसंग को डेनियल से सुनने के बाद सईद ने कहा मैंने भी ऐसा ही किया। मैं पहले टीवी पर बहुत जाया करता था।  आपको वहां पर साउण्ड बाइट्स तैयार करने होते हैं और मुझे इससे सख्त नफरत है। मैं सोचता हँ यह समय की बर्बादी है। इसलिए मैं अभिव्यक्ति के नए रूपों को वरीयता देता हूँ। मैं लिखता हूँ अथवा व्याख्यान देता हूँ। ऐसी अवस्था में आपके पास दर्शकों के सामने अपने विचार को विकसित करने का अवसर होता है,समय होता है। जबकि टीवी की बहस तो एक तरह के गुरिल्ला हस्तक्षेप की तरह है। आप तुरंत एक्शन करते हैं और डिस्टर्ब कर देते है। 


किंतु यही काफी नहीं है। व्यक्ति को सही अर्थ में हस्तक्षेप करना चाहिए न कि बहस को अस्त-व्यस्त करने लिए। संगीतकार अपने दर्शक के जीवन में हस्तक्षेप करता है। दर्शक सब कुछ छोड़कर संगीत सुनने आता है। इसी तरह मुझे पढ़ने जो आएगा वह अपना समय खर्च करेगा और उसे कुछ न कुछ त्यागना पड़ेगा। जिससे वह पढ़ने पर समय खर्च कर सके। इस तरह के हस्तक्षेप के लिए मुझे अनुशासित होना पड़ेगा। इस अनुशासन के लिए कुछ जानना जरूरी है।  खास संस्कृति का होना जरूरी है। खास किस्म का प्रशिक्षण जरूरी है।  ये सारी चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं।


 इसी बातचीत में डेनियल ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही, उसने कहा टेलीविजन में अंतर्वस्तु और समय के अन्तस्संबंध का ख्याल नहीं रखा जाता। जबकि कुछ अंतर्वस्तु ऐसी होती है। जिन्हें खास मात्रा में समय की जरूरत होती है। उसे आप दबा नहीं सकते,उपेक्षा नहीं कर सकते। डेनियल ने कहा आप किसी भी चीज के बारे में बात करें, किसी भी प्रक्रिया के बारे में बात करें आपको अंतर्वस्तु और समय के अंतस्संबंध को ध्यान में रखना होगा। यदि आप समय नहीं देते अथवा ज्यादा समय देते हैं तो वह नष्ट हो जाएगा। मेरा इशारा ओसलो समझौते की ओर है। यह इस बात का स्पष्ट उदाहरण है।  आप ओसलो के पक्ष में हों या विपक्ष में। मूल बात यह है कि वह लागू नहीं हुआ।  जिस गति से उसे लागू करने की बात की गई उसमें ही खतरा निहित था। क्योंकि उसकी प्रक्रिया अंर्तवस्तु के साथ सक्रिय नहीं थी।
    


सईद ने कहा  ओसलो समझौते का फिलीस्तीन के यथार्थ के साथ कोई संबंध नहीं था। उसके पाठ में ही छिद्र थे। चोर दरवाजे थे। इस बातचीत में डेनियल ने कहा  हमें राजनीतिज्ञ और कलाकार के बीच में अंतर करना होगा। एक राजनेता का प्रधान गुण है कि उसके पास समझौते की कला होती है। वह भिन्न मतों के लोगों के बीच इसके कारण समझौता कराने में सफल हो जाता है। वह उन्हें जहां तक संभव है करीब लाने की कोशिश करता है।


 इसके विपरीत कलाकार अपनी अभिव्यक्ति के लिए किसी भी किस्म के समझौते को अस्वीकार करता है। यहीं पर उसके साहस के तत्व को देख सकते हैं। इन दोनों की प्रकृति के अंतर को राजनीतिक,आर्थिक उपायों के जरिए हल नहीं किया जा सकता बल्कि इसका एकमात्र समाधान यह है कि लोग इस्तेमाल का साहस दिखाएं। यही कलात्मक समाधान है। मैं राजनीतिज्ञों को पसंद नहीं करता उनके प्रति किसी तरह की आस्था नहीं है वे गोटियां फिट करते रहते हैं। उनकी ज्यादातर रूचि बृहत्तर प्रक्रिया में होती है जिससे वे यह कह सकें कि मैंने क्या किया। 

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