मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

स्टार न्यूज की खबरें या बंदरनामा




समाचार चैनलों में स्टार न्यूज गैर -पेशेवर समाचार प्रस्तुति वाला चैनल है। रुपक मडरॉक के प्रतिक्रियावादी न्यूज कारपोरेशन के सभी लक्षण इसमें हैं। टोपी उछालू से लेकर पीत पत्रकारिता के सभी लटके- झटके,भाषा और  मुहावरों का इस चैनल की प्रस्तुतियों में इस्तेमाल किया जाता है। मीडिया में अपमानजनक भाषा सबसे जहरीला तत्व है। इसका स्टार न्यूज में व्यापक इस्तेमाल किया जाता है।
    स्टार न्यूज की खबर देने से ज्यादा खबर की हत्या में दिलचस्पी होती है। अधिकांश खबरें एंकर के जजमेंट से भरी होती हैं। किसी भी खबर में एंकर को महज एंकर ही होना चाहिए। लेकिन स्टार न्यूज के एंकर तो बंदर की तरह उछलते हैं,कूदते हैं, घुडकी देते हैं। सहजभाव से बंदर जैसी भावभंगिमा का समाचार प्रस्तुति में अतिरेक पैदा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। एंकरिंग के इस बंदरभाव के कभी दर्शन करने हों स्टार न्यूज के किशोर अजवानी और दीपक चौरसिया को जरुर देखें।
     समाचार को जब बंदरभाव से पढ़ा जाएगा तो प्रस्तुति को खबरनामा नहीं बंदरनामा कहेंगे। भारतीय समाचार चैनलों को बंदरनामा का आदर्श मंच बनाने में स्टार न्यूज की बड़ी भूमिका है। स्टार न्यूज के समाचार रुपी बंदरनामा का यहां एक ही नमूना काफी है। 14 दिसम्बर 2009 की रात प्राइम टाइम में आसाराम बापू के तथाकथित जमीन हड़पो मसले पर सारा कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में दो एंकर थे किशोर अजवानी और दीपक चौरसिया, इसके अलावा आसाराम बापू के आश्रम की प्रवक्ता नीलम दुबे, आसाराम बापू के विरोधी महेन्द्र चावला, रमेश चौकसी। बीच में विवादित जमीनों के तथाकथित फोटोग्राफ और गुजरात के वरिष्ठ नेता सुरेश मेहता का संक्षिप्त बयान।
   
          मजेदार बात यह थी कि एंकर बगैर तैयारी के वैसे ही आए थे जैसे बंदर आते हैं। समाचार प्रस्तुति में बंदरभाव का अर्थ है किसी से छीनकर खबर पेश करना। आसाराम बापू वाली खबर संवाददाता के द्वारा एकत्र की गई खबर नहीं थी , बल्कि आसाराम बापू के विरोधियों के द्वारा सजाकर दी गई लग रही थी। किशोर और दीपक खोखले बोल रहे थे। इन दोनों की इस खबर को लेकर किसी किस्म की तैयारी नजर नहीं आ रही थी। वे दोनों बंदर की तरह किचिर-मिचिर चिल्ला रहे थे। रोचक बात यह थी कि बाकी तीनों भी अधिकांश समय एक साथ बोल रहे थे।
     स्टार के इस बंदरनामे में जो कुछ कहा जा रहा था वह संदर्भहीन था। खबर के सटीक संदर्भ का अभाव उसे वायवीय बना देता है। चूंकि यह खबर स्टार के दफ्तर में तैयार हुई थी फलतः इसमें वैध स्रोत का अभाव था। घटनास्थल पर जाकर अगर रिपोर्ट तैयार की गयी होती तो इसमें प्रामाणिकता भी होती। समूची रिपोर्ट स्रोत ,संपर्क और अन्तःस्संबंधो को बताए बिना पेश की गयी। इस रिपोर्ट में वादी-प्रतिवादी एक साथ बैठे थे और अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे थे। समूचे कार्यक्रम में टीवी पत्रकारिता का पेशेवर रुप गायब था। उल्लेखनीय है कि भारत में टीवी पत्रकारिता की नींव में मट्ठा डालने वालों में स्टारन्यूज दादागुरु है।
    स्टार न्यूज के एंकर भाषा,सामाजिकता,पेशेवर प्रस्तुति और खबरों में टीवी पत्रकारिता के भ्रष्टतम मानकों के सर्जक रहे हैं। ऐसा वे व्यक्तिगत कारणों से कम स्टार न्यूज और न्यूज कारपोरेशन के संस्थानगत संपादकीय नीतियों से परिचालित होकर ज्यादा कर रहे हैं।
     स्टार न्यूज की नीति है खबर से सार को निकालो। खबर को सारहीन बनाओ। सामाजिक सत्व से रहित खबरें पेश करो। खबर को सनसनीखेज बनाओ। सनसनीखेज को खबर बनाओ। अपराध का महिमामंडन करो। अपराधी को काल्पनिक बनाओ। काल्पनिक को खबर बनाओ। खबर को काल्पनिक बनाओ। खबर में गुस्सा और गुस्से में खबर दो। सरकारी नीति पर चुप रहो या बकझक दिखाओ। तर्क को कुतर्क और कुतर्क को तर्क बनाओ। वैध को अवैध और अवैध को वैध बनाओ। दर्शक को व्यस्त रखो। दर्शक को खबर में नहीं खबर के विभ्रम में रखो।      




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